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rajeshkumar9001
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Rajesh Kumar

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Rajesh Kumar

पुनः वेदना ये मिलने आई।
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जीवन के  नेपथ्य  बिंदु से,
प्रतिबिम्बित हुई करुणाई।
मन ने व्यथा सुनाई अपनी,
नीर नयन में भर भर आई।

खोके निज बल को अपने,
हैं हमनें बहुत ठोकरें खाई।
भ्रमित स्वप्न  में तेरी माया,
हृदय में दुखित तरंगें आई।

झर-झरते  आंखों से आंसू,
भाव अपनी है लाज गंवाई।
मेरी आशा क्यूं हुई बावली?
प्रीति  विहंगिनी  हुई पराई।

पांवों में छाले हैं रात अंधेरी,
पथिक बनी यह पीर पराई।
फूल-फूल में कांटे हैं चुभते,
ये धैर्य मृत्यु  की करे दुहाई?

लौटा दो  तुम  प्रेम-धरोहर,
हुई द्रवित हिय आह सुनाई।
जो पाया,लौटाया तुमको मैं,
सूद समेत की मैंने भरपाई।

तड़प  हृदय की  कौन सुने?
पुनः वेदना ये  मिलने आई।
कौन सुने इन अंतर्भावों को?
दुःख ने फिर से स्वांग रचाई।
××××××××××××××××××
स्वरचित व मौलिक रचना:-
-----राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-21/02/2025

©Rajesh Kumar #Thinking
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Rajesh Kumar

देर तक नहीं रहता 
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मौसम चाहे जैसा भी हो देर तक हसीं नहीं रहता।
वक्त चाहे  जैसा भी हो आंखों में नमी नहीं रहता।

हर टूटे हुए दिल की बस  इतनी अधूरी कहानी है,
ख्वाब जब टूटते हैं तो पैरों तले जमीं नहीं रहता।

चाहत के चोट से बच जाएं तो हर ख़याल अच्छा,
मगर वो जब मिल जाए तो कोई कमी नहीं रहता।

ऊंचे महलों के दरख्तों से यही आह निकलती है,
आदमी जिन्दा हो बेशक पर जिंदगी नहीं रहता।

लौट आओ इन रास्तों  से नये मुसाफ़िर तुम हो,
कोई  हमदम तेरे हिस्से  में देर तक  नहीं रहता।
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---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-14/02/2025

©Rajesh Kumar #Thinking
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Rajesh Kumar

White सज़ा चाहे जो भी दे वो मुझे मंजूर होगा 
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मुझे यकीन है कि हमारा ही कुसूर होगा।
सज़ा चाहे जो भी दे वो मुझे मंजूर होगा।

उसे क्या ग़म है दुनिया के शोर शराबे से?
जो खामोश बैठा है, वो अपनों दूर होगा।

ना दुनिया की बंदिशें तोड़ पायीं ग़म को,
इतना हंस रहा है तो ज़ख्मों में चूर होगा।

वक्त जैसा भी हो रेत जैसे सरक जाएगा,
वो नादां ही है जिसे पैसों पर गुरूर होगा।

किस्मत की लकीरों को मिटा ना सकोगे,
इंसान जैसा भी हो वक्त से मजबूर होगा।

जीत की कीमत  हार से चुकायी जाएगी,
हौसला बुलंद हो  तो फतह जरूर होगा।

लिख डाले सारे किस्से और बयानात मेरे,
वो क्या समझेगा जो बहुत मगरूर होगा।

मेरी गुफ्तगू और मेरे फसाने भी याद करें,
दिल तोड़ कर मेरा, जहां में मशहूर होगा।
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---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-07/02/2025

©Rajesh Kumar #good_night
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Rajesh Kumar

अभी तो ग़म से उबर रहा हूं 
***********************
जीवन का बोझ तो सह लेता,
पर मन का बोझ तो भारी है।
अभी तो ग़म  से उबर रहा हूं,
फिर दुःख की नयी तैयारी है।

प्रेम के घाव अभी कहां भरें हैं?
अभी मन के घाव भी बाकी हैं।
अभी तो चोट सहें हैं फूलों की,
अब कांटों के घाव तो बाकी है।

बीत गए हैं,जीवन के पल भी,
जहां न हम थे,न ख्वाब सही।
जहां तुम्हारे वे  स्नेह प्रखर थे,
वहां उजाले और न रात सही।

प्राणों की  भी अपनी मर्यादा है,
और समय की अपनी बंदिशें हैं।
जिसको मन यह अपना समझा,
यह खोने-पाने की सब चीजें हैं।

जिस जगत में रातें काटीं हैं मैंने,
उसका कब  नया सबेरा  होगा?
कब ये शाम  ढलेगी जीवन की?
किस डाल पे नया  बसेरा होगा?

जीवन ये कब खाली होता है?
अनगिनत,असंख्य विचारों से।
चंचल चित्त ये अब भी रोता है,
चोटिल  मन  नवल विचारों से।
•••••••••••••••••••••
स्वरचित व मौलिक रचना:---
---राजेश कुमार 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-06/02/2025

©Rajesh Kumar #Thinking
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Rajesh Kumar

White तुम्हें हमनें लाखों हजारों में पाये 
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जो खोए थे हमनें  बहारों में पाये।
तुम्हें हमनें लाखों  हजारों में पाये।

जिन्हें नाज़ था दौलत ए गुमां का,
उन्हें हमनें बुत के नजारों में पाये।

जिन्हें थी ख़लिश खुदके ख़ता की,
उन्हें हमनें नदु के किनारों में पाये।

जब भी ज़र्ब खाए,जह्मत उठा ली,
वही दर्द हमनें अश -आरों में पाये।

जिनमें अज़ाब था अपने अदा का,
उन्हें हमनें अब्तर  मजारों में पाये।

तुमने क्या छुपाए पलकें झुका कर?
उन्हें हमनें आंखों के इशारों में पाये।

बरसेंगे क्या अब्र बिना आसमां के?
उन्हें हमनें बिखरे फब्बारों में पाये।
 
बड़े बेआबरू थे वे अंजुमन में आके,
उन्हें हमनें चाक़ ओ चौबारों में पाये।
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---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-05/02/2025

©Rajesh Kumar #love_shayari
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Rajesh Kumar

White ख्वाहिशों में बंट गयीं हैं....
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आज फिर वही किस्सा वही नाम याद आया।
मेरी आवारगी में इश्क़-ए-पयाम याद आया।

वो जो इतने मशरूफ थे अपनी ही बेखुदी में,
वो नहीं आए शायद पर वो शाम याद आया।

वो महलों के शोर में इस कदर खो गये हैं लेकिन,
कहीं पे मेरा एहसास कहीं दर्द तमाम याद आया।

नज़रों को फेर कर निकल गये बहुत दूर फिर भी,
वो जितना भुलाये उतना सुबह-शाम याद आया।

हम तो मशगूल थे तुम्हारी यादों के सिलसिलों में,
पर इस ज़माने को मेरा ही निज़ाम याद आया।

वो छोड़कर रुखसत हुए बड़े ही बेखबर होकर,
पर कदम कदम पर मेरा एहतमाम याद आया।

तेरी रफ़ाकत में पाया था मैंने जिंदगी का मजा,
आज़ फिर तबस्सुम पे वही अंजाम याद आया।

हमनें खायीं थीं ठोकरें आमादा-ए-सफ़र में पर,
पर मेरी लफ़्ज़ों पर तुम्हारा कलाम याद आया।

जिंदगी तेरे बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ हैं लेकिन,
जिंदगी भर मुझे बहुत ही ताम-झाम याद आया।

ख्वाहिशों में बंट गयीं हैं दिल ए आरजू भी मेरी,
पर तुम्हारे हिस्से में हमारा एहतराम याद आया।
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---राजेश कुमार 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-04/02/2025

©Rajesh Kumar #Thinking
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Rajesh Kumar

White कहां से मैं जीवन बन जाऊं?
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खिलतीं कलियां कहां से लाऊं?
कहां से लाऊं  सागर‌‌  के मोती?
कहां से लाऊं फूलों का मधुबन?
अब विरहिन  बन ये आंखें रोतीं।

मिले जो पल में वो बिछड़ गए।
जाने  दुनिया में वो किधर गए।
अब है यह जीवन भरा भरा सा,
जो टूटे तिनकों सा बिखर गए।

तुम क्या जानो भाव हृदय का?
तुम क्या जानो घाव हृदय का?
सूखे  इन  दृग  में ‌ नीर  भरें हैं।
तुम क्या जानो आह हृदय का?

कहां से लाऊं  सेज सुमन की?
कहां  से घर आंगन महकाऊं?
मेरे  प्राणों में है  प्रवाह तुम्हारा,
कहां से मैं  जीवन  बन  जाऊं?

---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-03/02/2025

©Rajesh Kumar #Sad_Status
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Rajesh Kumar

White यह आंसू फूट जाता है 
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जुदा होके कोई अपनों से कभी भी रूठ जाता है।
कोई पत्ता शाखों से जैसे कोई कभी टूट जाता है।

हजारों  ख्वाब  ऐसे  ही  दफन  होते  हैं  नींदों  में,
इन सांसों का भरोसा क्या कभी भी छूट जाता है?

बढ़ा लो फासले चाहे  फासलों से भी  क्या होगा?
रिश्ता ग़र दिल का हो जैसा अक्सर जुट जाता है।

मोहब्बत दर्द में तन्हा, चाहतें ग़म में ना-काब़िल,
इश्क़ के दर पे आकर के आशिक़ी लूट जाता है।

करोगे याद तुम जितना ज़माने भर की तुम बातें,
हो जज़्बात जिंदा ग़र तो यह आंसू फूट जाता है।
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---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-01/02/2025

©Rajesh Kumar #Thinking
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Rajesh Kumar

White कहां रात ढलती कहां दिन गुजरता?
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कहां रात ढलती कहां दिन गुजरता?
कहां भूल पाता हूं  तुम्हारी वो बातें?

वो सपने अधूरे और वो नींदें अधूरी,
बहुत याद आएंगी  सारी मुलाकातें।

वो लहरें,वो लम्हें, वो समंदर किनारे,
अभी भी वे दिन रात मुझको जगाते।

कहां भूल  पाता हूं वो किस्से पुराने?
वो रातें अधूरी और सितारों की बातें।

वो मासूम चेहरा और  चंचल निगाहें,
वो ख्वाबों ख़यालों में मुझको सताते।

याद आते हैं मुझे वो कसमें,वो वादे,
वो बातें  पुरानी जो  मुझको सुनाते।

कहां भूल पाता हूं कोयल सी बोली?
बहुत याद आती हैं सरगम की बातें।

वो लचकते  शज़र, वो शाखों के बेलें,
वो बहारें वो गुलशन गुलिस्तां से खेले।

वो ग़ज़लें वो नज़्में वो वज़्में मुस्कुराते।
तेरा छुपके आना और चुपके से जाना,

वो हवाओं के संग संग तुम्हारा तराना।
तुम्हें देखकर वो यूं ही मुझको बुलाते।

वो आंखों का काजल नशीली जवानी,
कहां भूल पाएंगे हम तुम्हारी जज्बातें?
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---राजेश कुमार 
गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-31/01/2025

©Rajesh Kumar #Thinking
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Rajesh Kumar

White भोजपुरी कविता (व्यंग्य)
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कवनो न कवनो बात होई।
जब उनसे  मुलाकात होई।
मनवा के  हालि बताईं का,
चुप्पे-चुप्पे  सब बाति होई।

कब दिन होई,कब रात होई?
कब हाथे में उनके हाथ होई?
ई रोगवे सार कुछ अईसन हऽ
देखते-देखते  कऽ सांझ होई।

ई माई-बाप  सब  छूटि जईहें।
ई गांव जवार सब रुठि जईहें।
जब प्यार तोहार परवान चढ़ी,
तब जुतवन  के बरसात होई।

कहला से  केहू अब मानी ना।
दिलवा के हाल केहू जानी ना।
जब भूत  उतरि जाला मन के,
तब उहो तोहके  पहचानी ना।

केहू  पहिले, केहू बाद भईल।
बड़ी लोग एमे बरबाद भईल।
भाग के  लिखल केहू टारि ना,
केहू मरके इहां आजाद भईल।

पढ़ले लिखले के समझाईं का।
केहू  निम्मन  बाति बताई का।
जे प्यार के  रोग में पड़ि गईल,
ओके कुछु समझ में आई का।

बोलबा तऽ  सब खराब लगि।
कहबा तऽ बाति तेजाब लगि।
केतनों  ठंडा बनि  समझईबा,
हर बतिए उनके  आगि लगि।
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-----राजेश कुमार 
गोरखपुर(उत्तर प्रदेश)
दिनांक:-29/01/2025

©Rajesh Kumar #Sad_Status
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