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shailendrathakur9545
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Shailendra Thakur

शून्य हूँ

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Shailendra Thakur

दिल के मेघ उमड़ आये, 
आँखों में बरखा छायी है।
याद तुम्हारी बड़ी ही निर्मम,
आँखों में जल भर लायी है।
अब मै धैर्य धरु कैसे?
 खुद पर मेरा अधिकार नहीं।
तुम हो तो जीवन है मेरा,
 तुम बिन कुछ स्वीकार नहीं।
तुम बिन कुछ स्वीकार नहीं।।

©Shailendra Thakur #soulmate  Aarchi Advani Saini Pooja Udeshi Agrahari Harsh Kumar Madhu Chauhan✍️ Anshu writer

#soulmate Aarchi Advani Saini Pooja Udeshi Agrahari Harsh Kumar Madhu Chauhan✍️ Anshu writer #लव

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Shailendra Thakur

खफ़त नाराज होकर हमने उन्हें सजा दे डाली,

कुछ पल दूर रहो हमसे भारी बात कह डाली,

 सोचा था दूर रहकर कुछ पल उन्हें तड़पाएँगे ,

कम्बख़्त खुद के पैरों पे कुल्हाड़ी दे डाली।

कतरा-कतरा ख़ून का जहन से गिरे जा रहा है

'प्रसंग' ये सजा तूने  ख़ुद को दे डाली।

©Shailendra Thakur #apart
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Shailendra Thakur

कुछ गिर गया है आँख में 
कहकर हम रो पड़े

©Shailendra Thakur #drowning
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Shailendra Thakur

लाख़ों गम भुलाये है मैने तेरी जुल्फों के साये में


यूँ ही नही तेरी गोद का सहारा लिया करता...।

©Shailendra Thakur #Sea
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Shailendra Thakur

काश मेरे इश्क़ की मियांन इतनी लंबी होती


मैं तुझे सोचता और तू मेरी होती।।।

©Shailendra Thakur #Stars
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Shailendra Thakur

बाँध दूं चाँद तेरे आँचल में संजोकर,
 करलू आलिंगन ह्रदय के कोर से।
बहती भावनाओं को धागे में पिरोकर, 
भेज दूं एक माला माँ की ओर से।
रखना तुम इसे अपना समझकर, 
नित गले ह्रदय से सटाकर, 
आसीष भेजेगी माँ अपनी ओर से।
एहसास भेजूँगा मै मेरी ओर से।
बाँध दूं चाँद तेरे आँचल में संजोकर,
 करलू आलिंगन ह्रदय के कोर से...1
तुम आओ नद क्षिप्रा सी बहकर
*प्रसंग* बाँध लूँ प्रीत की डोर से।
ठहर जाना कुछ पल  तुम थककर
समेट लूँगा तुम्हें नयन के जोर से।
करना आराम एक क्षण रुककर,
दो पल मेरी बाहों में झुककर,
भेंट देना तुम रज अपनी ओर से
लगा लूँगा सीने से मैं मेरी ओर से।
बाँध दूं चाँद तेरे आँचल में संजोकर,
 करलू आलिंगन ह्रदय के कोर से।...2
ये प्रेम कि आग धरूँ कहाँ दबाकर,
जो भेजी है तुमने आँखों कि ओर से।
कुछ डाल दो पानी तुम भी हंसकर,
वरना मर जाऊँगा मैं बैचेनी के जोर से।

©Shailendra Thakur सँजोकर

#intimacy

सँजोकर #intimacy #कविता

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Shailendra Thakur

राहगीर हूँ पर जाना कहाँ... पता नही।
मंजिल की तलाश है पर ठिकाना कहाँ..पता नही।
गिरते सम्भलते चल रहे है.....शायद पहुँच जाए,
ये जिंदगी का सफर  है पर कुछ... पता नहीं।
देखा है बड़ी बड़ी कस्तियों को तूफानों में डूबते हुये।
छोटी नोकाओं को लहरों  से जूझते हुए।
पर कौन कब पार लग  जाए...पता नहीं।
आज के दौर-ए-राहत में भी थकान महसूस होती है।
मरघटों की हकीकत पर  जान अजान होती है।
कब थमेगा ये सिलसिला...पता नहीं।
कोई निवाले को तड़पता है कोई जीने को तरसता है।
कब हटेगी ये अंधेरी रात.....पता नही।। 
अमावस के बाद पूर्णिमा का आना तो तय है,
गहरी अंधेरी रातों का जाना भी तय है।
पर कब खिलेगा वो चाँद..पता नहीं ।
राहगीर हूँ पर जाना कहाँ... पता नही|
शैलेन्द्र ठाकुर"प्रसंग"

©Shailendra Thakur राहगीर

#booklover

राहगीर #booklover #विचार

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Shailendra Thakur

दिल ए नादान तुझे हुआ क्या है..?

आखिर इस मर्ज की दवा क्या है...?

हमें उनसे है वफ़ा की उम्मीद

जो नही जानते वफ़ा क्या है!!!!

©Shailendra Thakur
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Shailendra Thakur

उत्तलिफ़ मुट्ठी भर दोआब लिए बैठे हैं,

नदियों से जाकर कहदो अपनी औकाद में रहें,

प्रसंग निगाहों में समंदर लिए बैठे हैं।।

©Shailendra Thakur #MereKhayaal  ARVIND YADAV 1717 Dr Imran Hassan Barbhuiya Suman Zaniyan

#MereKhayaal ARVIND YADAV 1717 Dr Imran Hassan Barbhuiya Suman Zaniyan

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Shailendra Thakur

हाँ हूँ *प्रसंग* , मैं हूँ अनंत।
नर थंभ हूँ, द्विज दंभ हूँ।
परईश हूँ, जगदीश हूँ।
घन, अम्बर, चपला तीश हूँ।
अवनि मैं हूँ, मैं शून्य हूँ।
सिन्धु का सारा तोन्य हूँ।
मैं ब्रम्ह हूँ, मैं काल हूँ।
जीता जगता कंकाल हूँ।
तू मुझसे है, सब मुझमें हैं।
पद-कमलों से पाताल हूँ
जीता जगता कंकाल हूँ।
मैं व्याल हूँ, विकराल हूँ।
हाँ मैं ही तो महाकाल हूँ।
मैं ही तो महाकाल हूँ।
शैलेंद्र ठाकुर *प्रसंग*

©Shailendra Thakur #mahashivratri  Suman Zaniyan ARVIND YADAV 1717 Dr Imran Hassan Barbhuiya

#mahashivratri Suman Zaniyan ARVIND YADAV 1717 Dr Imran Hassan Barbhuiya

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