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deepanshisrivast8451
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Deepanshi Srivastava

Instagram Id - Deepanshi2906

https://youtu.be/j9dtkEg_Yzw

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Deepanshi Srivastava

White  ऐ इश्क़ तेरे हर पैग़ाम ने केवल दिल जलाया....
बे-यकीनी बे-कद्र का मतलब सिखाया....
सुर्ख पत्ते सी जो हालत आज़ बनाई तूने ,
फ़िर तिरा नाम न आए ये हसीं सितम भी ढाया...

अब क्या ज़ाहिर करूं मैं इश्क़ ए रवानी फिज़ा को ,
बस ज़हर घोल के सांसों में सिसकती आह पाया...
लाज़िम था ये अंजाम भी वस्ल की चाह में मुर्शद ,
वो इश्क़ इश्क़ ही क्या जिसने न रात दिन सताया...

©Deepanshi Srivastava 
  #Emotional
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Deepanshi Srivastava

White नफ़्सियाती जिस्मानी तबीयत की तोहमत बताकर,
वो रूखसती कर गए मुझे गुनाहों का सर ताज़ लगाकर...

मुझे बेदर्दी से ख़्वाब मारने वाला कातिल बताकर ,
वो जीत गए ये जंग भी बिन हांथ लगाके...

जायज़ हक़ से साथ थी जकात की क़ीमत पर नहीं ,
पर वो ज़ाहिर कर गए इश्क़ की औकात हर दफा सताकर...

©Deepanshi Srivastava #इश्क #इश्क_में_हारी
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Deepanshi Srivastava

White ऐ इश्क़ तेरे हर पैग़ाम ने केवल दिल जलाया....
बे-यकीनी बे-कद्र का मतलब सिखाया....
सुर्ख पत्ते सी जो हालत आज़ बनाई तूने ,
फ़िर तिरा नाम न आए ये हसीं सितम भी ढाया...

अब क्या ज़ाहिर करूं मैं इश्क़ ए रवानी फिज़ा को ,
बस ज़हर घोल के सांसों में सिसकती आह पाया...
लाज़िम था ये अंजाम भी वस्ल की चाह में मुर्शद ,
वो इश्क़ इश्क़ ही क्या जिसने न रात दिन सताया...

©Deepanshi Srivastava #Emotional
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Deepanshi Srivastava

मृत इच्छा और जीवंत व्यथा निष्ठुर जीवन रच देती है , 
माटी कितनी भी कोमल हो तपकर पत्थर सी होती है...
है आस लिए यह दीप आज के सत्य विशिष्ट का भान करे,
अस्तित्व स्वयं का ज्ञात करे और जल जलकर सिर्फ प्रकाश करे...

©Deepanshi Srivastava #Path
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Deepanshi Srivastava

फिर समाज के बंधन में मन व्यास की जकड़न दिखे मुझे ,
फिर नाम दाम के बहकावे में ये नारी कहीं मरे मिटे...

देखो सबसे कहा है मैंने बिटिया मेरी अफ़सर होगी,
अब सबको सपने दिखला कर तू तजे राह यह खले मुझे...

प्रश्न मेरा बस इतना सा के ये राह अकेले चुनी थी मैं ,
क्या आया कोई समाज का था जब तंग हालत देख इस b.a में दाख़िल हुई थी मैं...

बिटिया मेरी टॉपर है गुणगान सदा था सुना यही ,
पर science छोड़ जब arts लिया तो परिवार शर्म से झुका यही...

दुनिया से मैं क्या लड़ती , मेरी मां को शर्म सी लगती थी ,
बिटिया B.A में पढ़ती है ये कहने में नजरें झुकती थीं...

तब उस वक्त भी मेरी लड़ाई में ये समाज की बातें आगे थीं ,
B.A से अच्छा तो B.sc था ये तो गंवारों की एक पढ़ाई है...

अब उसी arts से आगे बढ़कर जो NET की एक मंजिल पाई है,
तो कहते हैं ये सपने सबके थे जो मैंने अपने दम पर रौशनी लाई है...

मैं तब भी समाज के विरुद्ध में थी मैं अब भी नहीं समझती कुछ ,
परिवार की शान सराखों पे पर ये बात मुझे है खटकती कुछ...

नहीं चाहिए दुनिया से कुछ बस परिवार साथ दे काफ़ी है ,
कोई भी नारी सशक्त खड़ी है जब तक वह मां बाप की लाडली है...

क्या जवाब मैं दूं समाज को जब ये भय मिटेगा मन दर्पण से,
हर बेटी होगी कामयाब मां बाप के देखे सपनों से...

©Deepanshi Srivastava 
  #Parchhai
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Deepanshi Srivastava

फिर समाज के बंधन में मन व्यास की जकड़न दिखे मुझे ,
फिर नाम दाम के बहकावे में ये नारी कहीं मरे मिटे...

देखो सबसे कहा है मैंने बिटिया मेरी अफ़सर होगी,
अब सबको सपने दिखला कर तू तजे राह यह खले मुझे...

प्रश्न मेरा बस इतना सा के ये राह अकेले चुनी थी मैं ,
क्या आया कोई समाज का था जब तंग हालत देख इस b.a में दाख़िल हुई थी मैं...

बिटिया मेरी टॉपर है गुणगान सदा था सुना यही ,
पर science छोड़ जब arts लिया तो परिवार शर्म से झुका यही...

दुनिया से मैं क्या लड़ती , मेरी मां को शर्म सी लगती थी ,
बिटिया B.A में पढ़ती है ये कहने में नजरें झुकती थीं...

तब उस वक्त भी मेरी लड़ाई में ये समाज की बातें आगे थीं ,
B.A से अच्छा तो B.sc था ये तो गंवारों की पढ़ाई सी थी...

अब उसी arts से आगे बढ़ते जो NET की पहली मंजिल पाई है,
तो कहते हैं ये सपने सबके थे जो मैंने अकेले जलकर रौशनी लाई है...

मैं तब भी समाज के विरुद्ध में थी मैं अब भी नहीं समझती कुछ ,
परिवार की शान सराखों पे पर ये बात मुझे है खटकती कुछ...

नहीं चाहिए दुनिया से कुछ बस परिवार साथ दे काफ़ी है ,
कोई भी नारी सशक्त खड़ी है जब तक मां बाप की लाडली है...

क्या जवाब मैं दूं समाज को जब ये भय मिटेगा मन दर्पण से,
हर बेटी होगी कामयाब मां बाप के देखे सपनों से...

©Deepanshi Srivastava #Parchhai
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Deepanshi Srivastava

शक्ति को साधना इतना आसान नहीं होता ,
 ये प्रेम यज्ञ है इसका कोई परिणाम नहीं होता...

©Deepanshi Srivastava 
  #Love

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Deepanshi Srivastava

महज़ कुछ हर्फ में लिख दूं मैं कहानी इतनी ,
नहीं आसान है ये दर्द - ए - रवानी अपनी...
जायज़ हक़ भी फक़त हासिल हुआ न मुझे ,
मैं कैसे कह दूं अब ये बेकरारी अपनी...
वफ़ा के मंजर तले यार जीती रही हर दम ,
बताओ कैसे सुनाऊं हार को मुहजुबानी अपनी...
किस किस को बेवफाई का रुख़ बताती फिरूं,
और किस किस पर अब नज़र दोहराऊं अपनी...
ख़ुद का साया भी इक बार को अब झूठा दिखता,
मैं कैसे ज़ाहिर करूं ये दुनिया है चालबाज़ कितनी...

©Deepanshi Srivastava 
  #kitaabein
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Deepanshi Srivastava

ऐ खुदा कुछ ऐसा इंतज़ाम कर दे ,
हसीं खुशी मुझे अब बर्बाद कर दे..
 तेरे पास आऊं तो सब गिनती लगाऊं,
उसके गुनाह भी तू मेरे ही नाम कर दे...

©Deepanshi Srivastava 
  #roshni 
हारा मन

#roshni हारा मन

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Deepanshi Srivastava

खुदा के नाम इक चिट्ठी है भेजी ,
के कर दे फ़ैसला अब इस कली का...
ये निर्झर मौन मन अब थक गया है,
इसे न दे सहारा बेरुखी का...
कफ़न के साथ सब तैयार है रखा ,
के अब तो देख ले तू इस तरफ हां..
नहीं ख्वाइश नहीं कोई दुआ अब ,
है टूटा हर दफा के अब जर्जर हुआ हां...

©Deepanshi Srivastava #saath

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