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vikramkumaranuja5054
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Vikram Kumar Anujaya

Passionate of writing Poetry, story and contemporary content

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Vikram Kumar Anujaya

ओह मुझपर मँडराते बादल!
मेरे मन को मथते अरमानों को ले लो,
और बदले में अपनी जल-राशि बूँदों के रूप में दे दो,
और चले जाओ वहाँ,
जहाँ मेरी प्रेयसी बैठी है,
उसे घेर लेना चारो ओर से,
और बरसा देना उसपर,
मेरे मन के सारे अरमान को,
और बदले में उसकी आँखों से,
सारा अश्रु-जल ले लेना,
और उससे कहना, 
तुम्हें सुनने को वह उतना ही आकुल है,
जितना आकुल हूँ मैं धरती पर बरसने को।

©Vikram Kumar Anujaya #lightning
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Vikram Kumar Anujaya

सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ,
सुबह की पहली लाली द्वारा पकड़ लिए जाने पर,
सकुचाने और लजाने की चेष्टा में,
बिल्कुल तुम्हारे मुखड़े की माधुर्य की तरह खिल जाती है।
और इस तरह ओस की बूँदों पर
कलियों का प्रेम छिपने के बजाए,
और भी जाहिर हो जाता है।
ठीक इसी तरह,
क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर खिले मुस्कान से, 
मुझपर तुम्हारा प्रेम जाहिर नहीं होता?

©Vikram Kumar Anujaya #Path
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Vikram Kumar Anujaya

सबनम की बूंदों को चुमती हुई कलियाँ,
सुबह की पहली लाली पड़ने पर,
सकुचाने और लजाने की चेष्टा में
तुम्हारे ही मुखड़े की माधुर्य की तरह,
और भी खिल जाती है,
और इस तरह से ओस की बूँदों पर 
कलियों का प्रेम,
छिपने के बजाए और भी जाहिर हो जाता है।
इसी तरह क्या तुम्हारे सकुचाते-लजाते चेहरे पर
खिलती मुस्कान से,
मुझपर तुम्हारा प्रेम और भी जाहिर नहीं होता? ,

©Vikram Kumar Anujaya #hibiscussabdariffa
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Vikram Kumar Anujaya

White सुनो तुम सो जाओ,
मुझे नींद में मुस्कुराते हुए,
तुम्हारे माधुर्य मुखड़े को देखना है।
मुझे यह देखना है कि
जब तुम गहरी नींद में होती हो,
और आहिस्ते पलकों के दरवाजे से,
मैं तुम्हारे सपनों में आता हूँ,
तो तुम कैसा मेहसूस करती हो!

अपने ख्वाबों में मुझे पाकर 
तुम कितनी सुकून मेहसूस करती हो,
तुम्हारे मुखड़े पर चौड़ी होती मुस्कान में
और तुम्हारे मुख पर खेलते भाव को 
मैं पढ़ना चाहता हूँ, कि अपने सपनों में,
तुम मेरे साथ कितना सहज महसूस करती हो।

©Vikram Kumar Anujaya #good_night
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Vikram Kumar Anujaya

White किसी से दो पल का आत्मीय संवाद,
हृदय के बोझ को कितना कम कर देता है।"
मैं सोचता हूँ, 
नदियाँ समंदर की ओर क्यों भागती है,
हवाएँ क्यों बेचैन और गतिमान है,
ये धरती, ग्रह, नक्षत्र,
सबके-सब घूमते क्यों हैं?
चंद्रमा अनंत काल से यात्रा पर क्यों है,
और ये समंदर उद्वेलित और दग्ध क्यों रहता है?
क्या ये भी हमारी तरह आत्मीय संवाद
के लिए किसी की तलाश में है?

©Vikram Kumar Anujaya #moon_day  कविता कोश हिंदी कविता कविता प्रेम कविता हिंदी कविता

#moon_day कविता कोश हिंदी कविता कविता प्रेम कविता हिंदी कविता

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Vikram Kumar Anujaya

White "कुछ चीजें परिबद्ध नहीं की जा सकती।
 उसे केवल मेहसूस किया जा सकता है,
 जैसे संघर्ष के दिनों में
 हमारे कंधे पर किसी के हाथ का मानवीय स्पर्श;
 जैसे हमारी खुशियों के लिए
 किसी के हृदय में स्पंदित प्रार्थनाएँ,
 जैसे हमारे सबसे बुरे समय में
 किसी का गले लगाना;
 जैसे हमारे सपनों तक पहुँचने में
 किसी का दीया बनकर,
 हमारे मार्ग के अंधेरों को मिटाना।"

©Vikram Kumar Anujaya #sad_shayari
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Vikram Kumar Anujaya

White "जिन्होंने ने हमारी आत्मा को सींचा;
हमारे हृदय को अपने हृदय के दान देकर,
उसका पोषण किया;
उसमें जश्न भरे; ऊर्जा का संचार किया, 
उनसें हमारा कभी वैमनस्य नहीं हो सकता। 
जीया हुआ प्रेम हमारी सबसे खुबसूरत स्मृतियाँ होती है।
इसके प्रति हमारे हृदय में एक विशेष अनुराग होता है।
जिससे हमारा सच्चा प्रेम हो, 
वह इंसान हमारे हृदय में सदैव जीवित रहता है।"

©Vikram Kumar Anujaya #love_shayari
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Vikram Kumar Anujaya

White "इस लेन-देन और ताल्लुकातों के सब्ज बाजार में,
अपनें जज्बातो का माखौल उड़ा रहा हूँ,
हाँ, मुझपर इल्जाम है कि मैं इंसा हूँ, 
और इंसानियत का माहौल बना रहा हूँ।"

©Vikram Kumar Anujaya #Moon
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Vikram Kumar Anujaya

"नववर्ष की उषा की पहली किरण,
चेतना आपमें नई भर दे,
मंगलमय हो जीवन-पथ का हर कदम,
हवा का कण-कण उत्साह नया भरदे,
ओतप्रोत जीवन हो खुशहाली से,
यह साल नवऊर्जा, नवप्रेरणा का,
मधुमास नया आपमें भर दे।"

नव् वर्ष 2024 की अनंत शुभकामनाएँ।

©Vikram Kumar Anujaya #sunrisesunset
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Vikram Kumar Anujaya

इस गहरी सर्द रात में,
जब मेरे कमरे की खिड़कियों के बाहर,
सभी पेड़-पौधें व वन्यजीव विश्राम कर रहे हैं,
और पत्तों नें गुनगुना बंद कर दिया है।

सारे वृक्ष अंधेरों की चादर ओढे सो रहे हैं,
सिवाय मेरे कमरे की दीवार से लगी घड़ी के सेकेंड की सूई के,
जो इस घनेरी अंधेरी रात में में टिक-टिक कर रही है,
और मैं नींद में भी खुद को जगा हुआ हूँ मेहसूस कर रहा हूँ।

मेरी बंद आँखें स्पष्टतः देख रही है,
तुम्हारे माधुर्य मुख पर खेलते रसिक भाव को
जो संभवतः किसी ख्वाब की वजह से बदल रहे हैं।

तुम बीच में मंद-मंद मुस्कुरा रही हो,
और नींद में तुम्हारा सकुचाता-लजाता चेहरा,
बिल्कुल वैसा ही लग रहा है,
जब एकबार मेरे थिरकते ओठ,
तुम्हारे सुर्ख अधरो पर मँडराये थे,
और तुम अँगड़ाइयाँ लेती हुई
अपनी गहरी-गहरी साँसों से,
मेरे अतुर अधरों को दहका रही थी।

संभवतः तुम्हारे ख्वाब में भी वही चल रहा है,
जो मैं यहाँ, तुमसे मिलों दूर मेहसूस कर रहा हूँ अपने ख्वाब में।

©Vikram Kumar Anujaya #Chhuan
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