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kusumakarpant6480
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Kusumakar Muralidhar Pant

प्यार से बनी यार की मूरत है, दिखती उसमें मेरी ही सूरत है, हुस्न देखो मेरा या मेरे यार का, बाखुदा दोनों ही खूबसूरत है ...

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Kusumakar Muralidhar Pant

कितना भी हो, ज़हरीला गरल,
घूँट दर घूँट तुम्हें, उसको निगलना होगा,
अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल,
फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा!

जो सत्ता के व्यापारी थे, जो जेलों के अधिकारी थे,
उनकी तुमने कर दी, जतन से समस्या बोझल,
ऐसी ज़ोर की खाई है,
कि सांस लेते, कटता नहीं पल,
मृत्यु को भी आगे तुम्हारे, थक-हार के बस टलना होगा,
अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल,
फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा!

आ गयी विपदा गंभीर मगर, तुमने डटकर निस्तार किया,
चहुँ ओर सबका सम्मान पाया, गरीबों को नया संसार दिया,
पालन- पोषण सब सीखा है,
जग- सागर को तरना होगा,
अब माँ के बिना, जीवन नहीं सरल,
फिर भी, हे निडर ! वीर तुम्हें चलना होगा!

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Kusumakar Muralidhar Pant

कुछ नया अंदाज़ लेके, हाथों हाथ साज़ लेके,
चलते हैं महापुरुषों की राह में डगर में।

जो भी आगे बढ़ रहा है, महानता में ढल रहा है,
हो ना हो कभी ना कभी आ जाता है नज़र में।

कौशल की कमी नहीं है, उड़ान अभी थमी नहीं है,
चढ़ता मेहनत का रंग आ रहा असर में।

क्या पता क्या है भगवान, वीर खड़े धनुष तान,
कोशिश ऐसी करो कि रह न जाए कुछ कसर में।

एक दिन होगा नाम, मिलेगा बड़ा इनाम,
जैसे स्वर और व्यंजन दोनों आ जाए अक्षर में।

फिर तुम्हारा कर्तव्य होगा, सिखाना गंतव्य होगा,
ताकि दिये से दिया जलता रहे पूरे शहर में।

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Kusumakar Muralidhar Pant

भारत का सपूत यही है, मिटाना हर भ्रान्ति को ही है,
अंग्रेज़ भी करते प्रशंसा, देखते कैसे हुआ ये अचंभा,
गुरु ज्ञान से राह दिखाई, जिसमेें निहित थी प्रभुताई,
भारत के युगपुरुष बनके, विदेशों में भी खूब चमके,
नरेन्द्रनाथ बना विवेकानंद, जैसे फूल में हो मकरंद,
अपनी आभा सर्वत्र पहुंचाई, जैसे सूर्य की तरुणाई,
कोई दैवीय कारण था, जैसे इनका अवतरण था,
ऐसा व्यक्तित्व किसी ने ना पाया, स्वप्न जैसे सच हो आया,
आओ हम भी प्रण लें, भारत को मन में धर ले,
लहरा दे झंडा फिर से देश का, नारा बने जो विदेश का,
ज्ञान - योग का सार देकर, सिरमौर बनें ऐसा प्यार देकर।

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#VivekanandaJayanti

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Kusumakar Muralidhar Pant

वीर की जवानी देखो, इरादा ये तूफानी देखो,
एक एक कर गोली खाते ही चले गये,
बात हो ये जंग की, जवान की उमंग की,
कि लाल लहू में होली मनाते ही चले गये।

दुश्मन को देना दंड था, क्योंकि उसे घमंड था,
छोटे बड़े शत्रु सामने आते ही चले गये,
युद्ध बड़ा भीषण था, हौसलों का परीक्षण था,
भाग सारे अरि दुम दबाते ही चले गये।

द्वन्द्व का ये ताप देखो, वैरी का संताप देखो,
मुंह की खाये सारे लड़खड़ाते ही चले गये,
देश रहे ये महान, हीरों की है ये खान,
जो भी लड़े वो जीत पाते ही चले गये।

भू, जल, आकाश, सभी में है प्रकाश,
देशप्रेम का झंडा लहलाहते ही चले गये,
पदकों की कमी नहीं है, वैरी को ज़मीं नहीं है,
कितने साल आए, कितने जाते ही चले गये।

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Kusumakar Muralidhar Pant

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset कितनी ही कोशिश कर ले तू,
अकेला ही चलना पड़ेगा,
कोई तुझे बुलाने नहीं आने वाला,
अकेला आया था अकेला ही जाएगा,
भले ही तूने तय किए हों मजमे कई,
सब यहीं रह जाएगा,
दोस्ती यारी रिश्तेदार सब,
बस तुझे आहुति देंगे,
तेरे अंतिम क्षणों में,
2-4 दिन तुझे याद कर लेंगे,
यही जीवन की रीत है प्यारे,
अपना खून ही मुखाग्नि देगा,
अपने संस्कार और पुण्य,
ही छोड़ जाएगा तू यहाँ,
और जन्म लेगा तू कहीं और,
फिर से ज़िंदा होने के लिए!

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Kusumakar Muralidhar Pant

क्या तुम्हारा ये नए साल का जश्न,
भर सकता है उस आदमी के घर का राशन,
जिसे तुमने गरीब कहकर,
कल दिया था दस रूपए का नोट,
जिससे वो एक वक़्त का भी नहीं,
कर सकता है चाय नाश्ता,
क्या तुम्हारा ये उत्सव दूर कर सकता है,
उस बच्ची की गरीबी जो फुटपाथ पर,
खाली पेट सोई है चार दिन से,
कर रही है करतब रस्सी पर,
ताकि उसके परिवार को मिल सके,
एक वक़्त की रोटी और सब्ज़ी,
क्या तुम्हारी ये लम्बी महंगी गाडी,
दे सकती है एक रात की छत उसको,
जिसने पैदा होने के बाद से अब तक,
छत किसे कहते हैं आज तक नहींं देखा,
क्या तुम्हारे ये नाना प्रकार के ये पकवान,
मिटा सकते हैं उस आदमी की भूख,
जो सिर्फ पानी पर ज़िंदा है,
क्या कोई कृष्ण बनकर,
दरिद्रता दूर कर सकता है हर सुदामा की,
इस कलियुग में त्राण देकर,
तो फिर आप एक गरीब की मदद का संकल्प लें,
इस साल और कोई अपने से,
कोरे झूठे वादे नहीं बस!

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Kusumakar Muralidhar Pant

New Year 2024-25 हवा ने क्या चलना बदल दिया,
तारों ने क्या टहलना बदल दिया,
बस अंक ही तो बदला था केवल,
तुमने गिर के क्यों संभलना बदल दिया।

फिर सुबह नई आएगी सुनहरी,
सूरज ने क्या पूरब से निकलना बदल दिया,
शास्त्र ज्योतिष आदि कोई विद्या है क्या,
जिससे तुमने पद्धति और जीना बदल दिया।

रामराज्य लाएंगे फिर इस बार,
हमने तो भगवे के लिए रहना बदल दिया,
हिंदू देश और हिंदुस्तानी सब होंगे,
कट्टर चाहे हो पर खुद से झगड़ना बदल दिया।

आओ मनाएं नया साल अप्रैल में,
इतिहास में दर्ज हो ऐसा लिखना बदल दिया,
फटे हाल हम नहीं अब दुश्मन होगा,
जिसने घर से बाहर निकलना बदल दिया।

ग़म तो बहुत पिया है हमने इस जानिब,
कि आंसुओं ने हमारे पिघलना बदल दिया,
इत्र की तरह फैलेंगे हम अब हिंदू होकर,
वक़्त ने गुरु बनकर दुनिया बदलना बदल दिया।

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Kusumakar Muralidhar Pant

White नादान हैं अगर तो नादान रहने दो,
फूल नए खिलेंगे कि बागबान रहने दो,
ज़मीं तो घिर गई है हर तरफ से,
कुछ बचा है तो वो आसमान रहने दो,
अगर आरज़ू है हवाओं में रहने की,
तो ज़िंदा ऐसा बचा एक तूफ़ान रहने दो,
मेरी चाहतों में वो भी है शामिल,
चाहे कितने दिन का हो पर ऐसा मेहमान रहने दो,
मेरा मुक्कदर कर दिया तूने मुनासिब,
मेरे लिए तेरा ये एहसान रहने दो,
ता-उम्र पढ़ता रहा किताब की तरह,
लिखाई में एक पन्ना सुनसान रहने दो,
ज़्यादा मेरी नफरत हो या तेरी मोहब्बत,
दोनों में शामिल एक इंसान रहने दो,
दुनिया ने किया ज़ुल्म हम पर हर समय,
अब चाहो तो उसे भी थोड़ा परेशान रहने दो |

©Rangmanch Bharat #good_night  hindi shayari zindagi sad shayari shayari status shayari on love shayari on life

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Kusumakar Muralidhar Pant

White मेरी जो कहानी है, सबको ही सुनानी है,
ज़िंदादिल हो सके थोड़ी ऐसी एक जवानी है | 

भटकता रहा मैं हर जगह, मिला न सहारा किसी जगह,
गर्म होती रही जो हर समय, साँसों की रवानी है, 
मेरी जो कहानी है, सबको ही सुनानी है |

ख़्वाहिषों के पुल बनाकर, उम्मीदों के दीये सजाकर,
परिपक्व होती रही हमेशा, ऐसी एक नादानी है,
मेरी जो कहानी है, सबको ही सुनानी है | 

सबको साथ नहीं ले सकता, किनारे पर भी नहीं पहुँच सकता,
आवारा चलती रही सड़कों पर, ऐसी एक सावधानी है,  
मेरी जो कहानी है, सबको ही सुनानी है | 

क्या सही क्या गलत, मिलता रहा सदा सबक, 
मुश्किल थी बड़ी भरसक, ऐसी ये आसानी है,
मेरी जो कहानी है, सबको ही सुनानी है |

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Kusumakar Muralidhar Pant

White हो गई आज शाम सब कवियों को प्रणाम,
भीनी सी धूप लिए सूर्य देव चलने लगे,
ठंड का है ऐसा काम काँप रहे श्वास थाम,
टोपी मफलर रजाई कम्बल सब निकलने लगे।

गर्म पानी की है भाप, लकड़ी कोयला रहे ताप,
कम्पकपी में आह और आह करने लगे,
सुन रहे है सारे जन, लगा के मन की लगन,
धीरे धीरे सारे वाह वाह करने लगे।

गिर गया है तापमान, लोग सारे परेशान,
सारा भोजन गर्मा गरम निगलने लगे,
वस्त्रों का नहीं है भान, पहने हुए सब समान,
सर्दियों में सूरज की माला जपने लगे।

अंतिम ये बंद देखो, सही लगे तो छंद देखो,
तालियों से क्यों आप परहेज़ करने लगे,
जोश गर है तो दिखाओ, ऐसे नहीं शर्माओ,
जिससे एक एक कर कार्यक्रम आगे बढ़ने लगे।

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