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vineet

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vineet

ठण्ड बढ़ने लगी है
लगता है लोगों में जलन कम हो रही है




--- विनीत








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©vineet #vichar #kavita 

#Moon
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vineet

कल जहां बारिश थी 
आज कड़कती धूप है
कल सर्द हवा का पहरा होगा
ये उत्तराखंड है जनाब
यहां मौसम रंग बदला करते है
इन्सान नहीं


---विनीत

©vineet #Nature #Uttarakhand #hills #lovingpeople #Tehri_Garhwal 

#Nature
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vineet

असर यूं हुआ आशिक़ी मे आंसू बहा कर ।
अब पछता रहे आंखो पर चश्मा चढ़ा कर ।।










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©vineet #coldnights
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vineet

थोड़ा थक गया हूँ मैं,
      मगर हारा नहीं हूं मैं।
खामोश हूँ जरा ,
       बेचारा नहीं हूं मैं ।
चलूँगा राह ए कामयाबी ,
         क्योंकि नाकारा नहीं हूं मैं ।।

          ---विनीत रतूड़ी













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©vineet #vichar

#Lights
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vineet

सुंदरता की उपमा है जटाओं में
स्वर्ण से सुंदर रुद्राक्ष है भुजाओं में

अस्त्र शस्त्र धारण किये तीखे है
छवि आगे आपकी सौ कामदेव फीखे है 

विषधर को गले का हार बनाया है
दैत्यों को आपने मार भगाया है

नंदी बैल आपकी सवारी है
विष पिया, देव आपके आभारी है

पिनाक हाथों में सुशोभित अस्त्र है
जिसके आगे नतमस्तक सारे शस्त्र है

भोले इतने रावण क्षण में माफ किया
क्रोध में कामदेव  क्षण में राख किया

हे शम्भू ,हजारों समस्याओं के बीच भी मैं मुस्कुराता हूँ
मुस्कराहट का कारण कोई पूछे तो नाम आपका बताता हूँ 
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vineet

रे मानव गुस्ताखी ये तेरी कैसी पूरी है
हमसे दूर रहना उनकी हुई मजबूरी है
अधिकार इंसानी बेकार का किस्सा है
धरती पर सबका बराबर का हिस्सा है

                            
                        ---विनीत रतूड़ी
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vineet

*घर वापसी*

पहाड़ो में आई बौछार है
लौट आये फिर त्योहार है

वीरान हुए घरों में हलचल फिर हो रही 
जंग लगे तालों की उदासी अब खो रही 

खेतों में फिर हरियाली खिलने वाली है
पहाड़ों में फिर खुशियां लौटने वाली है

पलायन से जो गांव से मजबूरन हो गए पराये है
साफ हवा शुद्ध पानी के लिए गाँव लौट आये है 

लौट रहे वे अब जिनके घरों में लटके ताले है
हो चुके शहरी फिर अब पहाड़ी होने वाले है

वर्षों बाद मन्दिरों में दीये जलायेंगे
भगवान अब अपनी जगह आयेंगे

कई वर्षों बाद पहाड़ फिर मुस्कुरायेंगे 
नज़ारा देखने ये स्वयं देवता आएंगे
                                                            ---विनीत रतूड़ी
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vineet

बातें वही पुरानी है
कल बीती आज सुनानी है 

पुराना जमाना अच्छा था
पुराना था मगर सच्चा था

आज सुविधाएं अनेक है
पर इंसान कहाँ नेक है

कहने को आधुनिक हुआ मानव है
निज फायदे के लिए हुआ दानव है 

मेहनत जिसकी जमाना बढ़ाने में
थाली खाली रोटी नहीं उसके खाने में

भ्रष्टाचारियों ने लूटा वतन है
समझाने का किया जतन है

वो कहाँ समझने वाले है
दिखने के भोले भाले है

स्त्री का हो रहा अपमान है
कहाँ नर नारी समान है

निश्चल यहाँ सिर्फ बच्चा है
इससे तो पुराना जमाना अच्छा है
                                        ---विनीत रतूड़ी
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vineet

छोड़ लाज दुनिया की
कहने दे नकारों को

आएंगे राह में अनेकों मोड़
तू लगा निज सपने की दौड़

उड़ा रहे जो आज मज़ाक तेरा
क़ामयाबी बाद लगाएंगे फेरा

कर न परवाह बातों की
तू कर तैयारी राहों की

ये सारी बातें है पराई
क्यो इनसे आत्मा दुखाई

बातें वही बनाते है
स्वयं जो न कर पाते है

साम्य जो नहीं कर पाते है 
बेतुकी बात वही बनाते है

 छोड़ दुनिया की लाज
 कर तू अपना काज
                                          ---विनीत रतूड़ी
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vineet

किक माना सुधि की मरोड़
धरयां रह जान इक्खी करोड़ 
                         ---विनीत रतूड़ी #गढ़वाली 
#gargwali
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