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aparnatiwari4153
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अपर्णा विजय

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अपर्णा विजय

White शिवरात्रि ही
 प्रेम का उत्सव है
 प्रकृति से प्रेम का 
  या 
 प्रकृति के प्रेम का

©अपर्णा विजय #शिवाय
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अपर्णा विजय

हर कामयाबी के पीछे 
 एक बूढ़े पिता की जवानी होती है 
गिरवी होते हैं मां के बेहिसाब ख्वाब, 
ना जाने कितने बेशकीमती लम्हें 
मां-बाप की अधूरी ख्वाहिशों 
की ये कहानी होती है

©अपर्णा विजय #कामयाबी
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अपर्णा विजय

स्मृतियों के जंगल बहुत घने होते हैं,
 बहुत विशाल होते हैं
और दूर ज़हां तक आपकी नजर जाती है 
ये वहां तक अपनी बांहें फैलाए
 आपका स्वागत करने को आतुर रहते हैं
इनको ठिकाना मत बनाइए 
विश्राम कीजिये, सुस्ताइये 
और जितना जल्दी हो सके वापिस आ जाइये
इनको अपना स्थाई पता ना बनाइए
वरना ये आपको जीने नहीं देंगे
कुछ पल ठहरकर वापिस आ जाइये
कुछ लोग कुछ जिम्मेदारियां 
 कुछ दायित्व,आपकी राह देख रहे हैं।

©अपर्णा विजय #स्मृतियों के जंगल
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अपर्णा विजय

समझौता हो तो किश्तों मे 
रिश्तों को बख़्श दिया जाए
ना रश्क हो रिश्तों में कोई 
इनसे बस इश्क किया जाए
जिनमें बसती थी जान कभी 
उन बिन अब कैसे जिया जाएं
बस बहुत हुआ रोना धोना
उसे हंसकर विदा किया जाए

अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय #रिश्ते
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अपर्णा विजय

White कौन है यह चार लोग 
जो  कि सवाल बहुत करते हैं 
हर एक की जिंदगी में ,बवाल बहुत करते हैं 
बिन पोथी के ही ये ज्ञानी सारा ज्ञान रखते हैं
सही गलत के क़ायदों की ये तो खान रखते हैं 
न जाने कितने ही ख्वाबों को ये निगल जाते हैं
और कहते हैं हम तो अपने काम से काम रखते हैं
कहीं शहनाई हो या किसी की अंतिम विदाई हो 
ये तो अपनी ज़बान को  व्यस्त  सरेआम रखते हैं
और कहते हैं कि हम बस अपने काम से काम रखते हैं

©अपर्णा विजय #चार लोग
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अपर्णा विजय

मुस्कुराता है ऊपर से 
अंदर से जो लहू लुहान है
क्या करें बिचारा 
दी गई उसे पुरुष की पहचान है
के मजबूत हो तुम रो नहीं सकते
जो दिखते हो ऊपर से
 वह अंदर हो नहीं सकते
दिल तो तुम्हारा भी,
दुखता है पर बता नहीं सकते
पुरुष हो ना  तुम इसलिए  
ग़म अपना
जमाने को जता नहीं सकते
ओढ़ कर वो
नकली मुस्कुराहट का लिबास
हर दिन सफर करता है
टूटता  है गिरता है 
उठता है और बिखरता है
घर की जरूरत का गुणा भाग कर
तमाम परेशानियों को 
सबसे,छिपाकर
न जाने किन ख्यालों से गुजरता है
प्यार और दुलार की
 उसे भी दरकार होती है
तबीयत तो उसकी भी
 नासाज और बीमार होती है
आसान नहीं है होना आदमी यहां
हिस्से में जिसके धूप कम होती है
दामन थामे इनका शब ए तार होती है ।

अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय #पुरुष
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अपर्णा विजय

मुस्कुराता है ऊपर से 
अंदर से जो लहू लुहान है
क्या करें बिचारा 
दी गई उसे पुरुष की पहचान है
के मजबूत हो तुम रो नहीं सकते
जो दिखते हो ऊपर से
 वह अंदर हो नहीं सकते
दिल तो तुम्हारा भी,
दुखता है पर बता नहीं सकते
पुरुष हो ना  तुम इसलिए  
ग़म अपना
जमाने को जता नहीं सकते
ओढ़ कर वो
नकली मुस्कुराहट का लिबास
हर दिन सफर करता है
टूटता  है गिरता है 
उठता है और बिखरता है
घर की जरूरत का गुणा भाग कर
तमाम परेशानियों को 
सबसे,छिपाकर
न जाने किन ख्यालों से गुजरता है
प्यार और दुलार की
 उसे भी दरकार होती है
तबीयत तो उसकी भी
 नासाज और बीमार होती है
आसान नहीं है होना आदमी यहां
हिस्से में जिसके धूप कम होती है
दामन थामे इनका शब ए तार होती है ।

अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय #पुरुष
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अपर्णा विजय

लिबास की तरह 
दोस्ताना बदलता है
हर दिन ये अपना 
ठिकाना बदलता है
इंसान  है  यह  जनाब
  परिंदा  तो  नहीं  
इसलिये  हर रोज 
आशियाना बदलता है

©अपर्णा विजय #lovebirds
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अपर्णा विजय

।। गांव छोड़ आया ।।

सुकून की चाह में गांव छोड़ आया 
पीपल की ठंडी छांव छोड़ आया 
मां के आंचल की पनाह छोड़ आया 
बाबा का प्यार और बाँह छोड़ आया 

कच्चे मकान की ठाँव छोड़ आया 
शहर की चाह में गांव छोड़ आया
 आम पर कोयल की कूक छोड़ आया 
चूल्हे पर अपनी भूख छोड़ आया 

मिट्टी का घड़ा और प्यास छोड़ आया 
चौका डेहरी मुंडेर उदास छोड़ आया 
पलाश के वो  सारे रंग छोड़ आया 
जीने के तरीके और ढंग छोड़ आया 

कांधे पर यारों के हाँथ छोड़ आया 
रिश्तो की डोर और साथ छोड़ आया
 मधुर बयार का गीत छोड़ आया
बचपन का अपना मीत छोड़ आया 

आंगन मे तुलसी और खाट छोड़ आया 
सितारों से भरी वो रात छोड़ आया 
कंचे की बाजी और जीत  छोड़ आया 
तीज त्योहारों की रीत छोड़ आया 

वो तालाब  पगडंडी खलिहान छोड़ आया 
ख़प्पर का कच्चा मकान छोड़ आया
 पीतल के अपने वो राम छोड़ आया
बापू की छोटी दुकान छोड़ आया 
 
गांव में मैं अपनी जान छोड़ आया
बचपन का अपना वो नाम छोड़ आया।।।।।

©अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय
  #मेरा गांव
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अपर्णा विजय

#5LinePoetry काफिलों के साथ 
बंटती नंही तन्हाईयां 
रुखसत होती है रूह, 
रह जाती है रुसवाईयां
कब हुई हैं  ये  महफिलें  
कमबख्त किसी की
अक्सर तन्हा छोड़ देती हैं 
अपनी ही परछाइयां

©अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय
  #किस्से जिंदगी के
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