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alkanigam1164
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Alka Nigam

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Alka Nigam

Happy Holi कुछ सुना तुमने
ये जो फाल्गुन गुनगुना रहा है
मेरे भीतर।
छुप गए हो चुपके से मेरे गीतों की 
मुरकियों में तुम।
तुम्हारे बिन लगाए ही
मेरे अंतरे गुलाल से रंग गए हैं
और
मुखड़ा अबीर से बनी तस्वीर ।
गुलाल कब का पसर गया है
मेरे गालों पर
और अबीर के रंगीं तीर
तुम्हारी तरफ चल पड़े हैं।
तुम खिड़की खुली रखना.....
मेरी महकती साँसों से भरे गुब्बारे
हवाओं से तुम्हारा पता पूछ 
पहुँचते ही होंगे।
अब छोड़ो भी ये 
मसरूफ़ियत का बेरंग 
फ़ाग अलापना।
न जाने कितने लम्हें
मैंने आँचल में बांध रखे हैं 
कोरे से करारे से
सबसे छुपा के....
के रंगना चाहती हूँ
कुछ यूँ लम्हों को 
के लगे भूलने में
कई साल....

होली है😊😊😊

अलका निगम
लफ़्ज़ों की पोटली✍️✍️✍️
लखनऊ

©Alka Nigam #होली_के_रंग 

#holi2021
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Alka Nigam

लो फिर से दिन छोटे होने लगे हैं
मसरूफ़ियत के चलते,
घड़ी दो घड़ी सुकून के टोटे होने लगे हैं।
न जाने कितनी नज़्म
मुक़म्मल होने को पड़ी हैं,
के नुक़्ता लगाने को भी मिलती न एक घड़ी है।
हरफ़ रहें हैं सुनहली सी धूप में
न जाने कितने हर्फ़।
के बच रहे हैं वो भी सियाही में नहाने से।
काग़ज़ भी कुछ 
थरथराता सा लगता है
के जिल्द का लिहाफ़ ओढ़ आलस में पड़ा रहता हैं।
पर मैं भी.......
हौले से हँथेलियों में लफ्ज़ों को उठा के
चूम के हरारत कुछ उनमें भरती हूँ।
फिर धीरे से सियाही में तर उनको करती हूँ।
खिड़कियों से छन के आती 
सुनहली सी धूप में,
जिल्द की रजाई हटा काग़ज़ को खोलती हूँ
और.....
आहिस्ता से रंग देती हूँ उसे अपने जज़्बातों से,
के ठंड बढ़ न जाये कहीं।
लफ़्ज़ सो न जाये कहीं,छोटे होते दिनों में
लम्हें अलसा न जाएं कहीं.......।

अलका निगम
लफ़्ज़ों की पोटली✍️✍️✍️
लखनऊ

©Alka Nigam #सर्दीकामौसम #सर्दीकीवोधुंधलीसीशाम 

#WatchingSunset
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Alka Nigam

कोई लाख कहे
के फ़क़त इक मिट्टी की देह हो तुम।
पर कोई मुझसे पूछे के मेरी नज़रों में
कौन हो तुम।
न जाने कैसा जादू है वज़ूद में तुम्हारे
हर वक़्त तर रहता है गला हमारा
शर्बत-ए-हुस्न में तुम्हारे।
कभी ओस में भीगी 
सुनहरी सी गिन्नी सा लगता है 
चेहरा तुम्हारा।
कभी चाँदनी के 
ताने बाने से बुना
कोई ख़याल सी लगती हो तुम।
मोगरे को महकती डाल से फ़िसल
खिड़की के सहारे जो मेरे कमरे में पसर जाता है
वो महकता चाँद हो तुम।
तुम्हारे ख़याल को बोने पे
जो सुर्ख़ बदन खिले,
वो गुलाब हो तुम।
जिसको बनाने के ख़ातिर 
खुद रब ने भी मोहब्बत फ़रमाई होगी,
वो मुजस्समा-ए-इश्क़
लगती हो तुम।

अलका निगम
लफ्ज़ों की पोटली✍️✍️✍️
लखनऊ

©Alka Nigam #तुम_ही_तुम
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Alka Nigam

शूल सा चुभता है ये अकेलापन
फ़िर भी हसरतें पालता है ये बंजारा मन।
आना दो आना खुशी पाने के ख़ातिर
खर्च कर डालता है सैकड़ों ये रक़म।

अलका निगम
लफ्ज़ों की पोटली✍️✍️✍️
लखनऊ

©Alka Nigam #तनहाइयाँ #अकेलापन‬ #बंजारापन 

#alone
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Alka Nigam

अँगूर की बेटी

मैं अँगूर की बेटी हूँ
सड़ती हूँ,गलती हूँ
पैरों से मसली जाती हूँ 
भट्टियों में तपाई जाती हूँ
पोर पोर गल के,
क़तरा क़तरा रिस के,
आख़िरी बूंद तक,निचोड़ी जाती हूँ।
फ़िर बंद कर दी जाती हूँ
किसी बोतल या फ़िर किसी 
नक़्क़ाशीदार सुराही में।
मेरे इस मिट चुके वजूद से
अक़सर तुम शाम ढलते ही
अपनी हलक़ तो तर करते हो।
मेरे मिटने के बाद ही
तुम्हें सुरूर चढ़ता है
और तब.....
तुम्हारी ज़ुबाँ सच उगलती है
सिर्फ़ सच.........।
तब तुम्हारे आदम की खाल में
छिपा वहशियाना किरदार
सामने आता है
और तुम हव्वा के जाए
उसी पर हावी होने की 
कोशिश करते हो।
क्यों आख़िर......
यही बेटी की नियति होती है
चाहे आदम की हो या
अंगूर की.......।

अलका निगम
लफ्ज़ों की पोटली✍️✍️✍️
लखनऊ

©Alka Nigam #स्त्री #बेटियां #मदिरापान 

#freebird
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Alka Nigam

तेरी तिश्नगी तेरा सुरूर है
तेरी तिश्नगी तेरा सुरूर है

तेरी महकी महकी साँसों का
पैरहन मैं ओढ़ लूँ,
तेरे मख़मली एहसास के
कुछ ख़्वाब मैं भी मोल लूँ।
तेरी हैरानगी मेरी दीवानगी
ये शामो सहर की आवारगी।
तू ही बन्दगी तू ही फ़ितूर है।
तेरी तिश्नगी तेरा सुरूर है

उम्र की हर शाख़ पे
खिलें गुल हमारी चाह के,
इस ज़मी से उस फ़लक़ तक
मोगरे की बेल से।
ये रस्में और ये रिवायतें
गूँजे हरसूं इश्क़ की आयतें।
यही प्यार का दस्तूर है।
तेरी तिश्नगी तेरा सुरूर है।

तेरी साँसों के बिछौने पे
मैं करवटें तेरे साथ लूँ,
तेरी संदली सी महक से
रूह तर अपनी करूँ।
मुझे भा गई तेरी सादगी
करूँ रात दिन तेरी बन्दगी
तुझे इल्म तो ये ज़रूर है
तेरी तिश्नगी तेरा सुरूर है

तेरी तिश्नगी तेरा सुरूर है
तेरी तिश्नगी तेरा सुरूर है......।।।।

अलका निगम
लफ्ज़ों की पोटली✍️✍️✍️
लखनऊ

©Alka Nigam #तिश्ननगी  


#alone


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