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veerutkarshsingh6239
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Veer utkarsh singh

कलम के धार से काटता हूँ .. तानो बानो की बौछार हूँ ... जी हाँ साहब मै भी एक पत्रकार हूँ

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Veer utkarsh singh

#viral #वक्त #विचार #शब्द

viral वक्त विचार शब्द

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Veer utkarsh singh

मां तू मेरी दुनिया है....

मां तू मेरी दुनिया है.... #शायरी

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Veer utkarsh singh

हम तो जैसे थे वैसे रहेंगे ..
जिसको  साथ  रहना हो साथ रहे ..
जिसको दूर जाना हो दूर जाए .
फर्क नहीं पड़ता ..
साल बदले समय बदले लोग बदलें 
हम तो अकेले निडर चलते थे चलते रहेंगे .......
#मेरी  कलम से #
#वीर उत्कर्ष सिंह #

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Veer utkarsh singh

तुम्हारे पैर क्या लड़खड़ाए  80 करोड़ लोग गिरने को आ गए ........
मै मानता हूँ की तुम्हारी कुछ नीतियां अखड़ती है ..
पर तुम्हारा न होना सोच के 80 करोड़ लोगो की जान अटकती है ....मोदी जी ....
##मेरी कलम से ##
#उत्कर्ष # मोदी जी हम आपके दीवाने  है ......

मोदी जी हम आपके दीवाने है ......

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Veer utkarsh singh

नजर ऊँची कर दी उसने तो दुआ बन गयी ..
नजर निचे की उसने तो हाय बन गयी ..
नजर तिरछी की उसने तो अदा बन गयी ..
और जब नजर फेर लिया उसने तो कजा (मौत )बन गयी
.....मेरी कलम से .. #Hope
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Veer utkarsh singh

वो अपने ही होते है जो हमको टुकड़ो में तोड़ देते है वरना औरो को इल्म कहा की हमारी कोन सी कड़ी कमजोर है ..

....मेरी कलम से ....

#वीर उत्कर्ष #
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Veer utkarsh singh

जब वो मुस्कुरा कर अपनी नजरो को झुकाती है ..
सच कहता हूं मै मेरी जान पे बन बन आती है ..
उसको दिल का हाल बताने को कितनी रात  न मै सोया ..
उसको क्या पता कितनी बार तकिया अपना आशुंओ से भिगोया ......
##मेरी कलम से ##
###वीर  उत्कर्ष ##

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Veer utkarsh singh

जब बैठता हूं मै अकेले तो तेरे यादो के समुन्द्र 
में खोजता हूं ..उन यादो की गहराई में मै बहोत दूर तक जाता हूँ ...पर अफ़सोस यही है की हर बार मै अकेला खाली हाथ लौट आता हूँ ...
##मेरी कलम से ..#
##वीर उत्कर्ष

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Veer utkarsh singh

सोचता हूँ तुझे न सोचु इन अकेली रातो में ...पर तू चली आती है मिलने मेरी धड़कन से घुल के मेरी हर सांसो में 
.##...मेरी कलम से .....
###.वीर उत्कर्ष सिंह

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Veer utkarsh singh

घर मेरा बट आसमान फट गया मेरे खेत के   सीने पर डोरी है मेरे आंगन का नीम भी कट गया.. घर मेरा बट्ट गया आश्मान फट गया ..अब तो चलने के रस्ते भी काम पड़ गए मेरे बगल का तालाब भी पट्ट गया .जो कभी अपने थे सब पराये होंगे मेरे घर क रस्ते दो रहे हो गए .......................###वीर उत्कर्ष सिंह #. मेरी कलम से

मेरी कलम से

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