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rajeshkumar9001
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Rajesh Kumar

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Rajesh Kumar

किये थे तुमने जो फैसले वो वादे अलग लगे।
जिंदगी तुम्हारे हर क़दम के इरादे अलग लगे।
तुमनें जख्म दिए,ग़म दिए और ख़जालत भी,
जो कल तक साथ थे वो शहजादे अलग लगे।

-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-24/05/2024

©Rajesh Kumar
  #mango_tree
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Rajesh Kumar

इतना भी दूर जाना मुनासिब नहीं कि,
फिर से लौट पाना भी बामुश्किल लगे।
फासले उतने ही जायज़ हैं दिल्लगी में,
कि हर घड़ी भूला पाना मुश्किल लगे।

-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-24/05/2024

©Rajesh Kumar
  #mango_tree
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Rajesh Kumar

White बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष...
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परम् ध्यान का अंतर्यात्री जिसने,
सुविधाओं  का बलिदान  किया।
सहजयोग से विपश्यना ध्यान से,
खुद जीवन का समाधान किया।

छोड़ आस्तिकता और नास्तिकता,
वास्तविकता पे अनुसंधान किया।
महामौन का सत्य पथिक बन जो,
हर  मुश्किल  को  आसान किया।

आडम्बरों, पाखंडों  को त्यागकर,
बुद्धत्व से जग का आह्वान किया।
खुद को जाना, सबको बतलाया,
सबने उस बुद्ध का सम्मान किया।

बुद्ध  शरणागत  हुआ  है जिसनें,
सदा वही  सत्य को  जान सका।
आस्था का वो चैतन्य धाम कहां?
ध्यान से सत्य को पहचान सका।

शांति दूत बन आया है धरा पर,
'महाबोधि' को जो प्राप्त किया।
उस महात्मा को शत् शत् वंदन,
सद्ज्ञान का जो सूत्रपात किया।

अश्रुपूरित नयनों से नीर बहाकर,
चलो हमसब उनका सम्मान करें।
उनके पदचिन्हों पर चलकर हम,
नित्य बुद्ध का हम गुणगान करें।
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-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-23/05/2024

©Rajesh Kumar
  #Buddha_purnima
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Rajesh Kumar

White सौ कत्ल करती है निगाहों से पर इल्ज़ाम नहीं आता।
वह शख्स ही ऐसी है जिसका कभी नाम नहीं आता।
ना कोई गवाहान और ना कोई वाकया छोड़ जाती है,
वो हसीं ही ऐसी है जिसे और कोई काम नहीं आता।

-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-22/05/2024

©Rajesh Kumar
  #sad_shayari
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Rajesh Kumar

White बुरा लगता है सभी  को अक्सर पीऱी जिस्म का,

यहां कौन है जो उम्रभर हसीं और जवां रहता है।

मुरझाए हुए चेहरे और ये झूर्रियां बुरी लगती हैं,

लेकिन सभी को अपने जिस्मों पे गुमां रहता है।

सुबह के फूल भी शाम तलक मुरझा जा जाते हैं,

खुश्बू बिखेर देता है पर उसे गुरूर कहां रहता है?

-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-22/05/2024

©Rajesh Kumar
  #sad_shayari
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Rajesh Kumar

White गज़ल 
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मोहब्बत की एक ही शर्त है कि ये आंखों से बयां होती है।
हर हर्फ़ में नूर है, कौन कहता है  इश्क़ की जुबां होती है?

दरअसल जो लफ़्ज़ों में आ जाए वह मोहब्बत नहीं होती,
जो आशिकी में है जन्नत ए मज़ा वो औरों में कहां होती है?

फ़ना होने को हो ग़र राज़ी चल तू भी जी भरके इश्क़ कर,
शोला है हर अदा इश्क़ की जो जल जलके धुआं होती है।

बंदिशें कहां रोक पातीं हैं कभी मोहब्बत की सरहदों को,
पहरे जितने भी हों मुकम्मल तो ये और भी जवां होती है।

न फ़िक्र है दौलत-ए-गुमां की और न गुरूर ही जिस्म का,
हर गुफ्तगू में है बस बेहद ग़म और मौत ही मकां होती है।
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-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-21/05/2024

©Rajesh Kumar
  #Sad_shayri
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Rajesh Kumar

White ओ बदरा बरसो रे...
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ओ बदरा बरसो रे,ओ बदरा बरसो रे।
मोरे तन- अगन में उठे चुभन।
आई रुत सुहानी तड़पे रे मन।
धड़के जिया और जले बदन।
घिर आई घटा और प्यासी धरा,
अब झूम- झूमकर बरसो रे।
ओ बदरा बरसो रे,ओ बदरा बरसो रे।

बहती हवा ठंडी चलती पुरूवाई रे।
लगता है मौसम ने ली अंगड़ाई रे।
बरसो तुम बार बार बनके फुहार,
और जोर जोर से तुम बरसो रे।
ओ बदरा बरसो रे,ओ बदरा बरसो रे।

झूमे तरुवर तेरे गरज थाप पे।
मधुकर और मोर नाचे आज ये।
सूखी नदियों में उठे उमंगें फिर,
ऐसे ही तुम भी ख़ूब बरसो रे।
ओ बदरा बरसो रे,ओ बदरा बरसो रे।
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-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-28/05/2024

©Rajesh Kumar
  #sad_quotes
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Rajesh Kumar

White जिंदगी 
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गुमसुम सी मौन बैठी रही,ये गुमनाम जिंदगी।

खामोशी से निहारती रही ये गुमनाम जिंदगी।

सांसें भी दांव पे लगी यहां धड़कन के खेल में,

रोज़ ठोकरें खाती रही सुबह ओ शाम जिंदगी।

ना ख्वाहिशें मुकम्मल हुई ना चाहतें मुरीद थी,

रोज़ पीती रही मौत का भी यहां जाम जिंदगी।

कुछ आरजू हमारी थी कि उससे गुफ्तगू करें,

बेख़ौफ़ यूं ही होती रही यहां बदनाम जिंदगी।

गलतफहमियां इक कदर थी चाहत भी दांव पे,

हर रोज़ मुझे लुटाती रही यहां अंजाम जिंदगी।
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-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-20/05/2024

©Rajesh Kumar
  #Sad_shayri
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Rajesh Kumar

White गज़ल 

कुछ यादें शहर-ए-सितम को हम भूलाते चले गए।
उस अजनबी चेहरे पर हम भी जां लुटाते चले गए।

जिन पत्थरों से खाई हमनें ठोकरें वो ज़ख़्म याद है,
इस नादान  दिल को  फिर से हम रुलाते चले गए।

सूखे हुए वो गुलाब जो किताबों के पन्नों में कैद थे,
छुए उन्हें होंठों से और फिर से मुस्कुराते चले गए।

मुद्दतों तलक होती रही है जहां नग़्मात की बारिश,
उस शहर -ए- सुखन को सीने से लगाते चले गए।

अगर वादे मुख़ालिफ़ हों फिर से लौट आऊंगा वहीं,
जहां पांवों के तले हम भी पलकें बिछाते चले गए।

च़राग-ए-आरजू जलती रही मेरी हुस्न-ए-बाजार में,
आंसुओं से आग  मोहब्बत के  हम बुझाते  चले गए।

नीलाम हो  रही थी वो शमां  अब परवाने के बगैर,
कीमत  लगाकर  खुद को हम आजमाते चले गए।

-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-18/05/2024

©Rajesh Kumar
  #sad_shayari
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Rajesh Kumar

White .....और मुझको जन्नत ना मिला 
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रूह को  दर्द और  इन आंखों को  अश्क़ ना मिला।
महसूस किया तुम्हें तो ये दिल कमबख़्त ना मिला।

सोचते-सोचते मैं भी उन्हीं ख़यालों में खो जाता हूं,
जहां तुम तो थे पर तुमसे मिलने का वक्त ना मिला।

 हम दलीलों पे नहीं दिले जज्बात का कदर करते हैं,
तूझमें धड़कता दिल, पर दिल की लहद ना मिला।

 तलाशती रहीं हैं ये आंखें एज़ाज-ए-सुखन के लिए,
तुम अपने थे,तुम्हें अपना बनाने का हक ना मिला।

कोई समन्दर की  गलतफ़हमी हमारी आंखों से पूछो,
उसको मन्नत ना मिली और मुझको जन्नत ना मिला।
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-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-18/05/2024

©Rajesh Kumar
  #sad_shayari
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