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Lokesh Kumar

अनहद

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Lokesh Kumar

बहुत बेचैन हूँ छालों से दिल के
लहू आँखों में क्यूँ उतरा नहीं है
लोकेश सिंह

©Lokesh Kumar #shayri
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Lokesh Kumar

हुनर का तिरे हो गया हूँ मैं क़ाइल
तिरे  तीर सारे  निशाने  लगे  हैं
लोकेश सिंह

©Lokesh Kumar #shayri
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Lokesh Kumar

किसी  की  याद  से  जाते  हुए  ये  उम्र कटी
हर  रोज  खुद  को  लुटाते  हुए ये  उम्र कटी

किसी  ने  हाथ   छुड़ाया  था  अपने हाथों से
सभी   से   हाथ   छुड़ाते   हुए  ये  उम्र  कटी

करीब  आ  के  तुम्हारे  कही  न  खो  दूं तुम्हें
तुम्हारे  खत  से   निभाते  हुए   ये  उम्र  कटी

बदन की ताख पर वो रख गया था एक दिया
दिये  को  खूं  से   जलाते  हुए  ये  उम्र  कटी

उठा  के  रख  दिया  ज़िंदान  में  बदन अपना
किसी  से   मिटते  मिटाते  हुए  ये  उम्र  कटी

"तरब"  तुम्हें  कही  मैं  छोड़  कर  न जाऊँगा
तुम्ही  से   निभते  निभाते  हुए  ये  उम्र  कटी
लोकेश सिंह "तरब"

©Lokesh Kumar #ghazal
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Lokesh Kumar

तू  याद रख या भूल जा, अब इससे क्या मुझे
रौशन था जो  चराग़,  वो  मैंने  बुझा   दिया
लोकेश सिंह

©Lokesh Kumar #shayaari
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Lokesh Kumar

हर रोज बेच खुद को कमाने में रह गया
सांसो का मैं किराया चुकाने में रह गया

मुझसे बिछड़ गये मिरे अपने यहाँ बहुत 
ताउम्र  मैं  सभी  को भुलाने में रह गया

इक आग सी लगी रही सीने में और मैं
अपने  लहू से आग बुझाने में रह गया

कोई  नहीं  मिरा  यहाँ ये जानता था मैं
फिर क्या था जो सभी से निभाने में रह गया

कटती रही बदन से मिरे मिट्टी रात दिन 
मैं भी बदन की मिट्टी उठाने में रह गया

दौलत ये दर्द की मैं लुटा भी नहीं सका
जितना भी दर्द था वो ख़जाने में रह गया

इक धुंधली सी याद को वीरान मेरा दिल
आँखों की उँगलियों से सजाने में रह गया

तू क्यूँ थका थका सा "तरब" आज लग रहा
तू  क्यू  बदन से बाहर ज़माने में रह गया
लोकेश सिंह

©Lokesh Kumar #ghazal
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Lokesh Kumar

आपको बेबस न कर दे भीड़ इस दुन्या की
एक रिश्ता आप खुद से  भी बनाए रखिए
लोकेश सिंह

©Lokesh Kumar #shayri
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Lokesh Kumar

जान   लेकर  हथेली   पे    जाता  रहा
वक़्त  के  साथ  खुद  को भुलाता रहा

ज़िन्दगी  तेरी   कीमत  से अंजान  था
हर   घड़ी  का   किराया चुकाता  रहा

कुछ  खता भी न थी और रूठा था वो
मैं  उसी   शख़्स  को  क्यूँ मनाता रहा

मैं  बिखर  सा  गया टूट कर ज़ीस्त में
और  फिर  अपने  टुकड़े  उठाता रहा

उसकी  मर्ज़ी  थी  चाहे  न चाहे  मुझे
एक   रिश्ता   उसी  से  निभाता  रहा

दर्द   हीं   से   रहा  वास्ता  उम्र   भर
ये   अलग   बात  है  मुस्कुराता   रहा

जिसकी गलियां सजायी गुलों से वही
मेरे तलवों  में  क्या क्या चुभाता  रहा

कह रहें  हैं  दग़ाबाज तुझको "तरब"
जिसको  इल्जा़म  से  तू बचाता रहा
लोकेश सिंह

©Lokesh Kumar #ग़ज़ल
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Lokesh Kumar

मैं नहीं रोया था सताने पर
रो पड़ा हूँ गले लगाने पर
लोकेश सिंह

©Lokesh Kumar #alone


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