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dharmendraazad5522
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Dharmendra Azad

धर्मेन्द्र तिजोरी वाले "आजाद शिक्षा- एम ए (हिन्दी साहित्य) प्रकाशन- उन्नयन, शेष , कथाबिंब, कादम्बनी एवं अन्य पत्रिकाओं में । दो कविता संग्रह 'उसके बारे में ' एवं 'ओ माय लव' , एक कथा संग्रह 'आकल्प' तथा एक गजल संग्रह 'उनकी यादों के उजाले' प्रकाशित। सम्पर्क- आजाद प्रकाशन तेन्दुखेड़ा-487337 जिला- नरसिंहपुर (म प्र)

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Dharmendra Azad

सोचना तुमको कर दिया है शुरू 
अपना रहता है अब खयाल कहाँ 

तुमने अच्छा किया दग़ा करके 
तुमको खोने का अब मलाल कहाँ

©Dharmendra Azad
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Dharmendra Azad

जो थी चेहरे पे नुमायाँ वो कमी सूख गई 
इतना रोया हूँ कि अब आँख मेरी सूख गई 

लाख कोशिश पे समंदर न हुआ जब मीठा 
बीच रस्ते में ठहर कर वो नदी सूख गई 

आख़िरी खत पे तेरे अश्क जहाँ टपके थे
अब भी गहरे हैं वहाँ ज़ख़्म नमी सूख गई

आये दाने तो नहीं लौट के आये बादल 
लहलहाती सी मेरी फ़स्ल खड़ी सूख गई 

अजनबी बनके मिला जब भी मिला यार मुझे
जिस्म का सारा लहू सारी खुशी सूख गई 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad
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Dharmendra Azad

मुहब्बत इस तरह बदनाम है अब तो ज़माने में 
उसे राधा भी कह दूँ तो कोई तूफ़ान आ जाये 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad
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Dharmendra Azad

हालांकि कठघरे में कभी मैं ज़रूर था
लेकिन यक़ीन कीजिये मैं बेकसूर था 

ऐसा नहीं कि मुझको मुहब्बत नहीं हुई 
दो चार ही दिनों का रहा जो सुरूर था 

दो जिस्म भर नहीं थे कि कर लेते हम क़रार 
उसको बदन पे रूह पे मुझको गुरूर था 

उसको गले लगा न सका चाहते हुये 
आँखों के पास ही था मगर दिल से दूर था 

अब भी अँधेरी राह में करता है रौशनी 
मेरी निगाह में जो कोई कोहिनूर था

©Dharmendra Azad
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Dharmendra Azad

दामन में उसके चाँद भी हो आस्माँ भी हो 
महफ़ूज हर बला से रहे वो जहाँ भी हो 

इक ही जगह रहेगी मुहब्बत है वो मेरी
तस्वीर तो नहीं कि यहाँ भी वहाँ भी हो 

जन्नत भी कुछ नहीं है जहन्नुम में भी अगर 
मेरे ही घर के सामने उसका मकाँ भी हो 

बस इक मेरा यक़ीन खुदी पर से हो न कम 
चाहे मेरे खिलाफ़ ये सारा जहां भी हो 

सबको ही ज़िन्दगी की हक़ीक़त पता चले 
जब भी कोई जले तो जरा सा धुआँ भी हो 

इतना असर तू मेरे खुदा शायरी में दे 
अपना सुनाऊँ दर्द तो सबका बयाँ भी हो

©Dharmendra Azad
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Dharmendra Azad

चार दिन दूर रहे तुम तो हमें भूल गये 
हमने दुनिया ही भुला दी है तुम्हारे पीछे 

वो था प्यासा तो तमन्ना थी उसे दरिया की 
लश्करे याद गया छोड़ हमारे पीछे

©Dharmendra Azad #तुम्हारेपीछे
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Dharmendra Azad

मुझे महसूस होती है तेरे आने की जब आहट 
कभी बढ़ती है बेचैनी कभी बढ़ती है घबराहट

कोई दिल में जो रहता है मेरी इस जेब के नीचे 
तो इस अहसास से तंगी में भी रहती है गर्माहट 

 मेरे मरने में कुछ तो हाथ उस मासूमियत का है 
बड़े ही प्यार से कहती थी शरमाकर कि चल जा हट!

दवा ही कड़वी होती है ये पहले उसने भरमाया 
फिर उसके बाद वो देता रहा सब अपनी कड़वाहट

तेरे मेरे मरासिम जैसा होता हाल पानी का 
अगर दोनों तरफ़ होती घड़े में भी ये चिकनाहट 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad
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Dharmendra Azad

मेरी आँखों में रहता था जो पानी भी नहीं ज़िन्दा 
मेरी बर्बादियों की अब निशानी भी नहीं ज़िन्दा 

किसी तूफाँ के डर से उसके सारे खत जला डाले 
अधूरी अब वो बचपन की कहानी भी नहीं ज़िन्दा 

हमारे शब्दकोशों में मुहब्बत मिल तो जायेगी 
वहाँ लेकिन मुहब्बत के मआनी भी नहीं ज़िन्दा 

कई सालों में मिलकर हम तो बस इस बात पर रोये 
न तो ज़ज्बे ही ज़िन्दा थे जवानी भी नहीं ज़िन्दा 

मुहब्बत के फ़साने की 'धरम' ये त्रासदी देखो
न जिस्मानी ही ज़िन्दा है रूहानी भी नहीं ज़िन्दा 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad
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Dharmendra Azad

ज़मीं को अर्श करुँ और दिन भी रात करुँ 
अगर तू साथ चले मौत को हयात करुँ 

जरा सी देर को तू अपना हौंसला दे दे 
मैं तुझको भूल सकूँ और खुद से बात करुँ 

ये दर्द भर हैं मेरे और सब तेरी खुशियाँ 
मैं खुद से हार ही जाऊँ जो तुझको मात करुँ 

कि पत्थरों को सभी ने खुदा बनाया है 
तुझे सुनाऊँ ग़ज़ल और इनको नात करुँ 

तेरे ख़याल से कुछ वक़्त भी मिले तो सही 
दिलो जिगर का तभी हाल मालूमात करुँ 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad
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Dharmendra Azad

पापा को जाँ से प्यारी होती हैं बेटियाँ 
मम्मी की दुनिया सारी होती हैं बेटियाँ 

आँगन हो या रसोई खुशबू बिखेरतीं 
फूलों की एक क्यारी होतीं हैं बेटियाँ 

इनके बग़ैर घर भी रहता उदास है 
घर की बहुत दुलारी होतीं हैं बेटियाँ 

साबित किया है खुद को हर वक़्त बीस ही 
बेटों पे लाख भारी होतीं हैं बेटियाँ 

@धर्मेन्द्र तिजोरीवाले 'आज़ाद'

©Dharmendra Azad
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