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vivekkumarpandey8541
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vivek kumar pandey

शायर

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vivek kumar pandey

 ## कुछ लम्हा जो याद आता है

## कुछ लम्हा जो याद आता है

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vivek kumar pandey

हर कदम हम मृत्यु की तरफ बढ़ा रहे है।
और इसका जशन जन्मदिवस के रूप में धूम धाम से मना रहे है।

कवि विवेक कुमार पाण्डेय #अल्फाज
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vivek kumar pandey

अपने एहसासों को यूँ ना दबाया कर।

हर रोज हमें खुली आँखों से झूठे सपने ना दिखाया कर।

जब करती हो इश्क औरों से तो हमे ना सताया कर।

अरे जब नही होती खुद से इश्क के भँवर में पार तुम,

तो दो तरफा इश्क का नाव ना चलाया कर।

डूब गए अहम में बड़े बड़े तैराने में, झूठे इश्क के पतवार भँवर में।

अब यूँ खेवनहार को ना दोषी बताया कर।

             "कवि विवेक कुमार पाण्डेय" ## हकीकत

## हकीकत

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vivek kumar pandey

अपने जज्बातों के शहर में तुम्हें हर एक शाम लिख दिया।

कोरे पन्नो पर ना सही पथरों पर ही तेरा नाम लिख दिया।। 

क्या कहेगा ये दुनिया बिना सोचे ये अंजाम लिख दिया।

पिलाकर मुझे माहुर भी मिटा ना सकेगा ये दुनिया तेरे सम्पूर्ण यादों को।

अरे जब ग्रहण करने से पहले ही विष हमने ये जीवन ,   रूपी आत्मा तुम्हारे नाम लिख दिया ।।

 कवि विवेक कुमार पाण्डेय ##उनकी यांदे

##उनकी यांदे

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vivek kumar pandey

तुम मेरी जिंदगी की एक ऐसी खुशनुमा शाम हो।

जैसे राधा का श्याम सीता का राम हो ।।

मैं मरूँ भी तो तुम्हारी बस्ती में बस्स वँहा एक कफन का इंतेजाम हो।

बेशक दफना देना मुझे उस शमशान में ।।

जँहा मेरे मेहबूब के नाम का जिक्र पहले से सरेआम हो।

तुम से ही शुरू तुम पर ही खत्म मेरी जिंदगी का हर एक पैगाम हो।।



"कवि विवेक कुमार पांडेय " ##मेरी अधूरी डायरी

##मेरी अधूरी डायरी

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vivek kumar pandey

हमने तो सुना था कि मोहोब्बत करना एक अदा होती है।
किसको पता था कि ये अदा ही करने की सजा होती है।।

मुजरिम था मैं उनसे बेइंतहा मोहोब्बत करने का।

और सजा मिली भी तो क्या उनसे दूर रहने का।। 
     
                  "कवि विवेक कुमार पाण्डेय" #अल्फाज
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vivek kumar pandey

##mere alfaaj
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vivek kumar pandey

 ## मुझे जितना दिखा सिर्फ उतना लिखा

## मुझे जितना दिखा सिर्फ उतना लिखा

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vivek kumar pandey

"मैं हूँ राही मंजिल का"
       
    अभी पहुँचा नही हूँ मैं अपनी मंजिल पर।
    उठ खड़ा हुआ एक बेघर राही चलने को।।
     
      टूटा जरूर हूँ किन्तु राह भटका नही।
      रास्तों से जरा कहना मैं चलान अभी भुला नही।।
 
     अभी अभी है गरजा बादल किन्तु अभी बरसा नही। 
     अभी अभी खाई ठोकर लेकिन अभी गिरा नही।।
 
     राही हूँ मैं इस पथ का कभी मुस्किलो से डरा नही।।
                   "(स्वरचित रचना)"
                 कवि विवेक कुमार पाण्डेय ## main hun rahi manjil ka

## main hun rahi manjil ka

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vivek kumar pandey

Moments इत्र से भी कहीं ज्यादा मेहकति है वो। जब वो मेरे पास से गुजरती हैं।कत्ल करती हैं वो  मेरे दिल का जब उनकी नजरें मेरी नजरों से मिलती हैं। सोचता हूँ हर रोज की आज करूँगा उनसे मैं  कुछ गुफ्तगू  लेकिन कमबख्त। पास आते ही उनके ये लब्ज खामोश हो जाती  हैं 
                          कवि विवेक कुमार पाण्डेय ##मेरे लब्ज

##मेरे लब्ज

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