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nomanzaidi6348
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naved Zaidi

Lyricist poet writer

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naved Zaidi

खंडहर से दिल में फिर कोई तमन्ना घर बनाती है
मेरे कमरे में इक नन्ही सी चिड़िया घर बनाती है
निगल लेगी जवां बच्चों को ये खूनी सियासत तो
ना जाने किस तमन्ना में ये बुढ़िया घर बनाती है
जलाकर राख कर देती है इक लम्हे में शहरों को
सियासत    बस्तियों को रोज कूड़ाघर बनाती है

©naved Zaidi
  #खूनी सियासत

#खूनी सियासत #शायरी

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naved Zaidi

मेरी गर्लफ्रेंड को तो पादना भी जुर्म लगता है
वो कहती है नहीं होता ये इज्ज़त के लिए अच्छा
जो हम पादें तो कहती है शरम आती नहीं हमको
जो खुद पादे तो कहती है कि सेहत के लिए अच्छा




शर्म तुझको जरा ना आती है
तेरी आदत यही बताती है
जैसे मिस इंडिया बन गई हो वो
पादकर ऐसे मुस्कुराती है

©naved Zaidi
  #गैस_त्रासदी
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naved Zaidi

#हमारी संस्कृति

#हमारी संस्कृति #शायरी

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naved Zaidi

वज़ीरों(नेता, मंत्रीगण) की अदाकारी जो पहले थी सो अब भी है
वहीं नस नस में मक्कारी जो पहले थी सो अब भी है
वही मस्ज़िद वही मंदिर वही नफरत भरे भाषण
वही तलवार दो धारी जो पहले थी सो अब भी है
ख़ुदा रक्खे वो साढ़े आठ बच्चों की है मां लेकिन
अदाओं में वो बमबारी जो पहले थी सो अब भी है

©naved Zaidi
  #poetry

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naved Zaidi

अगर दुश्मन की थोड़ी सी मरम्मत और हो जाती
तो फिर उल्लू के पट्ठे को  नसीहत  और हो जाती
लगा करती हज़ारों आशिकों को बेखता फांसी
हसीनों की अगर घर की अदालत और हो जाती


नज़र को मिलाकर नज़र लूट लेंगे
ये आराम दिल का जिगर लूट लेंगे
हसीनों का हरगिज़ भरोसा ना करना
ख़ुदा की कसम घर का घर लूट लेंगे

©naved Zaidi
  #लड़कियों का ज़ुल्म

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naved Zaidi

मुहब्बत करने वालों में ये झगड़ा डाल देती है
सियासत दोस्ती की जड़ में मट्ठा डाल देती है
तवायफ की तरह अपने ग़लत कामों के चेहरे पर
हुक़ूमत मन्दिर और मस्ज़िद का पर्दा डाल देती है
हुक़ूमत मूंह भराई के हुनर से हो जाओ वाकिफ 
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है a

©naved Zaidi
  #फ्रेंडशिप for ever do not talk about dirty politics

#फ्रेंडशिप for ever do not talk about dirty politics #शायरी

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naved Zaidi

गले मिलने को आपस में दुआएं रोज आती हैं
की मंदिर मस्ज़िद के दरवाजे पे माएँ रोज आती हैं
अभी रोशन हैं चाहत के दिए हम सबकी आंखों में
बुझाने के लिए पागल हवाएं रोज़ आती हैं
ये सच है नफरतों की आग ने सब कुछ जला डाला
मगर उम्मीद की ठंडी हवाएं रोज आती हैं

©naved Zaidi
  #hopeful
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naved Zaidi

मैं दहशतगर्द था मरने पे बेटा बोल सकता है
हुक़ूमत के इशारों पर तो मुर्दा बोल सकता है
यहां पर नफरतों ने केसे कैसे गुल खिलाएं हैं
लूटी इज्ज़त बता देगी दुपट्टा बोल सकता है
हुक़ूमत की तवज्जो चाहती है ये जली बस्ती
अदालत पूछना चाहे तो मलबा बोल सकता है
बहुत सी कुर्सियां इस मुल्क की लाशों पे रक्खी हैं 
ये वो सच है जिसे झुटे पे झुटा बोल सकता है

©naved Zaidi
  #खूनी सत्ता

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naved Zaidi

तेरी बातों को छुपाना नहीं आता है मुझे
तूने खुशबू मेरे    लहज़े में  बसा रक्खी है
तेरी आंखों की कशिश कैसे तुझे बतलाऊं
इन   चिराग़ों ने  मेरी  नींद उड़ा  रक्खी है

©naved Zaidi
  #For❤U

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naved Zaidi

शजर (पेड़) के कद से ना शाखों की लंबाई से डरता हूं
ना पर्वत से ना पर्वत की में ऊंचाई से डरता हूं
समन्दर नापना भी चुटकियों का काम है लेकिन 
मै तेरी झील सी आंखों की गहराई से डरता हूं

©naved Zaidi
  #for your beloved ones

#for your beloved ones #शायरी

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