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mahendrasinghpra8571
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White ग़ज़ल :-

दुनिया देखी है पैदल चलकर मैंने ।
कुछ-कुछ सीखा है जीवन पढ़कर मैंने ।।
असली सुख मिलता है बीबी बच्चों में
रहकर देखा है अक्सर घर पर मैंने ।।
हँसते गाते बीते जीवन इस खातिर 
पूजे हैं राहों  के भी कंकर मैंने ।।
यह सच्ची निष्ठा है  एक सनातन की ।
 कण-कण को भी माना है शंकर मैंने ।।
पत्थर से अरदास लगाऊँ क्या अब मैं ।
देख लिये इंसान यहाँ पत्थर मैंने ।।
लाशों के अम्बार लगे दोनों जानिब 
हँसते देखे उन पर  कुछ जोकर मैंने ।।
शीश झुका कर  आता है मेरे आगे ।
उसको बनाया है अपना नौकर मैंने ।
अपना वादा काश निभाने आते प्रखर 
कितना  रस्ता देखा है मुड़कर मैने ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

दुनिया देखी है पैदल चलकर मैंने ।
कुछ-कुछ सीखा है जीवन पढ़कर मैंने ।।
असली सुख मिलता है बीबी बच्चों में
रहकर देखा है अक्सर घर पर मैंने ।।
हँसते गाते बीते जीवन इस खातिर 
पूजे हैं राहों  के भी कंकर मैंने ।।

ग़ज़ल :- दुनिया देखी है पैदल चलकर मैंने । कुछ-कुछ सीखा है जीवन पढ़कर मैंने ।। असली सुख मिलता है बीबी बच्चों में रहकर देखा है अक्सर घर पर मैंने ।। हँसते गाते बीते जीवन इस खातिर  पूजे हैं राहों  के भी कंकर मैंने ।। #शायरी

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन

काशी के हैं घाट निराले । 
भक्त सभी है डेरा डाले ।।
माँ गंगा की करें आरती । 
होती खुश हैं मातु भारती ।।
भोले बाबा की यह नगरी ।
गलियां मिलती टेढ़ी सकरी ।।
बम-बम बम-बम होती काशी । 
हरते दुख सबके अविनाशी ।।
यह तन है मिट्टी की काया । 
इसकी बस कुछ दिन की छाया ।।
आज मान लो मेरी बातें । 
होगी जगमग तेरी रातें ।।
माँ गंगा में ध्यान लगाओ । 
भव से सभी पार हो जाओ ।।
यह तन माया की है गठरी । 
हाथ न आये बिल्कुल ठठरी ।।
पाप सभी गंगा धुल आये । 
फिर भी मन में पाप छुपाये ।।
पाप नाशिनी होती गंगा । 
मारा डुबकी मन है चंगा ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन

काशी के हैं घाट निराले । 
भक्त सभी है डेरा डाले ।।
माँ गंगा की करें आरती । 
होती खुश हैं मातु भारती ।।
भोले बाबा की यह नगरी ।
गलियां मिलती टेढ़ी सकरी ।।

चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन काशी के हैं घाट निराले ।  भक्त सभी है डेरा डाले ।। माँ गंगा की करें आरती ।  होती खुश हैं मातु भारती ।। भोले बाबा की यह नगरी । गलियां मिलती टेढ़ी सकरी ।। #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

जी भर कर अब देख लो , शीतल निर्मल नीर ।
आने वाली पीढ़ियां ,  झेलेंगी यह पीर ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR *जी भर कर अब देख लो , शीतल निर्मल नीर ।*
*आने वाली पीढ़ियां ,  झेलेंगी यह पीर ।।*

*महेन्द्र सिंह प्रखर*

*जी भर कर अब देख लो , शीतल निर्मल नीर ।* *आने वाली पीढ़ियां , झेलेंगी यह पीर ।।* *महेन्द्र सिंह प्रखर* #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

रोला छन्द :- भीषण गर्मी :-

कहती है सरकार , आज है भीषण गर्मी ।
पर भाषण में आज , नही है कोई नर्मी ।।

हो विद्यालय बंद , हुए हैं बच्चे मूर्छित ।
खबर यही हो फ्रंट , सभी के मन हो हर्षित ।।

हम भी हैं इंसान , करें हम सब मजदूरी ।
लू की लगे लपेट , मगर हम पर मजबूरी ।।

सोचो कुछ सरकार , मिला हमको भी जीवन ।
भीषण गर्मी आज , झुलस्ता अपना तन-मन ।।

आज नही कुछ हाथ , बनाओ आप प्रयोजन ।
किया सभी ने घात , दिखाकर हमें प्रलोभन ।।

रोको आज विकास , जिसे सुख सुविधा कहते ।
करो प्रकृति शृंगार, जहाँ जन-मन हैं रहते ।।

कुछ तो हो सरकार , अमल अब इन बातों पे।
आये सुख की भोर,  मेघ गायें रातों पे ।।

बदले जीवन चाल , झूम जाये जग सारा ।
चाहोगे जब आप , तभी चमकेगा तारा ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR रोला छन्द :- भीषण गर्मी :-


कहती है सरकार , आज है भीषण गर्मी ।

पर भाषण में आज , नही है कोई नर्मी ।।

हो विद्यालय बंद , हुए हैं बच्चे मूर्छित ।

रोला छन्द :- भीषण गर्मी :- कहती है सरकार , आज है भीषण गर्मी । पर भाषण में आज , नही है कोई नर्मी ।। हो विद्यालय बंद , हुए हैं बच्चे मूर्छित । #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White दोहा :-

मृत्यु निकट आ ही गई , होते क्यों भयभीत ।
साथी कोई भी नही , बने वहाँ मनमीत ।।

सूर्यदेव के ताप से , काँप रहे हो आज ।
भाग रहे शीतल जगह , छोड़ आज सब काज ।।

वादा करते आपसे , अभी न छोड़ूँ हाथ ।
जीवन भर बस प्यार से , रखना हमको साथ ।।

जीवन साथी संग में , उठा रहे आनंद ।
दुआ यही करता प्रखर , कभी न हो ये मंद ।।

वर्षगाँठ शुभकामना , करें आप स्वीकार ।
जीवन भर मिलता रहे , साथी से यूँ प्यार ।।

आगे जीवन में यही , करे खड़ी दीवार ।
बात-बात पर तुम कहीं , अगर करो तकरार ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 

दोहा :-

मृत्यु निकट आ ही गई , होते क्यों भयभीत ।
साथी कोई भी नही , बने वहाँ मनमीत ।।

सूर्यदेव के ताप से , काँप रहे हो आज ।

दोहा :- मृत्यु निकट आ ही गई , होते क्यों भयभीत । साथी कोई भी नही , बने वहाँ मनमीत ।। सूर्यदेव के ताप से , काँप रहे हो आज । #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

Love छुप-छुप कर रोता रहता था ,बाते थोडी कम करता था ।
हो जाती  जब साँसे भारी,तो मुस्काया हम करता था ।
लेकिन नाम लवों पे उसका , कभी न देखो मैं लेता था-
लेकिन ढ़लती रातों में मैं , आँखें अपनी नम करता था ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR छुप-छुप कर रोता रहता था ,बाते थोडी कम करता था ।
हो जाती  जब साँसे भारी,तो मुस्काया हम करता था ।
लेकिन नाम लवों पे उसका , कभी न देखो मैं लेता था-
लेकिन ढ़लती रातों में मैं , आँखें अपनी नम करता था ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

छुप-छुप कर रोता रहता था ,बाते थोडी कम करता था । हो जाती जब साँसे भारी,तो मुस्काया हम करता था । लेकिन नाम लवों पे उसका , कभी न देखो मैं लेता था- लेकिन ढ़लती रातों में मैं , आँखें अपनी नम करता था ।। महेन्द्र सिंह प्रखर #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

White ग़ज़ल :-
हाथ आते नही निवाले हैं ।
दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१
आज बाज़ार हो गये मँहगें ।
रूल सरकार के निराले हैं ।।२
किसलिए आप खोजते इंसा ।
भेड़िये आप हमने पाले हैं ।।३
आप जिनपे किए यकीं बैठे ।
लोग दिल के वो कितने काले हैं ।।४
सच के होते नही नुमाये भी।
इस लिए सब लगाये ताले हैं ।।५
खामियां पा दहेज में अब वह ।
पगडिय़ां देख लो उछाले हैं ।।६
राम के नाम से यहाँ सब ही ।
पा रहे आज सब  उजाले हैं ।।७
राम का नाम ही भजो सारे ।
क्या हुआ जो जुबाँ पे छाले हैं ।।८
चोट खाकर प्रखर वफ़ा में भी ।
दिल को अपने अभी सँभाले हैं ।।९
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-
हाथ आते नही निवाले हैं ।
दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१
आज बाज़ार हो गये मँहगें ।
रूल सरकार के निराले हैं ।।२
किसलिए आप खोजते इंसा ।
भेड़िये आप हमने पाले हैं ।।३
आप जिनपे किए यकीं बैठे ।

ग़ज़ल :- हाथ आते नही निवाले हैं । दाने-दाने के अब तो लाले हैं ।।१ आज बाज़ार हो गये मँहगें । रूल सरकार के निराले हैं ।।२ किसलिए आप खोजते इंसा । भेड़िये आप हमने पाले हैं ।।३ आप जिनपे किए यकीं बैठे । #शायरी

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी , जीवन की है जिज्ञासा ।
त्याग तपस्या और बलिदान , देख लिया माँ की भाषा ।।
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी ....
इस जीवन का मोल अदा हो , मातु-पिता की कर सेवा ।
इस सेवा से ही पहले तो , हमने चखा बहुत मेवा ।।
बिन कर्म किए फल मिले हमें , नहीं किया था अभिलाषा  ।
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी ....
तुम ही जननी तुम जगदम्बा , मुझको कर दो अब श्रीधर ।
पड़ा रहूँ मैं शरण तुम्हारी , मातु हमें अब दे दो वर ।।
मैं भी सेवा करूँ तुम्हारी , उठती मन में अभिलाषा ।
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी ...।
तुम ही साथी तुम ही देवी , तुमसे आज छुपाऊँ क्या ।
शीतल पावन दूध तुम्हारा, पीकर मैं इठलाऊँ क्या ।।
जो बनकर लहू दौड़ता है , क्या दूँ उसकी परिभाषा ।
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी .....
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी , जीवन की है जिज्ञासा ।
त्याग तपस्या और बलिदान , देख लिया माँ की भाषा ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR #motherlove 

गीत :-
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी , जीवन की है जिज्ञासा ।
त्याग तपस्या और बलिदान , देख लिया माँ की भाषा ।।
रहूँ सदा मैं माँ की गोदी ....
इस जीवन का मोल अदा हो , मातु-पिता की कर सेवा ।
इस सेवा से ही पहले तो , हमने चखा बहुत मेवा ।।

#motherlove गीत :- रहूँ सदा मैं माँ की गोदी , जीवन की है जिज्ञासा । त्याग तपस्या और बलिदान , देख लिया माँ की भाषा ।। रहूँ सदा मैं माँ की गोदी .... इस जीवन का मोल अदा हो , मातु-पिता की कर सेवा । इस सेवा से ही पहले तो , हमने चखा बहुत मेवा ।। #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गीत :-

अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ ।
आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।।
अपने-पन से हरा-भरा था ...
आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को ।
लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।।
सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ ।
अपने-पन से हरा-भरा था...
कल तक मेरी डाली में सुंदर वह फल फूल लगे ।
चिड़िया मेरी डाली को कहती सुंदर भवन लगे ।।
इतना कुछ देखा जीवन में कैसे उसे भुलाऊँ ।
अपने-पन से हरा-भरा था .....
बच्चों के प्यारे पत्थर करते मुझमें घाव बड़े ।
पर मुझको तो फल देना जो थे मेरी छाँव खड़े ।।
उनके कोमन मन को मैं अब कैसे भला दुखाऊँ ।
अपने-पन से हरा-भरा था ....

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :-

अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ ।
आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।।
अपने-पन से हरा-भरा था ...
आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को ।
लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।।
सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ ।

गीत :- अपने-पन से हरा-भरा था कैसे तुम्हें बताऊँ । आज चाँद के पास पहुँचकर क्या-क्या तुम्हें दिखाऊँ ।। अपने-पन से हरा-भरा था ... आ जाते है कुछ पक्षी अपनी साँझ बिताने को । लेकिन पीछे पड़ा शिकारी उनको मार गिराने को ।। सामर्थ्य नही है अब मुझमे कैसे उन्हें छुपाऊँ । #कविता

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

गर्मी  :- कुण्डलिया 
नोटो की गर्मी दिखी , इंसानों में आज ।
पतन हो गया प्रेम का , निष्ठुर हुआ समाज ।।
निष्ठुर हुआ समाज , नही मानव पहचाने ।
इस युग का सब आज , इसे दानव ही जाने ।।
फिर भी अर्पण पुष्प , करें सबं उनकी फोटो ।
जिनके घर में ढेर , लगे है देखो नोटों ।।

गर्मी दिन-दिन बढ़ रही , रहे सभी अब झेल ।
जीव-जन्तु बेहाल , प्रकृति रही है खेल ।।
प्रकृति रही है खेल  , सभी से अब के बी सी ।
कूलर पंखा फेल , लगाओ घर-घर ऐ सी ।।
कितने दिन हो पार , नही बातों में नर्मी ।
किया दुष्ट व्यवहार , बढ़ेगी निशिदिन गर्मी ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गर्मी  :- कुण्डलिया 
नोटो की गर्मी दिखी , इंसानों में आज ।
पतन हो गया प्रेम का , निष्ठुर हुआ समाज ।।
निष्ठुर हुआ समाज , नही मानव पहचाने ।
इस युग का सब आज , इसे दानव ही जाने ।।
फिर भी अर्पण पुष्प , करें सबं उनकी फोटो ।
जिनके घर में ढेर , लगे है देखो नोटों ।।

गर्मी  :- कुण्डलिया  नोटो की गर्मी दिखी , इंसानों में आज । पतन हो गया प्रेम का , निष्ठुर हुआ समाज ।। निष्ठुर हुआ समाज , नही मानव पहचाने । इस युग का सब आज , इसे दानव ही जाने ।। फिर भी अर्पण पुष्प , करें सबं उनकी फोटो । जिनके घर में ढेर , लगे है देखो नोटों ।। #कविता

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