एक कविता जवानों के लिए।
*घर का बैरी!*
पल रहे है सांप भीतर,
आस्तीन उठाकर देखो तुम।
होगा न शहीद जवान एक भी,
तलवार उठाकर देखो तुम।
उजड़ रहा है मांग वधु का,
तुम अहिंसा का पाठ पढ़ाते हो।
सिना है गर छप्पन इंच का,
तो फिर काहें को घबराते हो।
बहुत हो गया गांधीवादी,
इंकलाब का हुंकार भरो।
रौद्र रूप धर शंकर का,
तुम दुष्टों का संघार करो।
साहस बढ़ा रहा है उनका,
पलकें भीगी, मौन तुम्हारा।
हरि के तुम सुदर्शन जैसे,
बिगाड़ सके कुछ कौन तुम्हारा।
बैरी है घर के ही भीतर,
उन सबको पहचानों तुम।
धर धनुष अपनो के सम्मुख,
अर्जुन सा ललकारों तुम।
सगा नहीं है अपना कोई,
किसी पे न विश्वास करो।
बन वृकोदर रणभूमि में,
कौरव का तुम नाश करो।
(कुछ पंक्तियां हमारे पड़ोस देश के लिए!)
कब तक तुमको माफ़ करें,
कब तक धोखे खाएं हम।
सामने आओ कभी हमारे,
औकात तुम्हारी दिखाएं हम।
जिस दिन माथा सटक गया,
नक्शे से मिट जाओगे।
बेटे हो, बेटे आखिर!
बाप से क्या भिड़ पाओगे।
कान के नीचे जिस दिन बेटे,
लाफा एक पड़ जाएगा।
गोरे-चिट्टे गाल पे तेरे,
हिंदूस्तां छप जाएगा।
धरी रह जाएगी सारी अकड़,
तेरा लंगोट गीला हो जाएगा।
चीनी वाले पजामें का बेटे,
नाड़ा ढीला हो जाएगा।
(कुछ पंक्तियां देश में रह रहे गद्दारों के लिए)
लांघ रहे है सीमा शत्रु,
कोई तो भीतर होगा।
बहा रहा है रक्त जो मेरा,
अपना ही खंजर होगा।
बताकर खुद को देशभक्त,
तिरंगा तुम लहराते हो।
चंद नोटों के बंडल पे,
दुश्मन को भेद बताते हो।
हमने छोड़े नहीं जयचंदो को,
सोचो तुम्हारा क्या होगा।
सर न रहेगा धड़ पे तेरे,
सिने के पार भाला होगा।
जो उठेगी उंगली मां पे मेरे,
मैं सनकी हो जाऊंगा।
आतंकवाद का अंत करने,
मैं आतंकी हो जाऊंगा।
डरकर बैठें अहिंसावादी,
लथपथ खून जवानी है।
रग-रग में जिसके इंकलाब,
बेटा वो हिंदुस्तानी है...
#IndianArmy#Dard_Bewajah