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pushpad8829
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Pushpvritiya

india

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Pushpvritiya


1.
भाव श्रद्धा भक्ति अर्पित, आपको है राम जी |
हो सदा सुमिरन तुम्हारा, और क्या है काम जी ||
द्वार तेरे आ गई हूँ, आसरा तेरा लिए |
क्या करूँ संसार का मै,साथ तेरा चाहिए ||
2.
विघ्न बाधा मार्ग जो हो, विघ्न बाधा टालिए |
जन्मदाता आप ही हो,जन्म को संभालिए||
हो प्रभा अँगना तुम्हारे, साँझ तेरे दर ढले |
लो शरण अपनी प्रभो जी, पंथ तेरा धर चले  ||

पुष्पा 'प्रहिदी' 🙏🏻🙏🏻







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©Pushpvritiya
  #जयश्रीराम
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Pushpvritiya

 बातें अधूरी भी रह जाएं तो क्या......!
 तू 
 मुझमें 
 पूरा 
 हमेशा रहेगा.......!!
                      @पुष्पवृतियाँ











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©Pushpvritiya
  #अधूरापन
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Pushpvritiya



अश्रु सुनियो धीरज धरना,
प्रेम कठिन पर पार उतरना |
पग-पग काँटें हैं यह माना,
मेल विरह का ताना-बाना ||

हर ले मन की दुविधा सारी,
आशा ज्योत जलाकर न्यारी |
बाँधी है जब नेहा ऐसी ,
भय शंका तब बोलो कैसी ||

@पुष्पवृतियाँ





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©Pushpvritiya
  #चौपाई


अश्रु सुनियो धीरज धरना,
प्रेम कठिन पर पार उतरना |
पग-पग काँटें हैं यह माना,
मेल विरह का ताना-बाना ||

हर ले मन की दुविधा सारी,
आशा ज्योत जलाकर न्यारी |
बाँधी है जब नेहा ऐसी ,
भय शंका तब बोलो कैसी ||

@पुष्पवृतियाँ





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#चौपाई अश्रु सुनियो धीरज धरना, प्रेम कठिन पर पार उतरना | पग-पग काँटें हैं यह माना, मेल विरह का ताना-बाना || हर ले मन की दुविधा सारी, आशा ज्योत जलाकर न्यारी | बाँधी है जब नेहा ऐसी , भय शंका तब बोलो कैसी || @पुष्पवृतियाँ . . #कविता

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Pushpvritiya


हिय की मारी सोच अकिंचन,
पिय जी झूठ बँधाय गयो मन.....!!
               @पुष्पवृतियाँ

©Pushpvritiya
  #चौपाई
वैरागी मन तुम बिन प्रीतम,
पीर न जाने किन् विध् हो कम...!
कस्तूरी मृग बन कर साजन,
तोहे ढूँढ़े भटके वन वन......!!

विरहिन देह जलन जागे है,
अग्नि सरीखा जल लागे है.....!
श्रावण आए भादो आए,
मन व्याकुल यह त्राण न पाए.....!!

पिय जी तुम बरखा बूँदन में,
नेत्र खुले पलके मूँदन में....!
काया सूखी शाख हुई है,
ताप विरह में राख हुई है.....!!

आस सभी अब मिथ्य भए हैं,
अँसूवन जल भी रूठ गए हैं....!
हिय की मारी सोच अकिंचन,
पिय जी झूठ बँधाय गयो मन....!!
@पुष्पवृतियाँ

#चौपाई वैरागी मन तुम बिन प्रीतम, पीर न जाने किन् विध् हो कम...! कस्तूरी मृग बन कर साजन, तोहे ढूँढ़े भटके वन वन......!! विरहिन देह जलन जागे है, अग्नि सरीखा जल लागे है.....! श्रावण आए भादो आए, मन व्याकुल यह त्राण न पाए.....!! पिय जी तुम बरखा बूँदन में, नेत्र खुले पलके मूँदन में....! काया सूखी शाख हुई है, ताप विरह में राख हुई है.....!! आस सभी अब मिथ्य भए हैं, अँसूवन जल भी रूठ गए हैं....! हिय की मारी सोच अकिंचन, पिय जी झूठ बँधाय गयो मन....!! @पुष्पवृतियाँ #कविता

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Pushpvritiya

कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको,
कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......!
सुनो गर जनम दोबारा हो,
मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!!

चाहूँगी मैं जड़ में जाकर 
जड़ से तुमको सींचना..
मन वचन धरण 
नव अवतरण 
सब अपने भीतर भींचना.....

रक्तिम सा भ्रुण बन कर तुम सम,
भ्रुण भ्रुण में अंतर परखूँगी..!
मेल असंभव क्यूँ हम तुम का,
इस पर उत्तर रखूँगी....!!

पुछूँगी कि किए कहाँ
वो भाव श्राद्ध 
कोमल कसीज,
खोजूँगी मैं वहाँ जहाँ 
बोया गया था दंभ बीज...
उस नर्म धरा को पाछूँगी,
मैं नमी का कारण जाचूँगी.......!!

मैं ढूंढूँगी 
वो वक्ष जहाँ,
स्त्रीत्व दबाया है निज का,
वो नेत्र जहाँ 
जलधि समान अश्रु छुपाया है निज का....!
प्रकृत विद्रोह तना होगा,
जब पुत्र पुरुष बना होगा.....

मैं तुममें सेंध लगाकर हाँ, 
कोमलताएं तलाशूँगी,
उन कारणों से जुझूँगी....
मैं तुमको जीना चाहूँगी......!!

अनुभूत करूँ तुमसा स्वामित्व,
श्रेयस जो तुमने ढोया है...
और यूँ पुरुष को होने में 
कितने तक निज को खोया.....!
कदम कठिन रुक 
चलते चलते 
कित् जाकर आसान हुआ,
हृदय तुम्हारा पुरुष भार से 
किस हद तक पाषाण हुआ.....!!

मैं तुममें अंगीकार हो,
नवसृज होकर आऊँगी,
मैं तुमको जीना चाहूँगी........
फिर तुमसे मिलन निबाहूँगी........!!
@पुष्पवृतियाँ

©Pushpvritiya
  कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको,
कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......!
सुनो गर जनम दोबारा हो,
मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!!

चाहूँगी मैं जड़ में जाकर 
जड़ से तुमको सींचना..
मन वचन धरण 
नव अवतरण 
सब अपने भीतर भींचना.....

रक्तिम सा भ्रुण बन कर तुम सम,
भ्रुण भ्रुण में अंतर परखूँगी..!
मेल असंभव क्यूँ हम तुम का,
इस पर उत्तर रखूँगी....!!

पुछूँगी कि किए कहाँ
वो भाव श्राद्ध 
कोमल कसीज,
खोजूँगी मैं वहाँ
जहाँ बोया गया था दंभ बीज...
उस नर्म धरा को पाछूँगी,
मैं नमी का कारण जाचूँगी.......!!

मैं ढूंढूँगी 
वो वक्ष जहाँ,
स्त्रीत्व दबाया है निज का,
वो नेत्र जहाँ 
जलधि समान अश्रु छुपाया है निज का....!
प्रकृत विद्रोह तना होगा,
जब पुत्र पुरुष बना होगा.....

मैं तुममें सेंध लगाकर हाँ, 
कोमलताएं तलाशूँगी,
उन कारणों से जुझूँगी....
मैं तुमको जीना चाहूँगी......!!

अनुभूत करूँ तुमसा स्वामित्व,
श्रेयस जो तुमने ढोया है...
और यूँ पुरुष को होने में 
कितने तक निज को खोया.....!
कदम कठिन रुक 
चलते चलते 
कित् जाकर आसान हुआ,
हृदय तुम्हारा पुरुष भार से 
किस हद तक पाषाण हुआ.....!!

मैं तुममें अंगीकार हो,
नवसृज होकर आऊँगी,
मैं तुमको जीना चाहूँगी........
फिर तुमसे मिलन निबाहूँगी........!!
@पुष्पवृतियाँ

कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में जाकर जड़ से तुमको सींचना.. मन वचन धरण नव अवतरण सब अपने भीतर भींचना..... रक्तिम सा भ्रुण बन कर तुम सम, भ्रुण भ्रुण में अंतर परखूँगी..! मेल असंभव क्यूँ हम तुम का, इस पर उत्तर रखूँगी....!! पुछूँगी कि किए कहाँ वो भाव श्राद्ध कोमल कसीज, खोजूँगी मैं वहाँ जहाँ बोया गया था दंभ बीज... उस नर्म धरा को पाछूँगी, मैं नमी का कारण जाचूँगी.......!! मैं ढूंढूँगी वो वक्ष जहाँ, स्त्रीत्व दबाया है निज का, वो नेत्र जहाँ जलधि समान अश्रु छुपाया है निज का....! प्रकृत विद्रोह तना होगा, जब पुत्र पुरुष बना होगा..... मैं तुममें सेंध लगाकर हाँ, कोमलताएं तलाशूँगी, उन कारणों से जुझूँगी.... मैं तुमको जीना चाहूँगी......!! अनुभूत करूँ तुमसा स्वामित्व, श्रेयस जो तुमने ढोया है... और यूँ पुरुष को होने में कितने तक निज को खोया.....! कदम कठिन रुक चलते चलते कित् जाकर आसान हुआ, हृदय तुम्हारा पुरुष भार से किस हद तक पाषाण हुआ.....!! मैं तुममें अंगीकार हो, नवसृज होकर आऊँगी, मैं तुमको जीना चाहूँगी........ फिर तुमसे मिलन निबाहूँगी........!! @पुष्पवृतियाँ #कविता

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Pushpvritiya

सुनों कि शब्दों को आराम देते हैं,
और सुनों.....
कि भावों का विस्तारण हो अब......!
                    तो यूं तो प्रेम के कारण कई रहें,
                    तो ये जो प्रेम है वो प्रेम हीं अकारण हो अब......!!
                                               @पुष्पवृतियां

©Pushpvritiya #silhouette  Divya Joshi Sudha Tripathi The Unstoppable thoughts अज्ञात

#silhouette Divya Joshi Sudha Tripathi The Unstoppable thoughts अज्ञात

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Pushpvritiya

उलझले केशों में गूँथे हैं 
निशा वो विरहिनी,
स्याह चक्षु घेर..जोहे 
रास्ता वो विरहिनी........
जम रही 
निस्तेज काया 
कपकपाती 
शीत सी,
और हृदय में जागती उसकी 
ज्वलंत यामिनी...
वो विरहिनी 
वो आस,
वो देहरी पे आकर 
जा रही,
बैठ सत्यों के शवों पे, 
सत्य को जला रही....
अनुरक्त हो अनुराग में,वो देव से टकरा रही...
भस्म मले देह पे,
यौवन जला वो विरहिनी..
तापित वो शापित ग्रीष्म की अग्निशिला वो विरहिनी.........
                     @पुष्पवृतियां

©Pushpvritiya #विरहिनी Sudha Tripathi Divya Joshi अज्ञात The Unstoppable thoughts

#विरहिनी Sudha Tripathi Divya Joshi अज्ञात The Unstoppable thoughts

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Pushpvritiya

#कुछयूंहीसा
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Pushpvritiya

नज़र में यूं ठहर का...नज़र में यूं नज़र आना,
बयां है इश्क़ ने उम्रें गुज़ारी है यहां.........!!
                                              @पुष्पवृतियां















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©Pushpvritiya #2023Recap 
पुष्पवृत्तियाँ (Pushpvritiyaan) hindi poetry Paperback 2023 by Pushpa Prahidi https://amzn.eu/d/aBlNo24

#2023Recap पुष्पवृत्तियाँ (Pushpvritiyaan) hindi poetry Paperback 2023 by Pushpa Prahidi https://amzn.eu/d/aBlNo24 #शायरी

36 Love

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Pushpvritiya

वो बोलता रहता है..अनेको शब्द,
मैं सुनती हूँ और ढूंढती हूं अर्थ उनके...मन ही मन,
मन ही मन उन शब्दों को आधार बना 
अर्थों को नया आकार देती हूँ...
और सेतु हो जोड़ देती हूँ उसके कहे शब्दों को 
अपने बनाए अर्थों से.....

वो समझाता बहुत है,
मैं समझती हूँ उसके मन..भाव,
और उन मनोभावों में 
तलाशती हूँ कोई कोना उसका...जहां 
रह जाऊं सिमट कर..सदा को मैं.....

मैं उससे बात नही कर पाती न,
इसलिए मैं कविताएं लिखती हूं......!!
@पुष्पवृतियां

©Pushpvritiya

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