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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White हम भी चमकेंगे आसमांँ में सितारों की तरह,
अपनी उल्फत के भी किस्से जहाँ सुनाएगा।

रिपुदमन झा "पिनाकी"
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #चमकेंगे
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White धीरज मत खो, रख हिम्मत, तू कदम बढ़ा मंज़िल की ओर।
कब तक रात रहेगी काली, आएगी फिर उजली भोर।।
देर भले हो सुख आने में, लेकिन एक दिन आएगी।
फूल खिलेंगे खुशहाली के, हर सूरत मुस्काएगी।
बेरंगी जीवन में सबके, रंग भरेंगे सतरंगी।
अपने भी जो साथ नहीं वो, चलेंगे कल बनके संगी।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #हिम्मत_रख
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

New Year 2025 गया पुराना वर्ष लिए नव हर्ष आज नववर्ष आया।
कुसुमित पुलकित हर मानव है, हर हृदय आज है हर्षाया।।

फिर आया है आशाओं की नव किरण लिए नववर्ष आज।
जन जीवन सुख आरोग्य भरा होगा जग का उत्कर्ष राज।।

नववर्ष आगमन से जन में, आशा की नई किरण जागी।
बीते वर्षों की दुखद घड़ी, की यादें मन से है त्यागी।।

साकार नयन से हर मानव, कर रहा  अभिनंदन नववर्ष का।
और खिन्न हृदय से लोग सभी, छोड़े हैं आंचल गत वर्ष का।।

कर रहे कामना यही सभी, यह वर्ष तो अच्छा बीतेगा।
अपने शुभ आशीर्वादों से, जीवन खुशियों से भर देगा।।

दुःख, रोग, क्लेश, संताप मिटे यही कामना करते मंगलमय।
अब कोई मुसीबत ना आए, जीवन बीते सबका सुखमय।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #Newyear2025
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White आजकल खुद को बहुत जकड़ा हुआ पाता हूँ मैं।
बंध  गया  हूँ  दायरे  में   खुल  नहीं  पाता  हूँ  मैं।
हो  नहीं  पाता  हूँ  बाहर  उलझनों  की  क़ैद  से-
ज़िन्दगी  के  साथ  खुल  कर  रह  नहीं पाता  हूँ।

बोझ इक मन पर लिए हर दिन जिए जाता हूँ मैं।
सोच  के  अंधे  कुंए  में   रोज़  खो  जाता हूँ  मैं।
है  नहीं  मिलता किनारा, हल  नहीं मिलता  कोई-
ढूंढने  में  ख़ुद  को ख़ुद से  शून्य  हो  जाता हूँ  मैं।

कशमकश से मन भरा है कुछ न कर पाता हूँ।
वक्त के साँचे में क्यूँ कर ढल नहीं पाता हूँ मैं।
हो रहा है जो उसे स्वीकार करता जा औ चल-
सोच मत पगले अधिक मन को भी समझाता हूँ मैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #कशमकश
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

Unsplash ढूंढने निकले  हैं  जब हम आबोदाना।
चल पड़ेंगे जब जहां कह दो है जाना।
बांध  कर  सामान चल  देंगे सफ़र पर-
अब कहां इसके सिवा अपना ठिकाना।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #आबोदाना
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White किसी  की  नजर  में बुरे हम बने  हैं।
किसी  की  नजर  में भले हम बने हैं।
मगर लोग ऐसे भी हमको मिले कुछ-
कि  जिनके लिए हम भले ना बुरे हैं।

जो जैसे थे वैसा ही हमको बताया।
हमारी छवि को जगत को दिखाया।
किया हमने स्वीकार हर भावना को-
हमारे लिए  जिसने  जैसा  बनाया।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #sad_dp
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White क्या धनतेरस क्या दीवाली।
कैसी खुशियां और खुशहाली।
चमक रौशनी के सब फीके -
जीवन काजल जैसी काली।

न  उत्साह  न  कोई  उमंग।
खुशियों की नहीं कोई तरंग।
मन आंगन सूना - सूना है -
बुझी  रौशनी  उतरा   रंग।

अपनों के खोने का ग़म है।
भीगी पलकें आंखें नम है।
बुझा हुआ है आस का दीया-
अंतहीन अंतस  में  तम है।

दिन बेनूर सी बदली वाली।
रात अमावस जैसी काली।
कैसे मन का दिया जलाएं-
कैसे  मनाएं  हम  दीवाली।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #ग़म
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White छाती से चिपक कर एक बच्चा रोता है बिलखता रहता है
नन्हा शिशु भूख की लपटों मे हर घड़ी झुलसता रहता है।।
माँ के आँचल में दूध नहीं पानी भी आँख का सूखा है
क्या करे किस तरह शांत करे उसका बालक जो भूखा है।।
मानस कोई भला दया कर दे इसलिए वो हाथ पसारे है
लोगों के दया की आस लिए लोगों की ओर निहारे है।।
तन पर कुछ कपड़ों का टुकड़ा आँखों में लाज का परदा है
लोगों की नजर कँटीली है अंग प्रत्यंग उसका छिलता है।।
ममता रोती है सिसक सिसक क्या करे नहीं कुछ सूझ रहा
क्या मजबूरी है उस मां की नन्हा बालक नहीं बूझ रहा।।
या करे खुदकुशी बच्चे संग या बिक जाए बाजारों में
आँखों को मूंदे खड़ी खड़ी वो पड़ी है गहन विचारों में।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #mothers_day  कविता

#mothers_day कविता

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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White विजयदशमी पर विजय उत्सव मनाती है धरा।
सीतापति  श्रीराम  की  गाथा  सुनाती  है धरा।।

दहन होता आज है रावण और कुंभकर्ण, मेघनाद।
गूंजता  जयघोष  है  करतल  करे  चहुंओर  नाद।।

हर्ष है सुर,नर, मुनि में आज हर्षित दिग दिगंत।
राम  के  हाथों हुआ,  पापी दशानन का है अंत।।

तीनों लोकों पर किया प्रभु राम ने उपकार है।
अहंकारी  दुष्ट  रावण  का  किया  संहार  है।।

जीत है यह धर्म की, यह सत्य की,परमार्थ की।
राम ने  है नींव  रख्खी,  जगत  में  पुरुषार्थ की।।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #Dussehra
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रिपुदमन झा 'पिनाकी'

White आँखों का समंदर ना सूखे मेरे दिल का सिसकना कम ना हो
मेरे दर्द कभी न सुकूं पाए मेरे ज़ख्म का कोई मरहम ना हो
मेरा चैन रहे बेचैन सदा मेरी रूह में टीस हो कसक रहे
मेरी सांस चले पर जान न हो मेरी रूह रहे धड़कन न रहे
मेरे पास मेरे अपने तो क्या ग़ैरों के भी साये साथ ना हो
दुनिया में वजूद न मेरा रहे मेरा नाम भी मेरे साथ ना हो!!

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©रिपुदमन झा 'पिनाकी' #sad_quotes  'दर्द भरी शायरी'

#sad_quotes 'दर्द भरी शायरी'

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