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shubhamsundriyal6846
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Shubham Sundriyal

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Shubham Sundriyal

एक कल्पना बेबस बेटे की...😊

एक कल्पना बेबस बेटे की...😊 #poem

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Shubham Sundriyal

क्यों में अपने घर जाने से घबराने लगा 
घर सोचते ही पैरो को कतराने लगा 
क्या इसलिए कि मुझे चुनना पड़ेगा 
हाँ जो मुझे दुनिया मे लाई फिर मुझे उसकी खातिर आज सुन्ना पड़ेगा
अब मुझे कोई एक चुनना पड़ेगा,
वो कहती है माँ का प्यारा चमचा मुझे 
आज में पूछ लेता ही हूँ
की क्या उसने जिसने इतने नाजो से पाला 
भूख खुद थी रोटी का वो टुकड़ा मेरे मुंह मे डाला, 
क्या उसका मुझसे उम्मीद लगाना गलत था क्या
क्या उसका मुझ पे हक़ जताना गलत था क्या,
मानता हूं तेरा हक़ है मुझ पे तो क्या भूल जाऊं अस्तित्व अपना 
कैसे भूलू उस धरा को जिसने नन्हे पौधे को अपने ऊपर  उगाया था 
खुद सुख गयी बिन पानी के और मुझ को छाती से दूध पिलाया था
तू कहती है मत सुनो उसकी वो बुढ़ापे में बावलाई है
बस तूने ये कह के मुझे असली याद दिलाई है 
कैसे भूलू दुनिया की ठोकर खाकर जब में आया था 
सच मे जादूगर थी वो, शक्ल देख कर ही मुझे सीने से लगाया था
एक बात कहना तू भूल ही गयी अब में तुझे याद दिलाता हूं 
दुनिया भर की बाते बोली पर तु उसको झूठा कहना भूल गयी 
वो मेरी माँ थी 
सब दुख सह कर वो मुझ से कहना भूल गयी
                      सुंदरियाल जी मजबूर बेटा...😊

मजबूर बेटा...😊

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Shubham Sundriyal

उनका इंतजाम ऐ कयामत भी लाजवाब था
एक तरफ उनकी हंसी थी, एक तरफ मेरा तख्तोताज था
उनका वो यूं शर्मा के जाना और हमारा केवल उनके खातिर अपना वो ताज ठुकराना,
वो ठोकरे वो मेहनत व नाकाम सी कोशिशें
वो ताज मेरा मुझे चीख चीख के सुना रहा था
गर कमबख्त उस वक़्त भी मुझे उसी का चेहरा नजर आ रहा था.....
चेहरा उनका न चेहरा गर वाकई चेहरा था
स्वर्ग अप्सराएँ भी शर्माएं आंखों में तेज वो गहरा था
वो पुराने अधूरे ख्वाब, वो जिम्मेदारी हम सब खो चले थे ,
सच कहते है सच उस वक़्त वाकई हम उनके हो चले थे
अब वो घड़ी आई जीवन वो कड़ी आई, जीवनचक्री दोबारा दोहराई
और फिर मुझे अपनों की याद आई
बदला कुछ नही बस थोड़ा सा फर्क था 
चीख कर समझाने वाले तख्तोताज हम पर हँस रहे थे
और ताज की साख पर जो हमने लगाए थे नाग प्रपंच वो हमें ही डस रहे थे...

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Shubham Sundriyal

आंखों में एक बड़ा सा ख्वाब था हाँ वो बचपन मेरा भी बेमिशाल था
जब कोई ख्वाब पूछता तो हम धपक से खड़े होकर अपने बेतुके से ख्वाब कह देते थे, हाँ वो बचपन ही था
वो बचपन ही था जहां सब का स्कूल में खाना लेकर आना और किसी का टिफ़िन किसी ने खाना हाँ वो बचपन ही था, 
जब हम इंतजार करते थे कब स्कूल की जिंदगी से बाहर आये और वापस अपनी शक्तिमान, सोनपरी वाली जिंदगी में खो जाए, हाँ वो बचपन ही था
वो बचपन ही था जब हम खुद के अंदर झाँका करते थे खुद को भी अपने शक्तिमान के कहीं करीब सा ही आंका करते थे
वो बचपन ही था जब गली के सारे दोस्त हमारे भाई कहे जाते थे, और उन्ही से लड़ कर हम फिर उन्ही में मिल जाते थे
हाँ वो बचपन ही था जब अपने उसी फेंकू दोस्त गोलू की बातों पर हम यकीन माना करते थे उस वक़्त आसमान से ऊपर उठ कर हम जमीन को झांका करते थे
उम्मीद इतनी की दुनिया को अपने नाम से भर जाए जिससे खुश हो सारा जहां कुछ ऐसा काम हम कर जाएं
हाँ पर वो सिर्फ बचपन ही था...😢

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Shubham Sundriyal

हाँ अब पलायन रोकने की बात में करने लगा हूँ
खुद शहरों में रह कर, कुछ मीडिया, कुछ अखबारों के जरिये में भी सुर्खियों में छपने लगा हूँ
हाँ अब शहरों में रह कर में भी पलायन रोकने की बाते करने लगा हूँ
वो, हाँ वो ही जो मिट्टी के घर थे मेरे जाने के डर से वो भी थोड़ा सा बेबस थे
वो घर आज मेरी खातिर तरसने लगे हैं, सुना है अब मेरे उन घरों में बाहर के लोग आकर बसने लगे हैं
सोच कर के तो में आया था कि अपने माँ बाप अपने पुर्खों का ये पहाड़ ये लौ क्लास मेंटेलिटी छोड़ कर कहीं दूर शहर में जाऊंगा 
और वहां अपनी दुनिया अलग बसाउंगा
मगर अफ़सोस के इस शहर का भी में हो न सका 
अपने रीत रिवाज में होने वाली खुशी को में इन शहरियों से में कह न सका,
जो हमारे पाप थे हमारे श्राप थे वो केवल ककड़ी, मुंगरी की चोरी तक सीमित रह जाते थे
और कहीं सच मे पाप हो न जाये इसलिए उस रात चोरी की ककड़ी का एक टुकड़ा उनके द्वारे भी रख आते थे
अफसोस के जो ये हमारी सच्चाई थी ये केवल और केवल एक कहानी सी हो चले हैं
वो हरे भरे से मेरे गाँव खाली हो चले है
                                                         सुंदरियाल जी

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Shubham Sundriyal

मेरे अंदर का बच्चा कहता है  दो कदम क्या पीछे हुआ तो मुझको तू कायर ना समझ
जो लिखने लगें हैं मोहब्बत तो तू बेतुका सा शायर ना समझ, 
हम ने थोड़ा आँखे क्या मुंदी की तुम हमें रोशनी सीखा रहे हो,
साथ चलकर हमारे आज, हमे चलना सीखा रहे हो
तू तकदीर से चला, मेरी मेहनत साथ थी 
तू चला रास्तों पर, हम खुद राह बनाई है
तू कहता रहा चीख कर की मेने समुन्दर में नाव चलाई है 
कभी कागज की कस्तियों पर तूने देखा नही है उम्मीदों को तैरते हुए..
                                                          सुंदरियाल जी
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Shubham Sundriyal

हम ने रात अपनी कलम उठाई
और उनको फिर से वो एक अधूरा से काम लिखा है
फिर से उस खत पर हमने अपना नाम लिखा है
खत, खत न रहे हम से खता हो गई
की चंद मुश्किलों के बाद अपने प्यार का पैगाम लिखा है
और वो जवाब कुछ इस कदर आया, निभाया कुछ लम्हा हमारे साथ भी और कह कर चले गए कि उस खत पर तो किसी और का नाम लिखा है..
                           सुंदरियाल जी

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Shubham Sundriyal

ये जो मेरा तुझ से 'बेइन्तहां' प्यार करना है ना
इसे मेरी कमजोरी समझ बैठी है दुनिया, 
  यूं जो तो में कभी फौलदौ   से टकराने को जाता हूँ
वो बस तस्वीर तेरी निकाल लाते हैं और में हार जाता हूँ
                                          सुंदरियाल जी

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Shubham Sundriyal

ये खुला ऊंचा आसमां, देख कर मेरी उड़ान की जो दूरियां पूछते हो 
कभी उड़ कर देखना पैरो में जंजीरे बांध कर ,
यूं जो तुफानो से डर कर मेरे घर का पता पूछते हो
जरा उन तुफानो से पूछना तुमने कभी वो उचाइयां छुई है क्या....
                                            सुंदरियाल जी
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Shubham Sundriyal

हार कर भी तेरा मुझ से, जीत जाना अच्छा है
जीत कर भी मेरा, तुझ से हार जाना अच्छा है
गर होता पता तो करते 'बेशक' खुद को इतल्लाह 
मुझ से बेहतर तो ये तेरा खिलौना ही अच्छा है
सुंदरियाल जी
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