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अविरल आर्या

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अविरल आर्या

ख़्वाब भी तुम हो और 
ख्वाबों में भी तुम हो...... 
मेरे हर सफ़र का हमसफ़र 
भी तुम हो...... 
तो मेरे हर संगीत का सुर
भी तुम हो....... 
मेरे महफ़िल में सजी, वो 
शायरी भी तुम हो......   
मेरे शब्दों के धागो में पिरोये, वो 
मोती भी तुम हो...... 
जिस मोहब्बत से थी मैं अनजान 
उस मोहब्बत से रूबरू कराने 
वाले भी तुम हो.........
उन बेरंग सी ज़िन्दगी में रंग 
भरने वाले भी तुम हो......... 
कुछ अनकहे बातों को पूरा 
करने वाले भी तुम हो....... 
मेरे हर सफ़र पर साथ चलने 
वाले मुसाफ़िर भी तुम हो...... 
ग़र तुम साथ न हो मेरे तो क्या 
हुआ, मेरे यादों में आज भी बसने 
वाले भी तुम हो| #ख्वाब और तुम

#ख्वाब और तुम

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अविरल आर्या

अभी तो शामें मोहब्बत है बाँकी

अभी तो शामें मोहब्बत है बाँकी

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अविरल आर्या

जो चाँद रातभर जाग रहा था, 
अब वो चाँद शायद उन बादलों 
में कहीं सो  गया है|

जिसकी चाँदनी से हर रात 
रौशन सी लगती थी, 
अब उसके पूर्णिमा 
कि रात भी,  
अमावस सी लगती है|
 

जो चाँद सितारों के बिच रहकर भी 
आसमां कि महफ़िल को लुटे 
रहता था, 
अब वो चाँद शायद रूठ सा 
गया है|


जिस खिड़की से हम चाँद 
देखा करते थे, 
अब उस खिड़की में भी चाँद 
न दिखता है|

जिस गली से गुज़र हम, 
चाँद को निहारा करते थे, 
 उस गली से चाँद 
ने अपना रुख मोड़ सा लिया है, शायद 
अब वो चाँद कहीं छिप गया है| #चाँद
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अविरल आर्या

चंद सिक्के है, नोटों का ख्वाब
करू कैसे...... 
कुछ सपने है बड़े, पर उसे पूरा 
करू कैसे....... 
गुलक्क में परे हर सिक्कों के साथ 
जुड़े है हर ख्वाब, पर उसे खर्च 
करू कैसे....... 
शौक है कुछ अमीरों सा, पर 
परे है चंद सिक्के पूरा करू 
उस शौक को कैसे......
पढाना चाहता हूँ अपने बच्चे को 
बड़े स्कूलो में, लेकिन उस स्कूल 
के खर्चे उठाऊ कैसे......  
चंद सिक्कों से उस ख्वाब को पूरा 
करू कैसे..... 
जहाँ होते है हर ख्वाब पूरे नोटो से, 
उस महंगाई के दौर में अपने घर का 
खर्चा सँभालु कैसे....... 
ख़्वाब बिकते नहीं है रुपयों में, पर 
ये चंद सिक्का भी उछलेगा कभी 
उन आसमानों में ये बताऊ कैसे..... #खर्च, #सिक्के
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अविरल आर्या

चाँद -सितारें खूबसूरत न होते, 
ग़र ये आसमां उसे अपना तख्तों-
ताज न बनाते|

वो बारिश कि हर बूँद एहसास न जगाती, 
ग़र ये आसमां खुद को उसके नाम न 
कर देती|

वो सेहर का सूरज धरा पर लालिमा 
न प्रकाशित करता, 
ग़र ये आसमां उसके तपिश को न सहता|

परिंदो कि उड़ान यूँ बुलंद न होती, 
ग़र ये आसमां उसे  दरख्त से निकल 
खुद को छूने का हौसला न देती|

ये प्रकृति इतना सौंदर्य न होती, 
ग़र ये आसमां, जमीं, पर्वत, पेड़-पौधे 
शामिल न होते| #आसमां
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अविरल आर्या

मैं नादाँ सी चिड़िया हूँ, 
उड़ने का हौसला रखती हूँ, 
निकल अपने घोसले से गगन 
कि ओर पँख फैलायी हूँ, 
पर उस गगन में भी है शिकारी 
अनेक, जिसका शिकार मैं हूँ, 
पर तोड़ न सकते मेरे हौसले 
कि उड़ानो को, 
वो मैं नादाँ सी चिड़िया हूँ|

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अविरल आर्या

#OpenPoetry ग़र खिलना है तो 
गुलाब कि तरह खिलो, 
जो काँटो से गुजर कर भी 
खिलने का हौसला रखता है|
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अविरल आर्या

#OpenPoetry जो यारी थी पुरानी, 
ज़रा उसे अबकी यादों में 
जगह तो दे दो, यूँ नयी यारी बना 
उसे अपनी जिंदगी तो न कह दो|

जो मोहब्बत थी, पहले कभी 
उसे आज भी कायम रहने दो,
ग़र निभा न सको उस चाहत को 
तो थोड़ी सी उस मोहब्बत में 
यकीं तो भर दो| 

जो जिंदगी रंगों से भरी थी, 
पहले कभी, 
उसे बेरंग तो न कर दो, 
चलो हकीकत को न सही, 
पर ख्वाब को ज़रा हसीन तो कर दो|

जो शामे सितारों से सज़ी थी, कभी 
उस शाम को तो न थमने दो, 
चलो ईद, करवा चौथ पर न सही, 
ज़रा चाँद का दीदार अपने आयने 
से करवा दो|

जो राहें एक थी, पहले कभी, 
उस राह से अब रुख्सत तो खुद 
को न होने दो, 
राह एक न हो सकी तो क्या, 
ज़रा मंजिलों पे मिल के कुछ 
पुराने अफ़साने को याद तो  
कर दो| #यारी, मोहब्बत....

#यारी, मोहब्बत.... #poem #OpenPoetry

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अविरल आर्या

कुदरत का भी अजीब खेल है, 
कल तक जो पानी के लिये मर रहे थे, 
आज वो पानी से मर रहे है|
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अविरल आर्या

मुसलसल तेरे इश्क़ का 
सफ़र यूँ थम सा गया कि 
तेरे राह से गुजर कर भी 
तुझ तक पहुँच न सके|

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