सदाक़त जो मुसलसल बातों का ताईद होता,
तो यूं मेरा हर मक़्ता, तुझे बेवफ़ा न लिखता।
सदाक़त : सच्चाई
मुसलसल : निरंतर चलने वाली
ताईद : पुष्टि
मक़्ता : नज़्म/गज़ल का आखिरी शेर #Poetry
सदाक़त जो मुसलसल बातों का ताईद होता,
तो यूं मेरा हर मक़्ता, तुझे बेवफ़ा न लिखता।
सदाक़त : सच्चाई
मुसलसल : निरंतर चलने वाली
ताईद : पुष्टि
मक़्ता : नज़्म/गज़ल का आखिरी शेर #Poetry