ग़ज़ल :-
दुनिया देखी है पैदल चलकर मैंने ।
कुछ-कुछ सीखा है जीवन पढ़कर मैंने ।।
असली सुख मिलता है बीबी बच्चों में
रहकर देखा है अक्सर घर पर मैंने ।।
हँसते गाते बीते जीवन इस खातिर
पूजे हैं राहों के भी कंकर मैंने ।। #शायरी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन
काशी के हैं घाट निराले ।
भक्त सभी है डेरा डाले ।।
माँ गंगा की करें आरती ।
होती खुश हैं मातु भारती ।।
भोले बाबा की यह नगरी ।
गलियां मिलती टेढ़ी सकरी ।। #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
*जी भर कर अब देख लो , शीतल निर्मल नीर ।*
*आने वाली पीढ़ियां , झेलेंगी यह पीर ।।*
*महेन्द्र सिंह प्रखर* #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
रोला छन्द :- भीषण गर्मी :-
कहती है सरकार , आज है भीषण गर्मी ।
पर भाषण में आज , नही है कोई नर्मी ।।
हो विद्यालय बंद , हुए हैं बच्चे मूर्छित । #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :-
मृत्यु निकट आ ही गई , होते क्यों भयभीत ।
साथी कोई भी नही , बने वहाँ मनमीत ।।
सूर्यदेव के ताप से , काँप रहे हो आज । #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
छुप-छुप कर रोता रहता था ,बाते थोडी कम करता था ।
हो जाती जब साँसे भारी,तो मुस्काया हम करता था ।
लेकिन नाम लवों पे उसका , कभी न देखो मैं लेता था-
लेकिन ढ़लती रातों में मैं , आँखें अपनी नम करता था ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :-
हाथ आते नही निवाले हैं ।
दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१
आज बाज़ार हो गये मँहगें ।
रूल सरकार के निराले हैं ।।२
किसलिए आप खोजते इंसा ।
भेड़िये आप हमने पाले हैं ।।३
आप जिनपे किए यकीं बैठे । #शायरी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
#motherlove
गीत :-
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी , जीवन की है जिज्ञासा ।
त्याग तपस्या और बलिदान , देख लिया माँ की भाषा ।।
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी ....
इस जीवन का मोल अदा हो , मातु-पिता की कर सेवा ।
इस सेवा से ही पहले तो , हमने चखा बहुत मेवा ।। #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :-
अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ ।
आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।।
अपने-पन से हरा-भरा था ...
आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को ।
लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।।
सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ । #कविता
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गर्मी :- कुण्डलिया
नोटो की गर्मी दिखी , इंसानों में आज ।
पतन हो गया प्रेम का , निष्ठुर हुआ समाज ।।
निष्ठुर हुआ समाज , नही मानव पहचाने ।
इस युग का सब आज , इसे दानव ही जाने ।।
फिर भी अर्पण पुष्प , करें सबं उनकी फोटो ।
जिनके घर में ढेर , लगे है देखो नोटों ।।
#कविता