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jagjeetsinghjagg2655
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

A simple man.... Searching for the meaning of my own existence.... Happy outside... Serious inside... Love my brother the most... ऐं वैं शायर बन गया... 😂😂 Senior English teacher in an esteemed ISC school...

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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

है नहीं मुस्कराहट तेरे हिस्से में 
तो बेवजह हंसता क्यों है, 
कर नहीं सकता बयां दर्द अपना,
 तो फ़कत उसमें फंसता क्यों है 

किसी की नहीं मंज़िल जो आशियाना है तेरा,
खड़े खिड़कियों पर फ़िर रोज़ सिसकता क्यों है,

वो नहीं आया, नहीं आएगा, नहीं आएगा,
तू बेवजह दरवाज़े पे राह तकता क्यों है,

"जग्गी" चला जा कि अंधेरों में ही बसर है तेरा 
 उजालों की राह में कमबख्त भटकता क्यों है

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! #Apocalypse
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

ये सोच कर गुजार देंगे चार दिन की ज़िंदगी 
कोई हमारा हम-सफ़र नहीं हुआ तो क्या हुआ 

मेरे किसी रकीब की दुआ कुबूल हो गई 
नसीब के-ए-यार ग़र नहीं हुआ तो क्या हुआ 

हवा ने क्यूँ बना लिया है फ़ासला चराग़ से ?
जवाब दो ये खौफ़ -ओ दर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

वो बे पनाह हसीन है तो मैं फकत हसीन हूँ 
हसीन हूँ हसीन तर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

यहां पे सब्र कीजिए ये कार-ज़ार -ए इश्क है 
जो चाहते थे वो अगर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

ये शहर -ए बेवफ़ा के लोग कब वफ़ा -परस्त हैं 
वफ़ा का ज़िक्र रात भर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

हर एक शै पलट रही है अपनी अस्ल की तरफ़ 
अगर मैं आख़िरी बशर नहीं हुआ तो क्या हुआ 

हमारा मस'अला है हम खुदा से क्यूँ गिला करें 
वो महावर-ए-दिल-ओ नज़र नहीं हुआ तो क्या हुआ

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! #Apocalypse
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

जाते जाते एक ऐसी कहानी दे जाऊंगा 
दोस्त मैं तेरी आंखों में पानी दे जाऊंगा

दे जाऊंगा तेरी नींदों को ख्वाब अपने 
साथ में गुजारी शामें सुहानी दे जाऊंगा

जिसके सहारे तू काट ले ज़िंदगी मैं 
तुझको अपनी एक तस्वीर पुरानी दे जाऊंगा

मेरे महबूब मैं अपनी मोहब्बत की 
तेरी गर्दन पर एक निशानी दे जाऊंगा

ले जाऊंगा तेरे चहरे की सारी शिकन 
और तुझको अपनी जवानी दे जाऊंगा

बनकर समंदर तेरी मोहब्बत में 
तुझको नदी सी रवानी दे जाऊंगा

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

ये कुहरा है घना सा जो छँटता ही नहीं 
ये वक़्त ऐसा है क्यूँ कि कटता ही नहीं

ख़ुशी के तराने खेलते भी हैं गोद में पर 
दर्द है कुछ ऐसा कि ये बँटता ही नहीं

कितने पन्ने फाड़े मैंने इसमें यूँ ही पर 
ऐसा भी नहीं है कि मैं लिखता ही नहीं

सोचता कहता लिखता बहुत हूँ पर 
ऐसा भी नहीं है कि मैं थकता ही नहीं

मंज़िल की ओर तो निकल आया "जग्गी"  
पर ऐसा भी नहीं है कि मैं भटकता ही नहीं

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! #kohra
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

जब आँख खुली, मैंने लुटा कारवाँ देखा
 बंजर ज़मीं देखी, मैला आसमाँ देखा

लाखों के पैरों के तले ज़मीन ना रही
वीरानियों का हर क़दम मैंने निशाँ देखा

अब जानवर से बदतर इंसान हो गया 
बर्बादियों को देख ख़ुदा बे-ज़बाँ देखा

मारने पे तुला है इंसान आज भी 
फूलों की जगह काँटों को दरमियाँ देखा

किस पे करें भरोसा, किस की पनाह लें 
टूटा हुआ मकान और उठता धुआँ देखा

लाशों के ढेर से न हम ने सीखा है सबक़ "जग्गी" 
हर शख़्स को डरा हुआ और बद-गुमाँ देखा

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! 
  #lightning
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

'जग्गी' ख़लिश यूँ बचा रखी है ज़िन्दा रहने में 
मौत आती तो है मग़र किश्तों में घुट घुट कर

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! #sunrisesunset
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

"समंदर की लहरों पर मिल्कियत है अपनी,
 दरिया में कागज़ की कश्ती चलाने वालों को इसका इल्म क्या,
 इक मुकम्मल सा ख्वाब हैं हम,
 चंद झपकियों में अपनी रात ज़ाया करने वालों को इसका इल्म क्या, 
रूहानी सी कुछ नज़्में और पाक सी कुछ गज़लें, 
अपना तो तखल्लुस ही यही है, 
कुछ आड़े तिरछे अल्फाज़ों को शेर कहने वाले,
 इन्हें हमारी शायराना मोहब्बत का इल्म क्या...... 
लिखते हैं दिल की कलम से हम 
इन्हे कलम के जज़्बातों की तादबीर का इल्म क्या.. 
लाते हैं मुस्कान आफत-ए-जां के रुख पर 
 इन्हे खुशी और गम के फर्क का इल्म क्या......
 हम तो तालीफ भी करते हैं दिल से 
 ईन्हे लिखावट के अफसून का इल्म क्या, 
यूं तो हम बाहम हैं आपनी ही दुनिया में, 
इन्हे इश्क की बालीदगी का इल्म क्या....! "

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

इस पार नहीं तो उस पार नज़र आए
 वो भी करते मेरा इंतज़ार नज़र आए

दिल मेरा इख़्तियार नहीं है उसके बिन 
दिल उसका भी बे-इख़्तियार नज़र आए

वो कातिल है तो खंजर रक्खे हाथों में 
वो दिलबर है तो आँखों में प्यार नज़र आए

वो खुश रहे तो खुशियां दिखे हर तरफ़
 वो गम में हो तो हर तरफ़ आज़ार नज़र आए

जाने क्या जादू है उसकी सोहबत में 
उसके साथ तो सहरा भी बहार नज़र आए

देख लूं उसकी तस्वीर जो एक दफ़ा 
उसके बाद फिर कुछ नहीं यार नज़र आए

अपनी हर दुआ मे माँगू मैं बस उसको 'जग्गी'
 वो ना मिले तो जीना फ़िर बेकार नज़र आए

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! 
  #alone
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

सिर्फ इक अहसास हूं नज़र नही आऊंगा मै
 बेरुखी से किसी की बिखर नही जाऊंगा मैं।

अक्स बनकर आईनो के शहर में बस गया 
पर्दानशीं हो जाओगे तो बिसर नही जाऊंगा मैं।

अब किसी की नज़र का नही मोहताज हूं 
बस गया हूं ख्वाब मे उधर इधर नही जाऊंगा मैं।

इक महकती शाम हो इक वफ़ा का जाम हो
 हो शम्अ की आग तो क्या निखर नही जाऊंगा मैं।

बदगुमां "जग्गी" हमको बदगुमानी ही भली 
होश वालों होश मे तो नज़र नही आऊंगा मै।

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!
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Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...!

कोई राह नहीं जो तेरी जानिब ला सके मुझे
न कोई रात जो ब-चैन सुला सके मुझे

नशा इतने हवास में हो कि ए साकी
 होश की कोई गश्त न आ सके मुझे

वो सख़्त ऐसा कि मैं खरोंच भी न सकूं
 और मैं नर्म इतना कि वो खा सके मुझे

जाने वालों को इजाज़त है दूर जाएं 
इतनी दूर कि फिर याद न आ सके मुझे

मैं उसकी दाईं आंख के पास के निशां जैसा हूं 
"जग्गी" उसकी 'कुव्वत नहीं कि भुला सके मुझे

©Jagjeet Singh Jaggi... ख़्वाबगाह...! #moonnight
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