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khushsaifi2243
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Khush Saifi

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Khush Saifi

Today is not easy
Tomorrow is more difficult
But the day after tomorrow will be wonderful

©Khush Saifi #NatureLove
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Khush Saifi

Me usy har roz bas yhi ek jhoot sunne ko phone karta 
Suno, yha koi mas’ala hai tumhari aawaz kat rhi hai

©Khush Saifi #NationalSimplicityDay
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Khush Saifi

#Dedicated_to_all_Shayar 

मैं अपने दौर का शायर हू,
हर दौर से होकर आया हू,
#हाफी से है तहज़ीब चुराई,
#जरयून की मस्ती लाया हू,
#नज्मी के पिंजरे से उड़कर,
मैं जंगल सीता आया हू,
#आमिर के अंदाज मे सुनलो,
#जालीब की बगावत लाया हू,
#गुलज़ार की खुशबु साथ लिए,
मैं सरहद तोड़ कर आया हू,
#जाॅन को मुरसिद माना है,
ताबीज ए #मोहशीन लाया हू,
बचपन मे #फै़ज़ को सुनता था,
#फराज को पढ़कर आया हू,
#सागर से दरवेशी सीखी है,
#नासिर से चर्चा लाया हू,
#दर्द के दर्द को पाला है,
#मीर से मिसरे लाया हू,
#ग़ालिब मेरा साक़ी है,
#जिगर से प्याला लाया हू,
#अमृता रूठी बैठी है,
#साहिर को मनाने लाया हू,
और एक यार मनाना है मुझको,
मैं #बुल्ला बनकर आया हू,
#वारिस का इश्क हकीकी था,
मैं #हीर मिजाजी लाया हू,
#इकबाल को हाथ नहीं डाला,
बस पाऊँ चूम कर आया हू... ✍️

©Khush Saifi
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Khush Saifi

ye na thī hamārī qismat ki visāl-e-yār hotā 

agar aur jiite rahte yahī intizār hotā

©Khush Saifi

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Khush Saifi

तुमसे ही रूठ कर
तुम्ही को याद करते हैं
हमे तो ठीक से
नाराज़ होना भी नहीं आता

©Khush Saifi

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Khush Saifi

बहुत  बुरे  हो  तुम
फिर  भी  तुमसे  अच्छा  कोई  नहीं  लगता

©Khush Saifi

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Khush Saifi

#5LinePoetry तुम्हारी खुशियों के ठिकाने बहुत होंगे मगर,
हमारी बेचैनियों की वजह… बस तुम हो।

©Khush Saifi
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Khush Saifi

मिट्टी में मिला दे की जुदा हो नहीं सकता
अब इससे जयादा मैं तेरा हो नहीं सकता

दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें
रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता

बस तू मेरी आवाज़ में आवाज़ मिला दे
फिर देख की इस शहर में क्या हो नहीं सकता

ऎ मौत मुझे तूने मुसीबत से निकाला
सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता

इस ख़ाकबदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी
क्या इतना करम बादे-सबा* हो नहीं सकता

पेशानी* को सजदे भी अता कर मेरे मौला
आँखों से तो यह क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता

©Khush Saifi

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Khush Saifi

कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा

ये सोच कर कि तेरा इंतज़ार लाज़िम*है
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा

यहाँ तो जो भी है आबे-रवाँ* का आशिक़ है
किसी ने ख़ुश्क नदी की तरफ़ नहीं देखा

वो जिस के वास्ते परदेस जा रहा हूँ मैं
बिछड़ते वक़्त उसी की तरफ़ नहीं देखा

न रोक ले हमें रोता हुआ कोई चेहरा
चले तो मुड़ के गली की तरफ़ नहीं देखा

बिछड़ते वक़्त बहुत मुतमुइन* थे हम दोनों
किसी ने मुड़ के किसी की तरफ़ नहीं देखा

रविश* बुज़ुर्गों की शामिल है मेरी घुट्टी में
ज़रूरतन भी सख़ी* की तरफ़ नहीं देखा

©Khush Saifi

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Khush Saifi

मैं उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह
वो मेरे साथ है बचपन की आदतों की तरह

मुझे सँभालने वाला कहाँ से आएगा
मैं गिर रहा हूँ पुरानी इमारतों की तरह

©Khush Saifi

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