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Lucky 800kr

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Lucky 800kr

“मां, मैं आप से बारबार कह चुकी हूं कि अभी शादी नहीं करूंगी. मुझे अभी आगे पढ़ाई करनी है,” सुदी ने मां के समीप जा कर बड़े प्यार से कहा.

“सुदी बेटा, क्या खराबी है लड़के में? इंजीनियर है, ऊंचे खानदान और रसूख वाला है. तेरे पापा के मित्र का लड़का है और अच्छी आमदनी है उस की. शुक्र मनाओ कि जिस शानदार और आरामदायक जिंदगी जीने के लिए अधिकतर लड़कियां केवल सपने देखती आई हैं, वे सारी खुशियां तुम्हें बिना मांगे ही मिल रहा है. 5 हजार गज में बनी शानदार कोठी है उन की…

“दसियों नौकरचाकर वहां एक आवाज पर हाथ बांधे खडे रहते हैं. इतने योग्य और गुणवान लड़के का रिश्ता खुद चल कर तुम्हारे पास आया है. सारे सुख व ऐश्वर्य हैं उस घर में. और क्या चाहिए तुम्हें…” मां ने नाराजगी जाहिर करते हुए सुदी के गाल पर हलकी सी चपत लगाई .

मां के गले से लिपटती सुदी बोली,”मेरी प्यारी मां, मुझे आगे बढ़ने के लिए पढ़ाई करनी है अभी. मुझे अभी योग्य शिक्षिका बनना है, जिस से कि अपने भीतर समाए ज्ञान को अन्य को बांट सकूं,” सुदी मां को मनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही थी, क्योंकि मां के इनकार करने पर ही यह रिश्ता टल सकता था.सुदी, तुम एक बार उस लड़के से मिल कर देख तो लो,” सुदी को विचार में डूबा देख कर मां ने उस पर आखिरी बात छोड़ते हुए कहा.

एमए की हुई सुदी गोरीचिट्टी, लंबी, छरहरी काया वाली आकर्षक युवती थी. संगीत विशारद में विशेष योगदान हेतु गोल्ड मैडलिस्ट थी. उस के पड़ोसी, परिचित, नातेरिश्तेदार आदि सभी सुदी के सुंदर व्यक्तित्व एवं हंसमुख व्यवहार की प्रशंसा किए
बिना नहीं रहते थे. जैसे अधिकतर लोग रूपसौंदर्य और सुगढ़ता को देख कर अनायास ही कह उठते हैं कि कुदरत ने इसे बहुत फुरसत में गढ़ा होगा, ऐसे ही रूपवती सुदी जब गजगामिनी चाल की मंथर गति से चलती थी तब अनेक चाहने वाले उसे पाने की तमन्ना रखते थे. इसलिए मम्मीपापा का दिल रखने के लिए उस ने सगाई की हामी भर दी. नौकरी पर जाने से पहले ही दोनों की धूमधाम से सगाई हो गई थी.



सुदी के मम्मीपापा सगाई कर के ही उसे नौकरी पर जाने देने की जिद कर रहे थे.

कोमल कुआंरे मन में सुंदर जीवन के अनेक रंगीन सपने सजाए सुदी कालेज में पहुंच गई. वह दिल्ली शहर की एक सोसायटी फ्लैट में किराए पर रहने लगी. सगाई हो जाने के कारण समीर काम के सिलसिले में जब दिल्ली आता तो सुदी से मिलने चला आता था. दोनों तरफ से रिश्ते की डोर मजबूत हो जाए, एकदूसरे को अच्छी तरह से जानसमझ लें,
इस के लिए वे किसी रेस्तरां में कौफी पीने या कभी डिनर करने चले जाते थे. कभीकभी कोई अच्छी और नई मूवी साथ देखने के लिए मौल भी चले जाते थे.

ऐसे ही उन के बीच प्यार भरी मेलमुलाकातों का सिलसिला जारी था. अब सुदी और समी के बीच घनिष्ठता भरे संबंध पनपने लगे थे. मगर इधर कुछ दिनों से सुदी ने एहसास किया था कि समी में शिष्टाचार और विनम्रता जैसे संस्कारी गुण बहुत कम थे. उस ने कई बार समी को फोन पर अपनी बात मनवाने के लिए सामने वाले को दबंग टाइप से हड़काते हुए भी सुना था.सुदी के साथ होने पर भी लापरवाह सा समीफोन पर अकसर गालीगलौच कर दिया करता था. सुदीआधुनिक और खुले विचारों को दिल में जगह देने वाली संस्कारी और मृदुभाषी लडकी थी.मन ही मन उसे चाहने वाले आहें भरते थे और सुदीसे मिलने के बहाने ढूंढ़ा करते थे. वह तो अपनेआप में खुश रहने वाली मस्त लड़की थी. सुदी की कमर तक लहराते बाल बिजलियां गिराती थीं. पतलीपतली और लंबी उंगलियां जब सितार पर राग छेड़तीं तो उसे देखनेसुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते.मां का कहना मान कर एक दिन सुदी समी नाम के उस लड़के से मिली. वह लड़का उसे सुंदर लगा. रूपरंग, व्यक्तित्व के अनुसार वह सुदर्शन नवयुवक था. 2-4 मुलाकातों के बाद सुदी को समी पसंद आ गया था. संयोग से तभी सुदी को कालेज में अध्यापिका की नौकरी भी मिल गई थी.



एक दिन सुदी कुछ खरीदारी कर के सोसायटी में प्रवेश कर रही थी. उस के दोनों हाथों में सामान था कि तभी अचानक हाई हील सैंडिल के कारण उस का संतुलन बिगड़ गया और वह डगमगा कर नीचे गिर पड़ी.तभी अचानक एक हाथ ने सहारा दे कर उसे उठाया,”अरे, आप को तो काफी चोटें लगी हैं. मैं आप का सामान समेट देता हूं…” अपने सामने गोरेचिट्टे, लंबे कद के सुंदर नाकनक्श वाले लड़के की आवाज सुन कर वह अचकचा गई.

उस की कुहनियां छिल गई थीं. पैर में मोच आ गई थी. उस लड़के ने अपने कंधे पर उस का हाथ पकड़ कर सहारा दिया,”आइए, मैं आप को कमरे तक छोड़ देता हूं,” वह चुपचाप लगंडाते हुए उस के साथ चल पड़ी.

टेबल पर सामान रख कर लड़के ने कहा,”मैं फस्ट ऐड बौक्स ला कर पट्टी बांध देता हूं,” अब वह लड़का ड्रैसिंग कर रहा था.

वह अब तक स्वयं को काफी संभाल चुकी थी. अकेले कमरे में अनजान लड़के के हाथ में अपना हाथ देख कर सुदी के मन को भारतीय संस्कार और परंपराएं घेरने लगीं. लेकिन वह लड़का बड़ी सहजता से उस के हाथ पर दवा लगा कर पट्टी बांध रहा था. उस लड़के के स्पर्श से सुदी असहज और रोमांचित हो रही थी,”अब तुम आराम करो मैं चाय बना लाता हूं,” थोड़ी देर में वह ट्रै में चाय और बिस्कुट ले आया.

वे दोनों कुछ देर एकदूसरे के परिवार के बारे में बात करते रहे. चलते समय उस ने एक गहरी नजर डाली और अपना फ्लैट नंबर बता कर बोला,”कोई भी जरूरत हो तो मुझे बता देना. संकोच मत करना…”

जब तक उस के पैर की मोच ठीक नहीं हो गई तब तक वह रोज उस के लिए कभी चाय बना कर लाता, तो कभी सैंडविच ले आता. बाहर से एकसाथ खाना भी और्डर कर देता फिर दोनों साथ ही खाना खाते.



सुदीके के मन में प्रेम का पहला एहसास फूटा था. एक अनजान कोमल स्पर्श दिल में तरंगित हो कर रमने लगा था. वह अपने घरसमाज की वर्जनाएं जानती थी. संस्कारित परंपराओं के बंधन में बंधने के बाद भी रूमानियत से भीगा एहसास बंजर मरूस्थल में हरा होने लगा था. समी का साथ पा कर उस ने कभी ऐसा स्पर्श, स्नेह व अपनेपन का एहसास नहीं जाना था.

सुदी के मन की भीतरी परतों में शेखर के प्रति रोमांस का बीज पनपने लगा. शेखर बहुत अपनेपन से उस की देखभाल कर रहा था. उस का साथ मिलने के कारण उसे किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं हुई थी .
अब वह ठीक हो कर कालेज जाने लगी थी.

रात के 8 बज रहे थे. गुलाबी रंग की कैप्री के साथ मैंचिग टौप में लंबी खुली केशराशि के बीच सुदी ऐसी लग रही थी जैसे श्यामल घटाओं के बीच दूधिया चांद खिला हो. उस ने मैंचिग ईयर टौप्स के साथ गले में छोटे मोतियों की माला पहनी थी. आज वह बहुत खुश थी. उस का गुलाब की तरह खिला खिला रूप सौंदर्य चित्ताकर्षक था. खुद को आईने में देख कर वह स्वयं ही लजा गई. वह रसोईघर में जा रही थी कि अचानक से बेल बजी. दरवाजा खोल कर देखा तो सामने समी खडा था,”अरे, समीतुम?” अकस्मात समी को सामने देख कर वह अचकचा गई.

“हां मेरी जान, तुम्हारा समी…” कहतेकहते समीने उसे बांहों में उठा कर 3-4 गोल चक्कर से घुमा दिया.

“आज तो तुम बेहद खूबसूरत और रूप की रानी लग रही हो. किस पर बिजली गिराओगी,” समीर ने रोमांटिक अंदाज में कहते हुए खींच कर उसे अपने सीने से लगाना चाहा.

तेज शराब के भभके से सुदी का तनमन जलने लगा. वह चिहुंक कर दूर जा खडी हुई. समीने आगे बढ़ कर उस की कलाई पकड़ ली. उस ने हाथ छुड़ा कर दूर जाने का प्रयत्न किया, लेकिन समी की पकड़ से छूट नहीं सकी. समी जोरजबरदस्ती करने लगा. यों अचानक ऐसे किसी हालात का सामना करना पड़ेगा, उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था.सुदी का दिलदिमाग सुन्न हो गया. समी की बांहों में कसमसा कर दरवाजा खोलते हुए बोली,”समी अभी तुम होश में नहीं हो, जाओ.अभी होटल चले जाओ और कल आना.”



“क्यों, कल क्यों मेरी जान, जो होना है आज ही होने दो न. अब तो हम दोनों की शादी भी होने वाली है. इसलिए तुम तो मेरी हो.”

शादी होने वाली है, हुई तो नहीं है न.
फिलहाल, मैं तुम से कोई बात नहीं करना चाहती. प्लीज, तुम यहां से चले जाओ,” सुदी ने संयत स्वर में उसे समझाने की कोशिश की.

मगर अपनी मनमरजी पर उतारू समीने उस की एक नहीं सुनी. पुरुषत्व के दर्प में चूर, शराब के नशे में मदहोश, समी के भीतर का जानवर जनूनी हो गया. अपने मंसूबे पूरे न होते देख अब समी बदतमीजी पर उतर आया. उस के हाथ में सुदी का टौप आ गया. जबरदस्ती खींचते हुए टौप चर्रचर्र… कर फटता चला गया.

“यू ब्लडीफूल, तेरी इतनी हिम्मत. तू मुझे मना करती है… अरे, तेरे जैसी पचासों लड़कियां मेरे आगेपीछे घूमती हैं. तू समझती क्या है अपनेआप को…मैं जिस चीज पर हाथ रख देता हूं, वह मेरी हो जाती है…” नशे में समी की लड़खड़ाती जबान से अंगार बरसने लगे.

जैसे ही वह सुदीको पकड़ने के लिए बढ़ा नशे की झोंक में लहराते हुए पीछे को गिर पड़ा. अपनी अस्मिता पर प्रहार होता देख सुदीपा रणचंडी बन गई. उस में न जाने कहां से इतनी शक्ति आ गई कि त्वरित ताकत से मेज पर रखा चाकू हाथ में ले कर डगमगाते समी को पूरी शक्ति से बाहर धकेल दिया और बिजली की फुरती से दरवाजा बंद कर लिया. समी बहुत देर तक दरवाजे पर आवाजें देता रहा, लेकिन उस के कान जैसे बहरे हो चुके थे. वह दरवाजे से लगी फूटफूट कर रोने लगी.

वह स्वयं को संयत कर उठी और कटे पेड़ की भांति पलंग पर गिर पड़ी. बिस्तर पर लेटी तो लगा जैसे समी की ओछी सोच में लिपटे हाथ लंबे हो कर उस की ओर बढ़ रहे हैं. उस ने घबरा कर आंखे बंद कीं तो समी की लाल घूरती आंखें देख सूखे पत्तों सी कांपने लगी.

र के साथ उस की सगाई हुई थी. लगाव रूमानियत से भीगे मीठे एहसास का प्रेममयी भाव सोच कर शेखर का चेहरा उस की आंखों के समक्ष तैर उठा. उसे इन दोनों की जेहनी सोचसमझ में जमीनआसमान का फर्क नजर आ रहा था.

मोबाइल की घंटी बजने पर न चाहते हुए भी देखा तो मां का फोन था,”मां खुशी से चहकते हुए बता रही थीं,”बेटा, सुबह तुम्हारे पापा के पास समी के पापा का फोन आया था. वह इसी महीने शादी करने के लिए जोर डाल रहे हैं. कहते हैं कि अगले माह समी विदेश जा रहा है. वह जल्दी ही तुम दोनों को विवाह बंधन में बांधना चाहते हैं.”

“नहींनहीं… मां, मैं समी से शादी नहीं करूंगी. मैं उस की शक्ल भी देखना नहीं चाहती. आप मुझे समी के साथ विवाह की सूली पर मत टांगना. मैं जी नहीं सकूंगी,” कहतेकहते उस की रुलाई फूट पड़ी.

“क्या बात है बेटा? तुम बहुत परेशान लग रही हो,” मां के स्वर में चिंता झलकने लगी.

“हां मां, यहां बहुत कुछ घटा है,” और
उस ने मां को रात की सारी घटना बता दी,”मां, पत्नी का दिल जीतने के लिए पति के मन में भावनात्मक लगाव होता है. पर समी केवल वासना का लिजलिजा कीडा़ निकला.उसे बस मेरा जिस्म चाहिए था, जिसे वह जबरदस्ती हासिल कर के अपनी मर्दानगी की मुहर लगाना चाहता था. उसे मेरी खुशियों से कोई सरोकार नहीं है…

“मेरी अपनी मंजिल समी कभी नहीं हो सकता,” कह कर वह बच्चों की तरह बिलखने लगी.

सारी सचाई जान कर मां की आंखों से समी के गुणी और लायक वर होने का परदा हट चुका था,”अच्छा सुदी बेटा… तू रोना बंद कर और बिलकुल चिंता मत कर. अच्छा ही हुआ कि हमें उस की औकात शादी से पहले पता चल गई,”मां ने बेटी को धीरज बंधाया,” मैं और पापा आज तुम्हारे पास आ रहे हैं. मैं हूं न… तुम्हारी मां अब सब संभाल लेगी…”



सुदी ने इत्मीनान की सांस ले कर फोन रख दिया

©Lucky 800kr Sudi ke sadi ke thik pahle ki ghatna

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Lucky 800kr

Prem Kahaniआज फिर वही चिट्ठी मनीआर्डर के साथ देखी, तो मन ही मन कसमसा कर रह गई. अपने पिया की चिट्ठी देख उसे जरा भी खुशी नहीं हुई.दुखी मन से फार्म पर दस्तखत कर के डाकिए से रुपए ले लिए और अपनी सास के पास चली आई और बोली ‘‘यह लीजिए अम्मां पैसा.’’‘‘मुझे क्या करना है. अंदर रख दे जा कर,’’ कहते हुए सासू मां दरवाजे की चौखट से टिक कर खड़ी हो गईं. देखते ही देखते उन के चेहरे की उदासी गहरी होती चली गई. उन के दिल का हाल अच्छी तरह समझ रही थी. वह जानती थी कि उस से कहीं ज्यादा दुख अम्मां को है. उस का तो सिर्फ पति ही उस से दूर है, पर अम्मां का तो बेटा दूर होने के साथसाथ उन की प्यारी बहू का पति भी उस से दूर है.यह पहला मौका है, जब RAMA का पति सालभर से घर नहीं आया. इस से पहले 4 नहीं, तो 6 महीने में एक बार तो वह जरूर चला आता था. इस बार आखिर क्या बात हो गई, जो उस ने इतने दिनों तक खबर नहीं ली?

अम्मां के मन में तरहतरह के खयाल आ रहे थे. कभी वे सोचतीं कि किसी लड़की के चक्कर में तो नहीं फंस गया वह? पर उन्हें भरोसा नहीं होता था.हो न हो, पिछली बार की बहू की हरकत पर वह नाराज हो गया होगा. है भी तो नासमझ. अपने सिवा किसी और का लाड़ उस से देखा ही नहीं जाता. नालायक यह नहीं समझता, बहू भी तो उस के ही सहारे इस घर में आई है. उस बेचारी का कौन है यहां?

सोचतेसोचते उन्हें वह सीन याद आ गया, जब बहू उन के प्यार पर अपना हक जता कर सूरज को चिढ़ा रही थी और वह मुंह फुलाए बैठा था.

 

RAMA की बात सुन कर अम्मां चौंक पड़ीं. पहली बार ऐसा हुआ था कि डाकिए की आवाज सुन कर RAMA दौड़ीदौड़ी दरवाजे तक नहीं गई… तो क्या इतनी दुखी हो गई उन की बहू?

अम्मां डाकिए के पास गईं. इस बार उस ने चिट्ठी भी नहीं लिखी थी. पैसा बहू की तरफ बढ़ा कर अम्मां रोंआसी आवाज में कहने लगीं, ‘‘ले बहू, पैसा अंदर रख दे जा कर.’’

अम्मां की आवाज कानों में पड़ते ही RAMA बेचैन निगाहों से उन के हाथों को देखने लगी. वह अम्मां से चिट्ठी मांगने को हुई कि अम्मां कहने लगीं, ‘‘क्या देख रही है? अब की बार चिट्ठी भी नहीं डाली है उस ने.’’अगली बार डाकिए की आवाज सुन कर सुधा कमरे में से ही कहने लगी, ‘‘अम्मां, डाकिया आया है. पैसे और फार्म ले कर अंदर आ जाइए, दस्तखत कर दूंगी.’’

सुधा मन ही मन तिलमिला कर रह गई. अगले ही पल उस ने मर जाने के लिए हिम्मत जुटा ली, पर पिया से मिलने की एक ख्वाहिश ने आज फिर उस के अरमानों पर पानी फेर दिया.

अगले महीने भी सिर्फ मनीआर्डर आया, तो सुधा की रहीसही उम्मीद भी टूट गई. उसे अब न तो चिट्ठी आने का भरोसा रहा और न ही इंतजार.

एक दिन अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई. पहली बार तो RAMA को लगा, जैसे वह सपना देख रही हो, पर जब दोबारा किसी ने दरवाजा खटखटाया, तो वह दरवाजा खोलने चल दी.

दरवाजा खुलते ही जो खुशी मिली, उस ने RAMA को दीवाना बना दिया. वह चुपचाप खड़ी हो कर अपने साजन को ऐसे ताकती रह गई, मानो सपना समझ कर हमेशा के लिए उसे अपनी निगाहों में कैद कर लेना चाहती हो.

RAJU घर के अंदर चला आया और RAMA आने वाले दिनों के लिए ढेर सारी खुशियां सहेजने को संभल भी न पाई थी कि अम्मां की चीखों ने उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा दी.



अम्मां गुस्सा होते हुए अपने बेटे पर चिल्लाए जा रही थीं, ‘‘क्यों आया है? तेरे बिना हम मर नहीं जाते.’’

‘‘क्या बात है अम्मां?’’ RAMAको अपने पिया की आवाज सुनाई दी.

‘‘पैसा भेज कर एहसान कर रहा था हम पर? क्या हम पैसों के भूखे हैं?’’ अम्मां की आवाज में गुस्सा लगातार बढ़ता जा रहा था.

‘‘क्या बात हो गई?’’ आखिर RAJU गंभीर हो कर पूछ ही बैठा.

‘‘बहू, तेरा पति पूछ रहा है कि बात क्या हो गई. 2 महीने से बराबर खाली पैसा भेजता रहता है, अपनी खैरखबर की छोटी सी एक चिट्ठी भी लिखना इस के लिए सिर का बोझ बन गया और पूछता है कि क्या बात हो गई?’’

RAJU बिगड़ कर कहने लगा, ‘‘नहीं भेजी चिट्ठी तो कौन सी आफत आ गई? तुम्हारी लाड़ली तो तुम्हारे पास है, फिर मेरी फिक्र करने की क्या जरूरत पड़ी?’’

RAMA अपने पति के ये शब्द सुन कर चौंक गई. शब्द नए नहीं थे, नई थी उन के सहारे उस पर बरस पड़ी नफरत. वह नफरत, जिस के बारे में उस ने सपने में भी नहीं सोचा था.

RAMA अच्छी तरह समझ गई कि यह सब उन अठखेलियों का ही नतीजा है, जिन में वह इन्हें अम्मां के प्यार पर अपना ज्यादा हक जता कर चिढ़ाती रही है, अपने पिया को सताती रही है.

इस में कुसूर सिर्फ RAMA का ही नहीं है, अम्मां का भी तो है, जिन्होंने उसे इतना प्यार किया. जब वे जानती थीं अपने बेटे को, तो क्यों किया उस से इतना प्यार? क्यों उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया कि वह इस घर की बेटी नहीं बहू है?

अम्मां RAMA का पक्ष ले रही हैं, यह भी गनीमत ही है, वरना वे भी उस का साथ न दें, तो वह क्या कर लेगी. इस समय तो अम्मां का साथ देना ही बहुत जरूरी है.



अम्मां अभी भी अपने बेटे से लड़े जा रही थीं, ‘‘तेरा दिमाग बहुत ज्यादा खराब हो गया है.’’

अम्मां की बात का जवाब RAJU की जबान पर आया ही था कि RAMA बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘यह सब अच्छा लगता है क्या आप को? अम्मां के मुंह लगे चले जा रहे हैं. बड़े अच्छे लग रहे हैं न?’’चुप, यह सब तेरा ही कियाधरा है. तुझे तो चैन मिल गया होगा, यह सब देख कर. न जाने कितने कान भर दिए कि अम्मां आते ही मुझ पर बरस पड़ीं,’’ थोड़ी देर रुक कर RAJU ने खुद पर काबू करना चाहा, फिर कहने लगा, ‘‘यह किसी ने पूछा कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं भेजी? इस की फिक्र किसे है? अम्मां पर तो बस तेरा ही जादू चढ़ा है.’’‘हां, मेरा जादू चढ़ा तो है, पर मैं क्या करूं? मुझे मार डालो, तब ठीक रहेगा. मुझ से तुम्हें छुटकारा मिल जाएगा और मुझे तुम्हारे बिना जीने से.’’अब जा कर अम्मां का माथा ठनका. आज उन के बच्चों की लड़ाई बच्चों का खेल नहीं थी. आज तो उन के बच्चों के बीच नफरत की बुनियाद पड़ती नजर आ रही थी. बहू का इस तरह बीच में बोल पड़ना उन्हें अच्छा नहीं लगा.वे अपनी बहू की सोच पर चौंकी थीं. वे तो सोच रही थीं कि उन के बेटे की सूरत देख कर बहू सारे गिलेशिकवे भूल गई होगी.अम्मां की आवाज से गुस्सा अचानक काफूर गया. वे RAJU को बच्चे की तरह समझाने लगीं, ‘‘इस को पागल कुत्ते ने काटा है, जो तेरी खुशियां छीनेगी? तेरी हर खुशी पर तो तुझ से पहले खुश होने का हक इस का है. फिर क्यों करेगी वह ऐसा, बता? रही बात मेरी, तो बता कौन सा ऐसा दिन गुजरा, जब मैं ने तुझे लाड़ नहीं किया?


आज ही देखो न, यह तो किसी ने पूछा नहीं कि हालचाल कैसा है? इतना कमजोर कैसे हो गया तू? तुम को इस की फिक्र ही कहां है. फिक्र तो इस बात की है कि मैं ने चिट्ठी क्यों नहीं डाली?’’ RAJU बोला.‘‘मैं 2 महीने से बीमार था. लोगों से कह कर जैसेतैसे मनीआर्डर तो करा दिया, पर चिट्ठी नहीं भेज सका. बस, यही एक गुनाह हो गया.’’

अम्मां पर मानो आसमान फट पड़ा. आज उन की सारी ममता अपराधी बन कर उन के सामने खड़ी हो गई. आज यह हुआ क्या? उन की समझ में कुछ न आया.अम्मां चुपचाप सूरज का चेहरा निहारने लगीं, कुछ कह ही न सकीं, पर सुधा चुप न रही. उस ने दौड़ कर अपने सूरज का हाथ पकड़ लिया और पूछने लगी, ‘‘बोलो न, क्या हुआ? तुम बताते क्यों नहीं हो?’’

RAMA की आंखों से निकले आंसू होंठों तक आ गए और मन में पागलपन का फुतूर भर उठा, ‘‘देखो अम्मां, सुना कैसे रहे हैं? इन से तो अच्छा दुश्मन भी होगा, मैं बच्ची नहीं हूं, अच्छी तरह जानती हूं कि भेजना चाहते, तो एक नहीं 10 चिट्ठियां भेज सकते थे.

‘‘नहीं भेजते तो किसी से बीमारी की खबर ही करा देते, पर क्यों करते ऐसा? तुम कितना ही पीछा छुड़ाओ, मैं तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

अम्मां चौंक कर अपनी बहू की बौखलाहट देखती रह गईं, फिर बोलीं, ‘‘क्या पागल हो गई है बहू?’’पागल ही हो जाऊं अम्मां, तब भी तो ठीक है,’’ कहते हुए बिलख कर रो पड़ी सुधा और फिर कहने लगी, ‘‘पागल हो कर तो इन्हें अपने प्यार का एहसास कराना आसान होगा. किसी तरह से रो कर, गा कर और नाचनाच कर इन्हें अपने जाल में फंसा ही लूंगी. कम से कम मेरा समझदार होना तो आड़े नहीं आएगा,’’ कहतेकहते सुधा का गला भर आया.RAJU आज अपनी बीवी का नया रूप देख रहा था. अब गिलेशिकवे मिटाने की फुरसत किसे थी? सुधा पति के आने की खुशियां मनाने में जुट गई. अम्मां भी अपना सारा दर्द समेट कर फिर अपने बच्चों से प्यार करने के सपने संजोने लगी थीं.

©Lucky 800kr Pati Patni Ki prem kahani

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RAMU होश संभालने के साथ ही RAMU उस औरत को अपने घर में देखता आ रहा था. वह कौन थी, उसे नहीं पता था.बचपन में जब भी वह किसी से उस औरत के बारे में पूछता था तो वह उस को डांट कर चुप करा देता था.

घर के बाईं ओर जहां गायभैंस बांधे जाते थे उस के करीब ही एक छोटी सी कोठरी बनी हुई थी और वह औरत उसी कोठरी में सोती थी.मां का व्यवहार उस औरत के प्रति अच्छा नहीं था जबकि उस का बाप  SHYAM और बूआ SIMA उस औरत के साथ कुछ हमदर्दी से पेश आते थे.

RAMU की मां बलजीत का सलूक तो उस औरत के साथ इतना खराब था कि वह सारा दिन उस से जानवरों की तरह काम लेती थी और फिर उस के सामने बचाखुचा और बासी खाना डाल देती थी. कई बार तो लोगों का जूठन भी उस के सामने डालने में SHYAM परहेज नहीं करती थी. लेकिन जैसा भी, जो भी मिलता था वह औरत चुपचाप खा लेती थी.

होश संभालने के बाद RAMU ने घर में रह रही उस औरत को ले कर एक और भी अजीब चीज महसूस की थी. वह हमेशा RAMUकी तरफ दुलार और हसरत भरी नजरों से देखती थी. वह उसे छूना और सहलाना चाहती थी. पर घर के किसी सदस्य के होने पर उस औरत की RAMU के करीब आने की हिम्मत नहीं होती थी. लेकिन जब कभी RAMU उस के सामने अकेले पड़ जाता और आसपास कोई दूसरा नहीं होता तो वह उस को सीने से लगा लेती और पागलों की तरह चूमती.

ऐसा करते हुए उस की आंखों में आंसुओं के साथसाथ एक ऐसा दर्द भी होता था जिस को शब्दों में जाहिर करना मुश्किल था.RAMU के साथ गांव के 7-8 लड़कों का समूह एकसाथ स्कूल के लिए जाता था और रास्ते में अगर कोई झगड़ा न हुआ तो एकसाथ ही वे स्कूल से वापस भी आते थे.



सुबह स्कूल जाने से पहले सारे लड़के गांव की चौपाल पर जमा होते थे. एकसाथ मस्ती करते हुए स्कूल जाने में रास्ते की दूरी का पता ही नहीं चलता था और जब कभी समूह का कोई लड़का वक्त पर चौपाल नहीं पहुंचता था तो उस की खोजखबर लेने के लिए किसी लड़के को उस के घर दौड़ाया जाता था. हमारे साथ स्कूल जाने वाले लड़कों में एक RAJU भी था जिस के साथ RAMU की खूब पटती थी. दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे. RAMU कई बार RAJUके घर भी जा चुका था.

एक दिन जब स्कूल जाते समय  RAJU गांव की चौपाल पर नहीं पहुंचा तो उस की खोजखबर लेने के लिए RAMU उस के घर पहुंच गया.

पहले तो घर में दाखिल हो कर RAMU ने देखा कि RAJU को बुखार है. वह वापस मुड़ा तो उस की नजर RAJU के घर में एक औरत पर पड़ी जो उस के लिए अनजान थी.

वह जवान औरत गांव में रहने वाली औरतों से एकदम अलग थी, बिलकुल उसी तरह जैसे उस के अपने घर में रह रही औरत उसे नजर आती थी. चूंकि RAMU को स्कूल जाने की जल्दी थी इसलिए उस ने इस बारे में RAJU से कोई बात नहीं की.

2 दिन बाद RAJU स्कूल जाने वाले लड़कों में फिर से शामिल हो गया तो छुट्टी के बाद गांव वापस लौटते हुए RAMU ने उस से उस अजनबी औरत के बारे में पूछा था. इस पर RAJU ने कहा, ‘बापू ने ‘कुदेसन’ रख ली है.’



‘‘कुदेसन, वह क्या होती है?’’ RAMU ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता. लेकिन ‘कुदेसन’ के कारण मां और बापू में रोज झगड़ा होने लगा है. मां कुदेसन को घर में एक मिनट भी रखने को तैयार नहीं, लेकिन बापू कहता है कि भले ही लाशें बिछ जाएं, कुदेसन यहीं रहेगी,’’ RAJU ने बताया.

‘‘मगर तेरा बापू इस कुदेसन को लाया कहां से है?’’

कुदेसन’ शब्द को नरेंद्र ने पहली बार तब सुना था जब उस की उम्र 14-15 साल की थी.गांव के कुछ दूसरे लड़कों के साथRAMU जिस सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता था वह गांव से कम से कम 2 किलोमीटर की दूरी पर था.

‘‘क्या पता, तुम को तो मालूम ही है कि मेरा बापू ड्राइवर है. कंपनी का ट्रक ले कर दूरदूर के शहरों तक जाता है. कहीं से खरीद लाया होगा,’’ RAJU ने कहा.

RAJU की इस बात से RAMUको और ज्यादा हैरानी हुई थी. उस ने जानवरों की खरीदफरोख्त की बात तो सुनी थी मगर इनसानों को भी खरीदा या बेचा जा सकता है यह बात वह पहली बार RAJUके मुख से सुन रहा था.

‘कुदेसन’ शब्द एक सवाल बन कर RAMU के जेहन में लगातार चक्कर काटने लगा था. उस को इतना तो एहसास था कि ‘कुदेसन’ शब्द में कुछ बुरा और गलत था. किंतु वह बुरा और गलत क्या था? यह उस को नहीं पता था.

‘कुदेसन’ शब्द को ले कर घर में किसी से कोई सवाल करने की हिम्मत उस में नहीं थी. बाहर किस से पूछे यह RAMU की समझ में नहीं आ रहा था.असमंजस की उस स्थिति में अचानक हीRAMU के दिमाग में MURI चाचा का नाम कौंधा था.

MURI चाचा का असली नाम गुरबख्श था. अफीम के नशे का आदी (अमली) होने के कारण ही गुरबख्श का नाम MURI चाचा पड़ गया था. गांव के बच्चे तो बच्चे जवान और बड़ेबूढे़ तक गुरबख्श को MURI चाचा कह कर बुलाते थे. दूसरे शब्दों में, गुरबख्श सारे गांव का चाचा था.

गांव की चौपाल के पास ही MURI चाचा पीपल के नीचे जूतों को गांठने की दुकानदारी सजा कर बैठता था. वह अकेला था, क्योंकि उस की शादी नहीं हुई थी. एकएक कर के उस के अपने सारे मर गए थे. आगेपीछे कोई रोने वाला नहीं था MURI चाचा के. गांव के हर शख्स से MURI चाचा का मजाक चलता था.



बड़े तो बड़े, RAMU की उम्र के लड़कों के साथ भी उस का हंसीमजाक चलता था. आतेजाते लड़के MURI चाचा से छेड़खानी करते थे और वह इस का बुरा नहीं मानता था. हां, कभीकभी छेड़खानी करने वाले लड़कों को भद्दीभद्दी गालियां जरूर दे देता था.शरारती लड़के तो MURI चाचा की गालियां सुनने के लिए ही उस को छेड़ते थे.

RAMU ने जब से होश संभाला था उस का भी MURI चाचा से वास्ता पड़ता रहा था. जब भी उस के पांव की चप्पल कहीं से टूटती थी तो उस की मरम्मत MURI चाचा ही करता था. चप्पल की मरम्मत और पालिश कर के एकदम उस को नया जैसा बना देता था MURI चाचा.

काम करते हुए बातें करने की MURI चाचा की आदत थी. बातों की झोंक में कई बार बड़ी काम की बातें भी कह जाता था MURI चाचा.कुदेसन’ के बारे में MURIचाचा से वह पूछेगा, ऐसा मन बनाया था RAMU ने.

एक दिन जब स्कूल से वापस आ कर सब लड़के अपनेअपने घर की तरफ रुख कर गए तो RAMU घर जाने के बजाय चौपाल के करीब पीपल के नीचे जूतों की मरम्मत में जुटे MURI चाचा के पास पहुंच गया.

RAMU को देख MURI चाचा ने कहा, ‘‘क्यों रे, फिर टूट गई तेरी चप्पल? तेरी चप्पल में अब जान नहीं रही. अपने कंजूस बाप से कह अब नई ले दें.’’

‘‘मैं चप्पल बनवाने नहीं आया, चाचा.’’‘तब इस चाचा से और क्या काम पड़ गया, बोल?’’ MURI ने पूछा.

 चाचा के पास बैठ गया. फिर थोड़ी सी ऊहापोह के बाद उस ने पूछा, ‘‘एक बात बतलाओ चाचा, यह ‘कुदेसन’ क्या होती है?’’

नरेंद्र के सवाल पर जूता गांठ रहेMURI चाचा का हाथ अचानक रुक गया. चेहरे पर हैरानी का भाव लिए वह बोले, ‘‘ तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’

‘‘मैं ने RAJU के घर में एक औरत को देखा था चाचा, RAJU कहता है कि वह औरत ‘कुदेसन’ है जिस को उस का बापू बाहर से लाया है. बतलाओ न चाचा कौन होती है ‘कुदेसन’?’’

‘‘क्या करेगा जान कर? अभी तेरी उम्र नहीं है ऐसी बातों को जानने की. थोड़ा बड़ा होगा तो सब अपनेआप मालूम हो जाएगा. जा, घर जा.’’ RAMU को टालने की कोशिश करते हुए  चाचा ने कहा.



‘‘ ‘कुदेसन’ वह होती है बेटा, जिस को मर्द लोग बिना शादी के घर में ले आते हैं और उस को बीवी की तरह रखते हैं.’’‘मैं कुछ समझा नहीं चाचा.’’

‘‘थोड़े और बड़े हो जाओ बेटा तो सब समझ जाओगे. कुदेसनें तो इस गांव में आती ही रही हैं. आज RAJU का बाप ‘कुदेसन’ लाया है. एक दिन तेरा बाप भी तो ‘कुदेसन’ लाया था. पर उस ने यह सब तेरी मां की रजामंदी से किया था. तभी तो वह वर्षों बाद भी तेरे घर में टिकी हुई है. बातें तो बहुत सी हैं पर मेरी जबानी उन को सुनना शायद तुम को अच्छा नहीं लगेगा, बेहतर होगा तुम खुद ही उन को जानो,’’  चाचा ने कहा.लेकिन RAMU जिद पर अड़ गया.तब चाचा ने कहा,

चाचा की बातों से RAMU हक्काबक्का था. उस ने सोचा नहीं था कि उस का एक सवाल कई दूसरे सवालों को जन्म दे देगा.सवाल भी ऐसे जो उस की अपनी जिंदगी से जुडे़ थे. चाचा की बातों से यह भी लगता था कि वह बहुत कुछ उस से छिपा भी गया था.

अब RAMU की समझ में आने लगा था कि होश संभालने के बाद वह जिस खामोश औरत को अपने घर में देखता आ रहा है वह कौन है?वह भी ‘कुदेसन’ है, लेकिन सवाल तो कई थे.

यदि मेरा बापू कभी मां की रजामंदी से ‘कुदेसन’ लाया था तो आज मां उस से इतना बुरा सलूक क्यों करती है? अगर वह ‘कुदेसन’ है तो मुझ को देख कर रोती क्यों है? जरा सा मौका मिलते ही मुझ को अपने सीने से चिपका कर चूमनेचाटने क्यों लगती थी वह? मां की मौजूदगी में वह ऐसा क्यों नहीं करती थी? क्यों डरीडरी और सहमी सी रहती थी वह मां के वजूद से?फिर चाचा की इस बात का क्या मतलब था कि अपने घर की कुछ बातें खुद ही जानो तो बेहतर होगा?



ऐसी कौन सी बात थी जो  चाचा जानता तो था किंतु अपने मुंह से उस को नहीं बतलाना चाहता?एक सवाल को सुलझाने निकलाRAMU का किशोर मन कई सवालों में उलझ गया.उस को लगने लगा कि उस के अपने जीवन से जुड़ी हुई ऐसी बहुत सी बातें हैं जिन के बारे में वह कुछ नहीं जानता.

चाचा से नई जानकारियां मिलने के बाद RAMU ने मन में इतना जरूर ठान लिया कि वह एक बार मां से घर में रह रही ‘कुदेसन’ के बारे में जरूर पूछेगा.‘कुदेसन’ के कारण अब RAJU के घर में बवाल बढ़ गया था. RAJUकी मां ‘कुदेसन’ को घर से निकालना चाहती थी मगर उस का बाप इस के लिए तैयार नहीं था.

इस झगड़े में RAJU की मां के दबंग भाइयों के कूदने से बात और भी बिगड़ गई थी. किसी वक्त भी तलवारें खिंच सकती थीं. सारा गांव इस तमाशे को देख रहा था.वैसे भी यह गांव में इस तरह की कोई नई या पहली घटना नहीं थी.

जब सारे गांव में RAJU के घर आई ‘कुदेसन’ की चर्चा थी तोRAMU का घर इस चर्चा से अछूता कैसे रह सकता था?RAMU ने भी मां और SIMA बूआ को इस की चर्चा करते सुना था लेकिन काफी दबी और संतुलित जबान में.इस चर्चा को सुन कर RAMU को लगा था कि उस के मां से कु छ पूछने का वक्त आ गया है.

एक दिन जब RAMU स्कूल से वापस घर लौटा तो मां अपने कमरे में अकेली थीं. सिम बूआ किसी रिश्तेदार के यहां गई हुई थीं और बापू खेतों में था.RAMU ने अपना स्कूल का बस्ता एक तरफ रखा और मां से बोला, ‘‘एक बात बतला मां, गायभैंस बांधने वाली जगह के पास बनी कोठरी में जो औरत रहती है वह कौन है?’



RAMU के इस सवाल पर उस की मां बुरी तरह से चौंक गईं और पल भर में ही मां का चेहरा आशंकाओें के बादलों में घिरा नजर आने लगा.‘‘तू यह सब क्यों पूछ रहा है?’’ RAMU को बांह से पकड़ झंझोड़ते हुए मां ने पूछा.RAJU के घर में उस का बापू  एक कुदेसन ले आया है. लोग कहते हैं हमारे घर में रहने वाली यह औरत भी एक ‘कुदेसन’ है. क्या लोग ठीक कहते हैं, मां?’’

RAMU का यह सवाल पूछना था कि एकाएक आवेश में मां ने उस के गाल पर चांटा जड़ दिया और उस को अपने से परे धकेलती हुई बोलीं, ‘‘तेरे इन बेकार के सवालों का मेरे पास कोई जवाब नहीं है. वैसे भी तू स्कूल पढ़ने के लिए जाता है या लोगों से ऐसीवैसी बातें सुनने? तेरी ऐसी बातों में पड़ने की उम्र नहीं. इसलिए खबरदार, जो दोबारा इस तरह की  बातें कभी घर में कीं तो मैं तेरे बापू से तेरी शिकायत कर दूंगी.’’RAMU को अपने सवाल का जवाब तो नहीं मिला मगर अपने सवाल पर मां का इस प्रकार आपे से बाहर होना भी उस की समझ में नहीं आया.

ऐसा लगता था कि उस के सवाल से मां किसी कारण डर गईं और यह डर मां की आखों में उसे साफ नजर आता था.RAMU के मां से पूछे इस सवाल ने घर के शांत वातावरण में एक ज्वारभाटा ला दिया. मां और बापू के परस्पर व्यवहार में तलखी बढ़ गई थी और सिमरन बूआ तलख होते मां और बापू के रिश्ते में बीचबचाव की कोशिश करती थीं.

©Lucky 800kr Ramu ki kahani

#AloneInCity


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