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amitranjan3648
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Amit Ranjan

Mujhe pasand hai shayri karna

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Amit Ranjan



.....
चले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम ने 
बढ़ाने पर पतंग आए तो चर्ख़ी खोल दी हम ने 

पड़ा रहने दो अपने बोरिए पर हम फ़क़ीरों को 
फटी रह जाएँगी आँखें जो मुट्ठी खोल दी हम ने 

कहाँ तक बोझ बैसाखी का सारी ज़िंदगी ढोते 
उतरते ही कुएँ में आज रस्सी खोल दी हम ने 

फ़रिश्तो तुम कहाँ तक नामा-ए-आमाल देखोगे 
चलो ये नेकियाँ गिन लो कि गठरी खोल दी हम ने 

तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता 
तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने 

पुराने हो चले थे ज़ख़्म सारे आरज़ूओं के 
कहो चारागरों से आज पट्टी खोल दी हम ने 

तुम्हारे दुख उठाए इस लिए फिरते हैं मुद्दत से 
तुम्हारे नाम आई थी जो चिट्ठी खोल दी हम ने

©Amit Ranjan
  #agni
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Amit Ranjan

Hello friends 

.....
चले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम ने 
बढ़ाने पर पतंग आए तो चर्ख़ी खोल दी हम ने 

पड़ा रहने दो अपने बोरिए पर हम फ़क़ीरों को 
फटी रह जाएँगी आँखें जो मुट्ठी खोल दी हम ने 

कहाँ तक बोझ बैसाखी का सारी ज़िंदगी ढोते 
उतरते ही कुएँ में आज रस्सी खोल दी हम ने 

फ़रिश्तो तुम कहाँ तक नामा-ए-आमाल देखोगे 
चलो ये नेकियाँ गिन लो कि गठरी खोल दी हम ने 

तुम्हारा नाम आया और हम तकने लगे रस्ता 
तुम्हारी याद आई और खिड़की खोल दी हम ने 

पुराने हो चले थे ज़ख़्म सारे आरज़ूओं के 
कहो चारागरों से आज पट्टी खोल दी हम ने 

तुम्हारे दुख उठाए इस लिए फिरते हैं मुद्दत से 
तुम्हारे नाम आई थी जो चिट्ठी खोल दी हम ने

©Amit Ranjan #agni
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Amit Ranjan

अक्सर  दूर निकल जाते हैं
 शायद खुद  के  संग ही वक़्त बिताने .
एक खूबसूरत नज़्म लिखने.  
साहिल की रेत पर कहीं .
दूर से आती  झिलमिलाती लहरों संग
 कुछ लम्हे बिताने 
 झूमते  पेड़ को देखते रहना देर तक 
अक्सर दूर निकल जाते हैं .
खोये लम्हों में , कुछ लम्हें  ढूंढ़ने 
शायद

©Amit Ranjan
  #agni
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Amit Ranjan

सावन की सुहानी सुबह में, रिमझिम बरसती मेघ की बूंदों से सजती बजती संगीत ने, जब स्पंदित हृदय को कर दिया।
विरह में व्याकुल,व्यथित  एक मन की अभिलाषा को मैंने भी शब्दों,छंदों में पिरो कर, कुछ इस भांति उजागर किया।।

आशा है आप सबको पसंद आए।

और तू आए.....

कभी यूँ ही मौसम हो खुशनुमा,
और तू आए।
तेरे दीद की मांगता रहूँ दुआ,
और तू आए।।
काली घटाएं घिर आए,
अंधेरा हरसू कर जाए।
जलाऊँ जैसे ही मैं शम्मा,
और तू आए।
तेरे दीद की मांगता रहूँ दुआ,
और तू आए।।
बरसने लगे बूंदे सावन की,
बढ़ने लगे जब चाह मिलन की।
खुदा भी कुछ पल हो मेहरबां,
और तू आए।।
तेरे दीद की मांगता रहूँ दुआ,
और तू आए।।
तेरी खयालों में रहूँ खोये,
आधे जागे आधे रहूँ सोये।
तुझे ख्वाब में जैसे दूँ मैं सदा,
और तू आए ।।
तेरे दीद की मांगता रहूँ दुआ,
और तू आए।।
जागूँ सुबह तुझे ढूंढे नज़र,
खोलूं झरोखा देखूं डगर।
तरसी अँखियों से खोलूं बुहा
और तू आए।।
तेरे दीद की मांगता रहूँ दुआ,
और तू आए।।

...

©Amit Ranjan
  #Behna
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Amit Ranjan





जुर्म-ए-उल्फ़त पे हमें लोग सज़ा देते हैं 
कैसे नादान हैं शो'लों को हवा देते हैं 

हम से दीवाने कहीं तर्क-ए-वफ़ा करते हैं 
जान जाए कि रहे बात निभा देते हैं 

आप दौलत के तराज़ू में दिलों को तौलें 
हम मोहब्बत से मोहब्बत का सिला देते हैं

तख़्त क्या चीज़ है और लाल-ओ-जवाहर क्या हैं 
इश्क़ वाले तो ख़ुदाई भी लुटा देते हैं 

हम ने दिल दे भी दिया अहद-ए-वफ़ा ले भी लिया 
आप अब शौक़ से दे लें जो सज़ा देते हैं

©Amit Ranjan
  #brokenbond
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Amit Ranjan

छुपा रखा था यूँ ख़ुद को कमाल मेरा था 
किसी पे खुल नहीं पाया जो हाल मेरा था

हर एक पा-ए-शिकस्ता में थी मेरी ज़ंजीर 
हर एक दस्त-ए-तलब में सवाल मेरा था

मैं रेज़ा रेज़ा बिखरता चला गया ख़ुद ही 
के अपने आप से बचना मुहाल मेरा था

हर एक सम्त से संग-ए-सदा की बारिश थी 
मैं चुप रहा के यही कुछ मआल मेरा था

ता ख़याल था ताज़ा हवा के झोंके में 
जो गर्द उड़ा के गई है मलाल मेरा था

मैं रो पड़ा हूँ ‘तबस्सुम’ सियाह रातों में 
ग़ुरुब-ए-माह में शायद ज़वाल मेरा था ............मुग़नी तबस्सुम

©Amit Ranjan
  #chaand
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Amit Ranjan

अच्छी थी पगडंडी अपनी।
सड़कों पर तो जाम बहुत है।।

फुर्र हो गई फुर्सत अब तो।
सबके पास काम बहुत है।।

नहीं जरूरत बूढ़ों की अब।
हर बच्चा बुद्धिमान बहुत है।।
 
उजड़ गए सब बाग बगीचे।
दो गमलों में शान बहुत है।।

मट्ठा, दही नहीं खाते हैं।
कहते हैं ज़ुकाम बहुत है।।

पीते हैं जब चाय तब कहीं।
कहते हैं आराम बहुत है।।

बंद हो गई चिट्ठी, पत्री।
फोनों पर पैगाम बहुत है।।

आदी हैं ए.सी. के इतने।
कहते बाहर घाम बहुत है।।

झुके-झुके स्कूली बच्चे।
बस्तों में सामान बहुत है।।

सुविधाओं का ढेर लगा है।
पर इंसान परेशान बहुत है।।

©Amit Ranjan
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Amit Ranjan

अक्सर  दूर निकल जाते हैं
 शायद खुद  के  संग ही वक़्त बिताने .
एक खूबसूरत नज़्म लिखने.  
साहिल की रेत पर कहीं .
दूर से आती  झिलमिलाती लहरों संग
 कुछ लम्हे बिताने 
 झूमते  पेड़ को देखते रहना देर तक 
अक्सर दूर निकल जाते हैं .
खोये लम्हों में , कुछ लम्हें  ढूंढ़ने 
शायद

©Amit Ranjan
  #kinaara
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Amit Ranjan

अक्सर  दूर निकल जाते हैं
 शायद खुद  के  संग ही वक़्त बिताने .
एक खूबसूरत नज़्म लिखने.  
साहिल की रेत पर कहीं .
दूर से आती  झिलमिलाती लहरों संग
 कुछ लम्हे बिताने 
 झूमते  पेड़ को देखते रहना देर तक 
अक्सर दूर निकल जाते हैं .
खोये लम्हों में , कुछ लम्हें  ढूंढ़ने 
शायद

©Amit Ranjan
  #kinaara
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Amit Ranjan

ishk jise kehte hain wo gmon ka samandar hai ye mere hi nahi har Premi ke ander hai

©Amit Ranjan
  #tootadil
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