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एस पी "हुड्डन"

https://www.facebook.com/share/15fsLhq8sC/ subscribe my YouTube channel https://youtube.com/@SpHudden?si=r-zz_vitdxIBS8vc कवि और लेखक हूं। किसी को धोखा नहीं दे सकता, ना ही धोखा बर्दाश कर सकता हूं। हिंदी में मास्टरी के साथ ही #TET qualified हूं। सरकारी नौकरी की अपेक्षा अपनी कार्यकुशलता से आजीविका कमाने में दक्ष हूं। सेब बागवानी को प्रमुखता से करता हूं।

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एस पी "हुड्डन"

Unsplash  साल 2024 तो जा रही है,
बदले में साल 2025 आ रही है।
मगर!तू बता कौन आ रही है,
जो तू मुझे छोड़ कर जा रही है।








2025





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©एस पी "हुड्डन" #lovelife
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एस पी "हुड्डन"

White अच्छा हुआ वो छोड़ गया  इश्क होने वाला था,
मैं भी उसके प्यार में घुट घुट के रोने वाला था।
अजनबियों का ये सफ़र खत्म हुआ दोस्ती पर,
शुक्र है! गैर न  हुए एक रिश्ता खोने वाला था।














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©एस पी "हुड्डन" #एक_रिश्ता
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एस पी "हुड्डन"

White बंद कमरों में  बैठ  कर धूप नहीं तापी जाती,
आसमाँ  की ऊंचाई पैरों से नहीं नापी जाती।
कोई बात तो थी उस धोती चश्मे वाले बूढ़े में,
ये नोटों पर तस्वीरें ऐसे ही नहीं छापी जाती।

©एस पी "हुड्डन" #ऊंचाई
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एस पी "हुड्डन"

White यादें हैं और यादों का ही सिलसिला है,
बिछड़ने  वाला  फिर से कहाँ मिला है।
रहती  है  जो  वो सिर्फ महक ही तो है,
मुरझाया  जो  फूल फिर कब खिला है।

©एस पी "हुड्डन" #यादें_है
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एस पी "हुड्डन"

White होगा  कोई  तेरा  मुकद्दर  मिल  जाएगा,
करने वाला कोई तो कदर मिल जाएगा।
एक दिलासा दे कर  छोड़ गए  वह मुझे,
तुम्हें  कोई  मुझ से बेहतर मिल जाएगा।

©एस पी "हुड्डन" #उफ़_दिलासा
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एस पी "हुड्डन"

White खुद ही के होश गँवा बैठा था  कर के कत्ल कातिल मेरा,
फिर एक मर्तबा मुझे मिला है  किया  हुआ  हासिल मेरा।
मैं  सभी के  दुख में रोया हूं  फिर कोई कैसे मुझे रुलाता,
हाथ उसके रंगे थे खून में  आँखों में दर्द था शामिल मेरा।

©एस पी "हुड्डन" #मेरा_हासिल
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एस पी "हुड्डन"

White हमनें बात  अपने  दिल की सुनी है,
कांटों से सजी राह मर्ज़ी से चुनी है।
खैरात की नहीं सफलता की चादर,
हमनें ये संघर्ष  के धागों से बुनी है।

©एस पी "हुड्डन" #संघर्ष_की_चादर
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एस पी "हुड्डन"

White ठंड की  ठिठुरन में सूरज ने आग ओढ़ी,
दो  प्रेमियों  ने मिल कर सारी हदें तोड़ी।
क्या करें कि बाहर तो मौसम भी ऐसा है,
पर तूने ज़िद न छोड़ी मैंने ज़िद न छोड़ी।
नाराज़गी  भी नहीं है बातें भी नहीं होती,
ऐसे  कैसे  जमेंगी  हमारी तुम्हारी जोड़ी।
ना ही तुम हो गलत और न हम फ़रेबी है,
खेल हमसे खेल गई है क़िस्मत निगोड़ी। 
आओ कि मिलें बैठें  मसलों को हल करें,
गिले  हैं  उम्र  भर के ये ज़िंदगी है थोड़ी।

©एस पी "हुड्डन" #क़िस्मत_निगोड़ी
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एस पी "हुड्डन"

White हम  एक  नेक और सभ्य समाज चाहते हैं,
बुराईयों का कुरीतियों का इलाज चाहते हैं।
हम वैहशी तो  नहीं  जो जंगल में राज करें,
आदमी  है  साहब! दिलों में राज चाहते हैं।

©एस पी "हुड्डन" #दिलों_में_राज
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एस पी "हुड्डन"

White साथ तो चले  थे  यार हम कहाँ रह गए,
पैसा  बंगला  ना कार हम कहाँ रह गए।
अब  हिचकिचाता सा हूँ मिलने से तुम्हें,
तुम अमीरों  में  शुमार हम कहाँ रह गए।
मैं फ़िक्र  में बोल लेता  तुम दोस्त हो मेरे,
पर खुद्दारी  में  खुद्दार  हम कहाँ रह गए।
ये संघर्ष  ये  मेहनत उफ़ ये मुकद्दर मेरा,
ये तरक्की दरकिनार  हम कहाँ रह गए।
शेर सी दहाड़ थी  चीते सी दौड़; लेकिन!
थके  हारे  से  लाचार  हम कहाँ रह गए।
समझौता ना किया  सफर के उसूलों से,
थी मंज़िलें भी  तैयार  हम कहाँ रह गए।
दिल  कहता है  फिर मिलेंगे मौक़े; मगर!
दिखता  नहीं  आसार  हम कहाँ रह गए।
न ईमान गंवाया न आधार खोया "हुड्डन"
भला  फिर  निराधार  हम  कहाँ  रह गए।

©एस पी "हुड्डन" #कहाँ_रह_गए    हिंदी कविता

#कहाँ_रह_गए हिंदी कविता

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