वो गुजरे पल की निशानी कहीं मिले तो कहो
नादानियों की कहानी कहीं मिले तो कहो
भटक रहा हूँ मैं बरसों से ढूंढते दर दर
ये जिन्दगी के मआनी कहीं मिले तो कहो
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मुकेश सिंघानिया
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मुकेश सिंघानिया
हर खुशी हर ख्वाहिशें बस ख्वाब में रख्खे रहे
हर तमन्ना शौक इज्तिराब में रख्खे रहे
जुगनुओं के दम पे रोशन हो रहे हैं अब जहां
दीप त्यौहारी दिये मेहराब में रख्खे रहे