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vinayaksharma8048
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sunday wali poem

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sunday wali poem

क्रांति की तलवार में धार
वैचारिक पत्थर पर
रगड़ने से ही आती है

(भगत सिंह)

©sunday wali poem #Lights
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sunday wali poem

कभी - कभी जिंदगी
'1857 की क्रांति' 
जैसी लगती है
जिसमें हो बहुत कुछ 
रहा है
मगर
संगठित कुछ भी नहीं है

©sunday wali poem #Sitaare
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sunday wali poem

मैं देख रहा हूँ
झरी फूल से पँखुरी
मैं देख रहा हूँ अपने को ही झरते
मैं  चुप हूँ
वह मेरे भीतर वसंत गाता है

(अज्ञेय)

©sunday wali poem
  #DryTree
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sunday wali poem

जो भी विचार 
स्वयं के विरुद्ध
जाता है
वह स्वयं को ही
चाटना शुरु कर देता है

(दूधनाथ सिंह)

©sunday wali poem #adventure
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sunday wali poem

तेरे विचार के तार अधिक
जितना चढ़ सके चढ़ाता चल
पथ और नया खुल सकता है
आगे को पांव बढ़ाता चल

(रामधारी सिंह दिनकर)

©sunday wali poem #cycle
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sunday wali poem

जो कभी रो नहीं सकता 
वो कभी प्रेम भी नहीं कर सकता
रूदन और प्रेम
दोनों एक ही स्रोत से निकलते हैं

(प्रेमचंद)

©sunday wali poem #Tuaurmain
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sunday wali poem

तुम देखना
कभी वो दिखेगा अकेला भाग रहा
तो कभी गुमनाम किसी भीड़ में,
कभी बिलकुल शांत
तो कभी
लड़ रहा होगा हर शख्स से
हां, 
तुमसे भी,
कभी पाओगे तुम उसे अपने बेहद करीब
तो कभी होगा वो तुमसे काफी दूर,
विचारों में भी,
मगर तुम देखना
तुम्हारे प्रेम में पड़ा इंसान
सबकुछ कर रहा होगा
बस तुम्हारे लिए

(विनायक शर्मा)

©sunday wali poem #walkalone
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sunday wali poem

जब तक आप
किसी भी परिस्थिति में
स्वयं को ढालकर
लक्ष्य प्राप्ति के लिए 
मेहनत करना नहीं सीखते 
तब तक परिस्थितियाँ
आपके अनुकूल कभी नहीं
हो सकती

©sunday wali poem #kitaabein
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sunday wali poem

किसी का अक्समात 
चले जाना जिन्दगी से
दुख देता है
उस पीड़ा में आप
रोते हैं, चीखते हैं,
समय के साथ ये घुटन
हिस्सा बन जाती है
 जीवन का
जिसपर 
न आप रो सकते हैं,
न चीख सकते हैं

(विनायक शर्मा)

©sunday wali poem #writer
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sunday wali poem

अपने आंसुओं को स्वयं
पोंछने से भी अच्छा है
इतने मजबूत बनो कि
आंसू बहाने की नौबत 
ही न आए

©sunday wali poem
  #chaand
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