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मुकेश सिंघानिया

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मुकेश सिंघानिया

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मुकेश सिंघानिया

#hamarihindi
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मुकेश सिंघानिया

#SUPERDAD

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मुकेश सिंघानिया

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मुकेश सिंघानिया

#Stay
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मुकेश सिंघानिया

1212 1122 1212 22
सुकून   चैन   का   कब   से   है  इंतजार  मुझे
भटक   रहा  हूँ   कहीं   तो   मिले  करार  मुझे/1/

कदम  कदम  पे  ही  मिलती  रही है  हार मुझे
हर  एक   मौज   खुशी  है  मिली  उधार  मुझे/2/

तमाम   उम्र   ही    जद्दोजहद    में   गुजरी  है
खुलूसे  दिल  से   मुकद्दर   कभी  पुकार  मुझे/3/

कभी  तो  मुझको  भी  मौका  दे मुस्कुराने का
सता   रहे  हैं   यूँ   दिन  रात  गम  हजार मुझे/4/

तरीके   तौर    रवायत    निभाने   के   खातिर
तलाश  करते  हैं   शिद्दत  से   रोज  यार  मुझे/5/

जले   है    हाथ   मेरे    तो    चरागां   करने में
हो   अपने  आप   में  भी   कैसे  एतबार  मुझे/6/

मेरी  रजा  के  बिना  भी  खयाल  आते हैं  वो
नही  है  मेरे  ही  दिल  पर  भी इख्तियार मुझे/7/

पकड़ के उंगली मेरी चल रहे थे जो कल तक
समझ  रहे  हैं  वो  बच्चे  ही  अब  गवांर मुझे/8/

कदम  कदम  पे   नजर  आयी  भूख  बेकारी
दिखाई  दी  न   कहीं  पर   कभी  बहार  मुझे/9/

मेरी  कलम  से  निकलते हैं रंजो गम ही सदा 
समझते   जहन  जदा   लोग  है  बिमार  मुझे/10/

लिखूं क्या उसके लिए जिसकी मैं लिखावट हूँ 
हुआ है  खुश  वो पिता  हर समय संवार मुझे/11/

मुकेश सिंघानिया #Sunrise

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मुकेश सिंघानिया

1212 1122 1212 22 
सुकून   चैन   का   कब   से   है  इंतजार  मुझे
भटक   रहा  हूँ   कहीं   तो   मिले  करार  मुझे/1/

कदम  कदम  पे  ही  मिलती  रही है  हार मुझे
हर  एक   मौज   खुशी  है  मिली  उधार  मुझे/2/

तमाम   उम्र   ही    जद्दोजहद    में   गुजरी  है
खुलूसे  दिल  से   मुकद्दर   कभी  पुकार  मुझे/3/

कभी  तो  मुझको  भी  मौका  दे मुस्कुराने का
सता   रहे  हैं   यूँ   दिन  रात  गम  हजार मुझे/4/

तरीके   तौर    रवायत    निभाने   के   खातिर
तलाश  करते  हैं   शिद्दत  से   रोज  यार  मुझे/5/

जले   है    हाथ   मेरे    तो    चरागां   करने में
हो   अपने  आप   में  भी   कैसे  एतबार  मुझे/6/

मेरी  रजा  के  बिना  भी  खयाल  आते हैं  वो
नही  है  मेरे  ही  दिल  पर  भी इख्तियार मुझे/7/

पकड़ के उंगली मेरी चल रहे थे जो कल तक
समझ  रहे  हैं  वो  बच्चे  ही  अब  गवांर मुझे/8/

कदम  कदम  पे   नजर  आयी  भूख  बेकारी
दिखाई  दी  न   कहीं  पर   कभी  बहार  मुझे/9/

मेरी  कलम  से  निकलते हैं रंजो गम ही सदा 
समझते   जहन  जदा   लोग  है  बिमार  मुझे/10/

लिखूं क्या उसके लिए जिसकी मैं लिखावट हूँ 
हुआ है  खुश  वो पिता  हर समय संवार मुझे/11/ #height

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मुकेश सिंघानिया

वो गुजरे पल की निशानी कहीं मिले तो कहो
नादानियों  की  कहानी  कहीं  मिले  तो कहो

भटक  रहा  हूँ  मैं   बरसों  से   ढूंढते  दर दर
ये  जिन्दगी  के  मआनी  कहीं मिले  तो कहो

वो गुजरे पल की निशानी कहीं मिले तो कहो नादानियों की कहानी कहीं मिले तो कहो भटक रहा हूँ मैं बरसों से ढूंढते दर दर ये जिन्दगी के मआनी कहीं मिले तो कहो

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मुकेश सिंघानिया

रोज के हादसों का दिल पे भी असर आता है

आदमी   गाहे-बगाहे   यूँ   ही   डर   जाता है


चोट  करती है  जो   गहराई तलक  शिद्दत से

उम्र भर   दाग  भी   चेहरे पे   नजर  आता है


शिद्दतों  से जो  तराशा  गया पत्थर भी कभी

पारसाई   सा   वो   किरदार   निखर आता है


यूँ  न  बरपाओ   कहर  इंतेहां  है जुल्मत की

खौफ  मासूम  की  आंखों  में  उतर  आता है


हसरतें   रोज  ही  दम   तोड़ती है चौखट पर

जेब  खाली  लिए  जब  बाप वो घर आता है


झूठ  की  भीड़ में  दम  तोड़ती सच की सांसे

शोर ही   शोर   सभी   ओर  जो भर आता है


बेच  आते है  सभी  शौक  जरूरत  के  लिए

शाम  होते  ही  थका  जिस्म  इधर   आता है


वक्त  के  साथ   बदलना  नही  आता  है हमें

गैर  को  अपना   बनाने   का  हुनर  आता है


दुश्मनों  को  भी  करे  माफ जो धोखे खाकर

आते आते  ही  किसी  पर  ये  असर आता है

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मुकेश सिंघानिया

हर खुशी हर ख्वाहिशें बस ख्वाब में रख्खे रहे
हर  तमन्ना   शौक   इज्तिराब   में  रख्खे  रहे

जुगनुओं के दम पे रोशन  हो रहे हैं अब जहां
दीप त्यौहारी   दिये   मेहराब  में   रख्खे   रहे

हर खुशी हर ख्वाहिशें बस ख्वाब में रख्खे रहे हर तमन्ना शौक इज्तिराब में रख्खे रहे जुगनुओं के दम पे रोशन हो रहे हैं अब जहां दीप त्यौहारी दिये मेहराब में रख्खे रहे

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