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aparnatiwari4153
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अपर्णा विजय

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अपर्णा विजय

मुस्कुराता है ऊपर से 
अंदर से जो लहू लुहान है
क्या करें बिचारा 
दी गई उसे पुरुष की पहचान है
के मजबूत हो तुम रो नहीं सकते
जो दिखते हो ऊपर से
 वह अंदर हो नहीं सकते
दिल तो तुम्हारा भी,
दुखता है पर बता नहीं सकते
पुरुष हो ना  तुम इसलिए  
ग़म अपना
जमाने को जता नहीं सकते
ओढ़ कर वो
नकली मुस्कुराहट का लिबास
हर दिन सफर करता है
टूटता  है गिरता है 
उठता है और बिखरता है
घर की जरूरत का गुणा भाग कर
तमाम परेशानियों को 
सबसे,छिपाकर
न जाने किन ख्यालों से गुजरता है
प्यार और दुलार की
 उसे भी दरकार होती है
तबीयत तो उसकी भी
 नासाज और बीमार होती है
आसान नहीं है होना आदमी यहां
हिस्से में जिसके धूप कम होती है
दामन थामे इनका शब ए तार होती है ।

अपर्णा विजय

©अपर्णा विजय #पुरुष
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अपर्णा विजय

इश्क

इश्क #कविता

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अपर्णा विजय

   जब उदास होती हूं आज भी
   पापा आप ही मुझे याद आते हैं
वक्त बेवक्त  मेरी आंखें  भिगा जाते है 
 बात हो जब भी बेशर्त प्यार की
आपका ही अक्स उभर आता है
   और बिन बुलाए ही ये आंसू 
   मेरे गालों पर ,लुढ़क जाते हैं

©अपर्णा विजय
  #पापा
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अपर्णा विजय

स्वर व्यंजन मात्राओं से सज्जित ,हिंद की में परिभाषा हूं
     जन जन की मैं अभिलाषा हूं,  हां मैं हिंदी भाषा हूं
                            हां मैं हिंदी भाषा हूं
      साहित्य का आधार हूं कविताओं का श्रृंगार हूं
      जिसने बुलाया मेघों  को ,हां मैं वही मल्हार हूं
                       हां मैं वही मल्हार हूं
संस्कृत की कोख से जाई हूं, जनमानस में मैं समाई हूं
   विरासत हूं मैं माटी की ,जाने क्यों फिर भी पराई हूं
                    जाने क्यूं फिर भी पराई हूं
        अमल में ना लाया गया उस फरमान सी हूं
            अपने ही घर मैं अब  मेहमान सी हूं
             अस्तित्व के संघर्ष में अनाम सी हूं
                कोने मैं पड़े पुराने दीवान सी हूं

           तुमसे है विनती और तुमसे ही अनुरोध
            फिर मुझे अपने होठों पर सजा लो
      कविता ही नहीं हकीकत में बना दो हिंदी की बिंदी
           आओ फिर अपनी मां से लाड़ लडाओ
           एक दिन क्यों हर दिन हिंदी दिवस मना लो

©अपर्णा विजय
  #हिंदी
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अपर्णा विजय

यादों के ढ़ेर पर
 कोयले से सुलग रहे हैं,
 मुट्ठी भर ख्वाब, कुछ ख्याल, 
चंद बातें, अधूरे जज़्बात 
जो कभी दहक रहे थे,
 आज राख बनने को तैयार हैं 

और जमाना कहता है ,
कि,क्या हुआ जिंदगी ही तो है
गुज़र ही जाएगी 

बदलाव की उम्मीद पर न जाने कितनी
ख्वाहिशें  इतिहास बन गई,
जिनमें हिम्मत थी वो
आम से खास बन गई
कुछ सवाल रह गई कुछ जवाब बन गई 
और जिन्हें पढ़ा ही नहीं गया
 कुछ स्त्रियां ऐसी किताब बन गई

©अपर्णा विजय
  #स्त्रियां
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अपर्णा विजय

 यादों के ढ़ेर पर
 कोयले से सुलग रहे हैं,
 कुछ ख्वाब, कुछ ख्याल
, कुछ बातें  कुछ जज़्बात 
जो कभी दहक रहे थे, 
आज राख बनने को तैयार हैं 

और लोग  कहते है ,कि क्या हुआ 
जिंदगी ही तो है,गुजर ही जाएगी 

बदलाव की उम्मीद पर
 न जाने कितनी ख्वाहिशें
  इतिहास बन गई,
जिनमें हिम्मत थी वो 
आम से खास बन गई

कुछ सवाल रह गई 
कुछ जवाब बन गई 
और जिन्हें पढ़ा ही नहीं गया
 कुछ स्त्रियां ऐसी किताब बन गई

©अपर्णा विजय
  #स्त्रियां
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अपर्णा विजय

सहेजे जाते हैं बर्तन
हिफाजत से रखे जाते हैं गहने
रफू करवा ली जाती है कोई कीमती साड़ी
स्त्री करवा कर करीने से रखे जाते हैं कपड़े।

सजा लिए जाते हैं, बंदनवार
पुतवा  लिए जाते हैं घर और द्वार
पुरखों की तस्वीर नहीं बढ़ाती अब दीवारों की शान
बंटवारा होता है रिश्तों का और घर बन जाता है मकान।

क्यों  हम रिश्तो को सहेजना भूल जाते हैं
क्यों नहीं  हम इनसे रोजाना इश्क़ फरमाते  हैं
 रफू और  स्त्री की तो इन्हें भी  दरकार होती है
तबीयत तो इनकी भी नासाज और बीमार होती है।

साज सज्जा  तो इन्हें भी खूब  भाती है
खैरियत पूछ ले कोई तो उम्र बढ़ सी जाती है
एक कप चाय और  कैफियत के चंद अल्फाज 
 घोल देते हैं , फिर  रिश्तों  में वो शहद सी  मिठास।

 जाने वाले चले जाएं सवाल ना रह जाए
बुझ जाए आग और बस मशाल ना रह जाए
तो संभालिए रिश्तो को, कहीं मलाल ना रह जाए
काश बैठ पाते हम दो घड़ी , बस यही ख्याल ना रह जाए

©अपर्णा विजय
  #रिश्ते ❤️
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अपर्णा विजय







गर भूल जाऊं मैं तुम्हें उलझनों में कभी
पर हमदम  मेरे तुम मुझे याद रखना
अपनी बात कहना ,सवाल भी करना,
पर हो सके तो मेरी  बात रखना 

हो आसान डगर या हो मुश्किल सफर
 तय कर लूंगी मैं हर रास्ता
बस तुम अपने  हांथों में  मेरा हांथ रखना

गुजर जाएंगे साल दर साल यूं ही इस तरह
दिल में अपने हसीन लम्हों का हिसाब रखना
उलझ जाएंगे जो कल जिम्मेदारियों में हम तुम
संग पढ़ सकूं  तुम्हारे एक ऐसी किताब रखना

दो घड़ी मुस्कुरा लूं सुकून से से तेरे संग
आप अपने कुछ ऐसे मिजाज रखना

भुला देना नादानियां को मेरे बाबुल के जैसे
दिल तुम अपना ऐसा फराज रखना
के देख सकूं मैं अक्स अपना इसमें
दिल अपना यूं पानी सा साफ रखना।

ढल जायगी ये हुस्न ए सूरत इक दिन
दिल में अपने पाकीज़गी का लिबास रखना
अपनी बात कहना ,सवाल भी करना,
पर हो सके तो मेरी  बात रखना

©अपर्णा विजय
  promise day

promise day #कविता

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अपर्णा विजय

स्वर व्यंजन मात्राओं से सज्जित ,हिंद की में परिभाषा हूं
     जन जन की मैं अभिलाषा हूं,  हां मैं हिंदी भाषा हूं
                            हां मैं हिंदी भाषा हूं
      साहित्य का आधार हूं कविताओं का श्रृंगार हूं
      जिसने बुलाया मेघों  को ,हां मैं वही मल्हार हूं
                       हां मैं वही मल्हार हूं
संस्कृत की कोख से जाई हूं, जनमानस में मैं समाई हूं
   विरासत हूं मैं माटी की ,जाने क्यों फिर भी पराई हूं
                    जाने क्यूं फिर भी पराई हूं
        अमल में ना लाया गया उस फरमान सी हूं
            अपने ही घर मैं अब  मेहमान सी हूं
             अस्तित्व के संघर्ष में अनाम सी हूं
                कोने मैं पड़े पुराने दीवान सी हूं

           तुमसे है विनती और तुमसे ही अनुरोध
            फिर मुझे अपने होठों पर सजा लो
      कविता ही नहीं हकीकत में बना दो हिंदी की बिंदी
           आओ फिर अपनी मां से लाड़ लडाओ
           एक दिन क्यों हर दिन हिंदी दिवस मना लो

©अपर्णा विजय
  हिन्दी

हिन्दी #कविता

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