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saritamalikberwa7611
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Sarita Malik Berwal

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Sarita Malik Berwal

होली के असल क़िरदार की उसको ख़बर नहीं 
  बदन से जुदा रूह के रंग पर जिसकी नज़र नहीं
-सरिता मलिक बेरवाल

©Sarita Malik Berwal #Holi
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Sarita Malik Berwal

Blue Moon नहीं आता मेरे शब्दों को यूँ नीलाम हो जाना 
कुर्सी का होकर केवल कुर्सी ही में खो जाना 
मेरे अक्षर अनोखी वर्णमाला से निकलते हैं 
अलग संसार का ये चाहते हैं बीज बो जाना 
-सरिता मलिक बेरवाल

©Sarita Malik Berwal #bluemoon
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Sarita Malik Berwal

नहीं आता मेरे शब्दों को यूँ नीलाम हो जाना 
कुर्सी का होकर केवल कुर्सी ही में खो जाना 
मेरे अक्षर अनोखी वर्णमाला से निकलते हैं 
अलग संसार का ये चाहते हैं बीज बो जाना 
-सरिता मलिक बेरवाल

©Sarita Malik Berwal
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Sarita Malik Berwal

बड़ी बेबाक़ होती है पसीने की अदा साहब
सलीके में भी सबके हक़ का तेवर साथ चलता है

जो ज़िंदा हैं ज़ुबाँ पर उनके जज़्बे की कहानी है
महज़ यूं साँस लेने से कहाँ इतिहास बनता है
-सरिता मलिक बेरवाल

©Sarita Malik Berwal
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Sarita Malik Berwal

जो एक क़दम बढ़ा मेरा, कारवाँ हो जाएगा 
ख़ुशी की हूँ तरंगिनी, ग़म धुआँ हो जाएगा 
चंद लफ़्ज़ों में बयां होता है मेरा फ़लसफ़ा 
मैं हूँ सरिता जिधर मुड़ूँगी रास्ता हो जाएगा 
-सरिता मलिक बेरवाल

©Sarita Malik Berwal
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Sarita Malik Berwal

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Sarita Malik Berwal

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Sarita Malik Berwal

चिड़िया की तरह चहकने वाली 
ऐ लड़की! 
तुम्हें अधिकार नहीं है 
हँसने का 
गाने का 
लड़कों की तरह 
टोलियों में नुक्कड़ पर
खड़े होकर अपना पौरुष 
दिखलाने का।  
चीरहरण के साथ ही 
हर पल तुम्हारा 
चरित्रहरण होगा 
और तुम्हारी हँसी 
चिरकालीन भय और वेदना में 
बदल दी जाएगी। 
जो बदलना चाहती हो 
भाग्य अपना 
तो अपने आंसुओं को शोले 
और आँचल को आकाश में बदल डालो 
दहका दो अग्नि समाज की नस-नस में 
जला दो इतिहास के हर उस पन्ने को 
जिसमें औरत को अबला माना गया 
अपने अस्तित्व के अंश को मनुष्य बनाओ 
पुरुष नहीं। 
अस्मिता के इस संघर्ष में तुम्हें मानव चाहिए 
स्त्री या पुरुष नहीं।
- सरिता मलिक बेरवाल

©Sarita Malik Berwal
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Sarita Malik Berwal

रसोईघर के बर्तनों से
क़िताबों की मेज तक 
फैले एक औरत के वजूद को 
क्या समझेगा वो मर्द
जो औरत के 
चेहरे और बदन के
बीच सिमटे दायरे से पार
कभी झाँक नहीं पाया 
और झाँका भी तो
अपनी मर्दानगी की
सदियों से सजाई
तस्वीर में अपने साथ 
कभी सजा नहीं पाया 
एक औरत के ज्ञान
और विचारों की उड़ान को। 
आँसुओं और हँसी के बीच 
फँसी औरत को
कभी जवाब नहीं मिला 
उसके आँसू त्रिया-चरित्र
और हँसी कामुक कैसे हुई
और शायद जवाब कभी न मिले
कि स्त्री दिल भरे तो रोए 
या दिमाग़दार विचार परोसे
आख़िर मर्द को ना तो आँसू पसंद हैं
और ना ही औरत का ज्ञान
पसंद है तो एक रोती हुई मुस्कान।
- सरिता मलिक बेरवाल

©Sarita Malik Berwal
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Sarita Malik Berwal

भेड़ों की तरह एक-दूसरे के पीछे बिना सोचे-समझे चलने वाले लोगों से बहस करने की बजाय गडरिया को बदलने की कोशिश कीजिये या गडरिया ही बदल दीजिये, भेड़चाल चलने वाले लोग दूसरे गडरिया के साथ ख़ुद रास्ता बदल लेंगे।
-सरिता मलिक बेरवाल

©Sarita Malik Berwal
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