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rajeshkumar4408
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RajeshKumar

Teacher

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RajeshKumar

White उनके शिकायतों का सिलसिला मुझसे इस कदर हुआ,
गुनाह न करके भी मैं खुद ही को गुनहगार समझ बैठा!!
Rajesh kumar

©RajeshKumar
  #love_shayari
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RajeshKumar

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RajeshKumar

White ये कविता समर्पित मेरे परिवार के उन सभी लोगों को जिन्होंने मेरे बचपन को तराशा और इस काविल बनाया की कुछ लिख ,पढ़ रहा हूँ।

  ### मेरा बचपन ###

👍👍👍👍👍👍👍👍
👌👌👌👌👌👌👌👌

हाय   रे  मेरा   बचपन  तू  फिर  से  आ  जा।
खोया  मैंने  सब  कुछ  है  उसे  तू  लौटा जा।।
खोया  मैने  माँ  की  प्यार ,दुलार  पिता  का।
साथ  में  खेलना  और  झगड़ना  दोस्तों  का।।
कहाँ  गए  ओ  मेरे  बचपन  का  खेला  खेल।
रस्सियों  के  बीच  हम   सब  चलाते  थे  रेल।।
मुंह  से छुक - छुक करना और सिटी  बजाना।
माँ  के हांथों  से बने कौर  को चट कर  जाना।।
बाबा  की  याद  हमें  जब - जब आ  जाती है।
उनकी एक - एक बोल कानों में गूंज जाती है।।
कुछ  पाने  के  चक्कर  में सब कुछ छूट गया।
माँ  का  प्यार  पिता का स्नेह मैं भूल सा गया।।
भूल गया मैं पल-पल हँसना व् पल-पल रोना।
माँ   तेरी  याद में सिसक रहा है कोना-कोना।।
 भर  गया  है  मन  में बहुत कटुता की भवना,
आकर बचपन का ओ निश्छल भाव जगा जा।
हाय  रे  मेरा  बचपन  तू   फिर   से  आ   जा।।
👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
दिन  भर हम उलझे  रहते  सीसे की गोली में।
खेलते  थे  लड़का-लड़की  की  हमजोली  में।।
नहीं था मन में कोई कटुता नहीं था कोई मनभेद।
झूँठ बोलना हमें आता न था बोलते थे सच सफेद।।
जैसे ही होता था शाम, हमरा बढ जाता था काम।
लालटेन जलाना, पढ़ना  हर  रोज  का था  काम।।
मेरे  दादा  जी  का  रोज - रोज   का  कहना  था।
हम  दोनों  भाइयों  को  भोर  में  जग  जाना  था।।
जला   दीपक  कुछ  न  कुछ  पढ़ाई  करना  था।
अंग्रेजी   मीनिंग,  पहाड़ा  और सवैया रटना था।।
लेकिन   हम   पढ़ते - पढ़ते  पुंन:   सो  जाते थे।
दादा   जी   आकर   हमें   पुनः   जगा   देते  थे।।
दादा   जी   की   आत्मा   जहाँ  कहीं  हो  अब,
आकर   हम   दोनों   को  वहीं  स्नेह  जता  जा।
हाय   रे   मेरा  बचपन   तू   फिर   से  आजा।।
👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
सूंदर - सूंदर  लिखना  मैं माताजी से सीखा था।
कण्डे  की  कलम  पिता  जी  ने  पकड़ाया  था।।
अपना  हिंदी  की  कॉपी  माँ  से  लिखवाता था।
वही कॉपी अपने  मास्टर जी को दिखलाता था।।
उसके बाद मेरे छोटे चाचू स्नातक कर के आये।
अपना  तन  मन  धन  लगाकर खूब  हमें पढ़ाये।।
हमदोनों  को  घर  के  लोंगो  ने  बहुत  सँवारे थे।
पढ़ाते समय चाचा ने  कुम्भार  के भांति मारे थे।।
हमारा रोना-धोना सुनकर माँ बहुत ही अकुलाई थी।
याद है मुझे मेरे चाचा को उसने कहा भी कसाई थी।।
इस पर पिता जी ने माँ को बहुत हीं समझाया था।
इसी में थी मेरी  भलाई  पिता जी ने बतलाया था।।
चाचा जी  को  हम  दोनों  पर  था इतना विश्वास,
बोले थे तू  लोग  अब घर  छोड़ पटना पढ़े जा जा।
हाय   रे    मेरा   बचपन    तू   फिर   से  आ   जा।।
👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌👌
                  #  रचनाकार #
                     राजेश कुमार
             Mob-9801974027

©RajeshKumar
  #Couple

Couple

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RajeshKumar

दुनिया की दस्तूर यहीं कि शोषक के माथे पर ताज है।
शिक्षा के अभाव के कारण शोषित आज भी बेताज हैं।।
RK

©RajeshKumar
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RajeshKumar

जब शमी की सुनामी चली,चला कोहली-रोहित का तूफान!
तिनके के भांति ढह गया,न्यूजीलैंड का विश्व कप का अरमान!!
सेमीफाइनल इस मुकाबले में टीम ने बनाये नये-नये कीर्तिमान,
टीम के इस विराट प्रदर्शन से,नाच उठा सारा का सारा हिंदुस्तान!!
Tr RAJESH KUMAR

©RajeshKumar
  #kingkohli
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RajeshKumar

जब शमी की सुनामी चली,चला कोहली-रोहित का तूफान!
तिनके के भांति ढह गया,न्यूजीलैंड का विश्व कप का अरमान!!
सेमीफाइनल इस मुकाबले में टीम ने बनाये नये-नये कीर्तिमान,
टीम के इस विराट प्रदर्शन से,नाच उठा सारा का सारा हिंदुस्तान!!
Tr RAJESH KUMAR

©RajeshKumar
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RajeshKumar

हम रहें या न रहें,ये दौर भी एक दिन गुजर जाएगा!
परिवर्तन शाश्वत है,इनके जगह भी कोई और आयेगा!!
RK

©RajeshKumar
  #Children'sDay
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RajeshKumar

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RajeshKumar

## दीपक तले अंधेरा##
दीपक सभी ने जलाये मगर हम मन के अँधेरे को मिटा न सके!
अपनों को सभी लगाते हैं गले,परायों को हम गले लगा न सके!!
पलकें बिछाये आँचल फैलाये इंतजार करते रहे रात भर उठाकर मस्तक।
घर को सजाये ,रंगोली बनाये मगर हुई नहीं किसी की दरवाजे पर दस्तक।।
Tr Rajesh kumar
13-11-2023

©RajeshKumar
  #ShubhDeepawali

ShubhDeepawali

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RajeshKumar

दिपावली की हार्दिक बधाई!

तुम्हारी साया में हीं है मेरी परछाई ! 
चली गयी थी तो,फिर क्यों है आई !
तुम आयी भी तो क्या आयी?
जब उठ गया इस जहां से मेरा काया,
तेरी इस काया का मैं क्या करूँ?
जब शेष रहा न मेरी परछाई!!
तेरी उलझन भरी निगाहों ने दूरी ऐसी बढ़ाई!
मेरे स्वप्नशील निगाहों से दूर हुई तेरी परछाई!!
सोच था,दर्द तुमने दिया था, दवा भी तूम दोगी!
जाने कब,किस अनजाने राहों में मिलन तुमसे होग!!,
विरह-बेदना मैं सह न सका,जब कदम तुम्हारे उल्टे!
मेरे प्राण-पखेरू उड़ गये, मगर कदम तुम्हारे न पलटे!!
इतने दिनों बाद क्यों?तुम्हें मुझ पर दया आयी!
तेरी इस काया का मैं अब क्या करूँ?
जब शेष रहा न मेरी परछाई!!
दीपावली की हार्दिक बधाई!!
Tr Rajesh Kumar

©RajeshKumar
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