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nitinnandantiwar4416
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NiTiN NaNDaN

YaRa RaB

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NiTiN NaNDaN

White राम जी का वन आगमन और माता शबरी की प्रतीक्षा ~~

जब भगवान श्रीराम माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास के लिए घर से निकलते हैं, तब शबरी माता, जो एक ऋषि की कक्षा में दीक्षा प्राप्त करने वाली एक वृद्धा साधिका थीं, ने राम जी की आने की प्रतीक्षा शुरू करती है। वह हमेशा भगवान श्रीराम का नाम जपते हुए अपने आश्रम में बैठी रहती थीं, और भगवान के आगमन का ह्रदय से प्रतीछा करती है । शबरी माता ने वर्षों तक तपस्या की थी, लेकिन भगवान राम के दर्शन की कोई सन्देश नहीं मिलता है ,वे सोचती है कि राम जी के आने पर उन्हें उनका आदर-सत्कार करने का अवसर मिलेगा। एक दिन, शबरी माता ने राम जी के आगमन की प्रतीक्षा करते हुए प्रेम पूर्वक बेर (जामुन) इकट्ठा किए। इन बेरों को शबरी माता ने पहले खुद चखा और जो बेर मीठे होते हैं, वही राम जी के लिए रख लिए और जो कड़वे होते हैं, उन्हें स्वयं खा लेती हैं । ऐसा करते हुए वह भगवान राम जी के लिए अपनी भक्ति और प्रेम अर्पण कर रही होती हैं। 
जब भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ शबरी के आश्रम में पहुँचते हैं, तो शबरी माता ने उन्हें बेर देती हैं । शबरी माता की इस निश्छल भक्ति और प्रेम देखकर राम जी ने वे बेर प्रसन्नता से खा लेते हैं। राम जी को बेर का स्वाद उनकी मांद, उनके अनूठे प्रेम और उनके समर्पण में भरा हुआ सत्य मिलता है । भगवान राम ने शबरी माता के प्रेम को समझा और उनकी भक्ति को सराहा। राम जी के लिए यह बेर बहुत खास थे,  क्योंकि वे किसी भी बाहरी दिखावे या छल-प्रपंच के बिना, शुद्ध प्रेम और समर्पण को पहचानते हैं । शबरी माता का यह कार्य यह दिखाता है कि भक्ति का मार्ग केवल बाहरी आचार-व्यवहार से नहीं, बल्कि मन के गहरे प्रेम और श्रद्धा से होता है।
इस प्रसंग से हमें यह सिखने को मिलता है कि भगवान, व्यक्ति के बाहरी रूप-रंग या कर्मों को नहीं, बल्कि उसकी नीयत, भक्ति और प्रेम को देखते हैं।  

            नितिन नन्दन











...

©NiTiN NaNDaN
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NiTiN NaNDaN

*इतवार की सुबह....*
*बिखरे घर को....*
*समेटूं....*
*या मन में.....* 
*बिखरे तुम्हारी....* 
*यादों को....*

            नाराज़ सबेरा

















...

©NiTiN NaNDaN #UskeHaath
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NiTiN NaNDaN

एक दीया अन्तर्मन में
एक जगत के साथ सखी ..

एक तुम्हारे साथ सखी 
एक तुम्हारे बाद सखी !!





                  नाराज़ सबेरा














🙏

©NiTiN NaNDaN #Diwali
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NiTiN NaNDaN

White *तेरी बातों की खुशबू आती है मुझे सुबह तक..*

*जाने क्यों लोग कहते हैं के रात गई बात गई..!*
















नाराज़ सबेरा

©NiTiN NaNDaN #love_shayari
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NiTiN NaNDaN

दिवंगत हो जाते हैं सम्बन्ध पर

स्मृतियों का कोई दर्पण नहीं होता।

पंछी वहाँ भी साथ रह लेते हैं 

जहाँ पर कोई मधुबन नही होता।।





















...

©NiTiN NaNDaN
  #kitaab
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NiTiN NaNDaN

White *तेरे आने की उम्मीद मुझे और भी तड़पाती है...*

*मेरी खिड़की पे जब एक और शाम उतर जाती है...!*

©NiTiN NaNDaN
  #sunset_time
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NiTiN NaNDaN

अपनी बातों को अपनों से कहने के लिए ।

मैं मरता रहता हूँ तुझमे जिंदा रहने के  लिए ।।

©NiTiN NaNDaN
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NiTiN NaNDaN

*लोग संग रहने का अब मन नहीं बनाते,*




 *वो घर तो बनाते हैं, आंगन नहीं बनाते।*

©NiTiN NaNDaN
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NiTiN NaNDaN

एक स्त्री के उदासी को भी उदास आता है,तो उसका 
मन करुणा से भर जाता है। उसका उदास चेहरा, न तो 
कोई परिवार का सदस्य पढ़ पाता है और न ही लगा 
घर में आईना। वह अपने उदास मन से धीरे से कुछ गीत 
गुनगुना लेती है या अपनी पसंदीदा किताब के कुछ
 पन्ने पलट देती है या फिर किसी नदी के किनारों को निहारने
 चली जाती है। सिर्फ वो ही यह जान सकती है कि उदासी
 और कुछ नही बल्कि परतो में छिपा स्याह-सा 
एक धब्बा है। वह बन्द खिड़कियाँ  खोलना चाहती है, 
वह अपने पंखो से उड़ना चाहती है और समय पर
 बिस्तर सलवटों से करवट फेरना चाहती है। एक स्त्री की उदासी
 को ठीक उसी प्रकार घर में पढ़ा जाता है जिस प्रकार
 तह से लगाई गई डायरियाँ अलमारी में।एक स्त्री जब 
अपने काम से लौटती है तो फिर वह काम पर लौटती है।
 इस तरह से कहने को तो सप्ताह के सात दिन होते है 
परन्तु उन सातो दिनों में से थोडा - थोड़ा दिन चुराकर, 
वह आठ दिन बना देती है लेकिन वह यह नहीं जान 
पाती कि उसकी यह सर्जीव-निर्जीव गतिविधियाँ ही 
उसका आठवाँ दिन है और वह इसी आंठवें दिन को
 अपने सातो दिनो में ढूढ़ती रहती है।

और हम कहते है कि---

                            स्त्री के रविवार की गोद में... 
                            घर का इतवार सोता है !!!   

            ✍️नितिन नंदन

©NiTiN NaNDaN
  कश्मकस

कश्मकस #Knowledge

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NiTiN NaNDaN

एक स्त्री के उदासी को भी उदास आता है,तो उसका मन करुणा से भर जाता है। उसका उदास चेहरा, न तो कोई परिवार का सदस्य पढ़ पाता है और न ही लगा घर में आईना। वह अपने उदास मन से धीरे से कुछ गीत गुनगुना लेती है या अपनी पसंदीदा किताब के कुछ पन्ने पलट देती है या फिर किसी नदी के किनारों को निहारने चली जाती है। सिर्फ वो ही यह जान सकती है कि उदासी और कुछ नही बल्कि परतो में छिपा स्याह-सा एक धब्बा है। वह बन्द खिड़कियाँ  खोलना चाहती है, वह अपने पंखो से उड़ना चाहती है और समय पर बिस्तर सलवटों से करवट फेरना चाहती है। एक स्त्री की उदासी को ठीक उसी प्रकार घर में पढ़ा जाता है जिस प्रकार तह से लगाई गई डायरियाँ अलमारी में।एक स्त्री जब अपने काम से लौटती है तो फिर वह काम पर लौटती है। इस तरह से कहने को तो सप्ताह के सात दिन होते है परन्तु उन सातो दिनों में से थोडा - थोड़ा दिन चुराकर, वह आठ दिन बना देती है लेकिन वह यह नहीं जान पाती कि उसकी यह सर्जीव-निर्जीव गतिविधियाँ ही उसका आठवाँ दिन है और वह इसी आंठवें दिन को अपने सातो दिनो में ढूढ़ती रहती है।

और हम कहते है कि---

                            स्त्री के रविवार की गोद में... 
                            घर का इतवार सोता है !!!   

            ✍️नितिन नंदन

©NiTiN NaNDaN
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