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mithileshkumar3558
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Mithilesh kumar

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Mithilesh kumar

बादलों  को   ये  हवाएं  उतार  लाती  है
शर्म-ओ-हया को जवानी उतार लाती है
उड़  जाती  है  बेटियां पंक्षियों की तरह
यादें   उसकी   जुदाई   उतार  लाती  है
आखिर पूरा गुर खा  जाना है  हमी को
प्यार  बहनों  की लड़ाई  उतार लाती है
बड़े से बड़ा  तूफा यू  हँसकर झेल गया
आंसू अपनो की रुसवाई उतार लाती है
पेट  भरा है  फिर भी कुछ खा  लेता हूँ
भूख  मेरे माँ  की अदाई उतार लाती है
हर  बार  तुझसे नफरत  में मैं  हारा  हूँ
चाहत दिल की गहराई उतार  लाती है

©Mithilesh kumar #stay_home_stay_safe
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Mithilesh kumar

बात बुढ़ापे की
बुढ़ापे में शबाब की बातें
ऐसे जैसे ख्वाब की बाते
60 वां वसंत जब सर चढ़ आया
सधवा मन जोरो अकुलाया
महीना था जेठ या जून
याद आया पहला हनिमून
लगाया नही कोई ब्रेन
जा बैठा ट्रैन
बड़ा लम्बा सफर था
पास बैठी अप्सरा का असर था
वो बातों ही बातों में बात करती गई
सांस सांसो में घुलती गई।
हाथ थामे स्वप्न का बढ़ चला
दिल उसके गेसुओं में फंस चला
उसके गेसुए लहलहा रहे थे
मानो सावन को बुला रहे थे
भोर किरण सी सुर्ख अधरे
पूर्णमासी चाँद सी बिंदी
पके गेहूँ के शीशों सा बदन
आंख चाँद की शीतलता समेटे
मानो धरा को खुद में लपेटें
नजर उसपे जबसे परी है
आँख दर्पणों सा अड़ी है
देखना नही चाहता दिल कोई नजारा
सिर्फ चाहता है  सूरत प्यारा प्यारा
फिर किसी आहट से
कान मे घुली कड़वाहट से
आंख जाग जा रही थी
खिड़की से झांका कोई मोड़ आ रही थी
ड्राइवर जैसे ही ब्रेक लगाया
उसका नाजुक बदन मुझसे टकराया
उसके भार से दिल बहल गया
भाव ऐसा बनाया मानो सहम गया
गाड़ी फिर पटरी पे दौर लगाई
दिल फिर स्वप्न लोक लौट आई
इतने में किसी ने नींद से जगाया है
किसी ने मीठे स्वर में बुलाया है
दादाजी जरा पैर हटाइए
मुझे उतरना है जड़ा रास्ता बनाइए
उसकी अनमोल बातों से
दिल मे उठे जज्बातों से
दिल को झकझोर गया
शर्म के पानी में बोर गया
मन तब से व्यथित और घायल है
उसके ख्यालो का कायल है
दिल ने कहा छोड़ो ये सब है बेकार की बाते
बुढ़ापे में शबाब की बातें।
बुढापे …............।

©mithilesh kumar #Rose
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Mithilesh kumar

उलझन इस बात की है कि                                                    💐~सड़क और मैं~💐
          आज सुबह जब टहलने निकला तो हमारी मुलाकात सड़क से हुई। भौंहे तनी हुई, लाल आंखो को मलते हुए बड़बड़ाया " चला आया सुबह-सुबह, न खुद सोता है ना किसी को सोने देता है।"मैं बड़ा आश्चर्यचकित था, आज से पहले तो उसने मुझे कभी इस तरह खड़ी-खोटी नही सुनाई थी। पर इतनी खड़ी-खोटी सुनने के बाद भी आदतन मैं कुछ बोला नही, बस एक टेढ़ी नजर कर चलता रहा।  सड़क पर चलते-चलते कई विचारों का प्रस्फुटन हमारे अंतर्मन मे हो रहा था कि कभी इन सड़कों पर कितनी चहल-पहल होती थी। माँ अपने बच्चे को सौ सलाह देकर भेजती थी, ऑफिस वाले इसके भीड़ के अनुसार समय से पहले घर से निकल जाया करते थे। अनायास ही लोगों का हुजूम सड़को पर होता था।  सुबह-सुबह राम-राम, हर हर महादेव और वालेकुम सलाम का अभिवादन चारो तरफ सुनाई देता था। आज सड़क सुनसान गली में बदल गया है। हम सभी भी सड़क की ही भांति एक अनिर्णीत एकांतवास में चले गए है। मौजूदा परिस्थिति ने हमारे बुनियादों को हिला दिया है।
 
            विचारों के उधेड़बुन से निकला भी नही था कि कोई अचानक सामने से आता दिख गया। मैं झट से अपना मास्क ऊपर किया, सामने वाले की भी यही  प्रतिक्रिया थी। आधुनिकता ने महिलाओं और पुरुषों के परिधान की दूरी मिटा दी है, बस सोच सकते है कि सामने से कोई गुजरा है या गुजरी है, पर कुछ विश्वास से कह नही सकते। खैर आज मुँह छुपाई का ये तरीका मेरी माँ की याद दिला दी। मेरी माँ भी चाचा को देखते ही ऐसे ही पल्लू सर पर ले लेती थी।विचारों के अब्र ने एक बार फिर मुझे घेर लिया। कुदरत ने भी आज हम सबों पर एक पल्लू डाल दिया है वार्ना सुबह-सुबह कौन ताजी हवाओं पर से खुद को प्रतिबंध लगाए। सहसा मेरे आंखों के आगे मोड़ आ गया, मैं खुद को  गिरते-गिरते सम्हाला। फिर क्या था सड़क फिर बड़बड़ाया "भाई देख कर चल गिरोगे तो हमारी ही छाती टूटेगी" अबकी बार सड़क पर मैंने आँखे टेढ़ी नही की।  मुझे अब सड़क का डांटना अच्छा लग रहा था। ऐसा लग रहा मानो सड़क मेरी माँ की तरह मुझे डाँटा रही हो, पिता की तरह मेरा हाथ थाम लिया हो और भाई की तरह समझा रहा है कि देख के चलो, अभी मैं ही सिर्फ तुम्हारा हूँ, गिरोगे तो कोई उठाएगा भी नही। 
                 मैं अंदर ही अंदर पूरी तरह सिहर उठा, वाकई सड़क की तरह आज मेरा भी कोई नही है। एक अदृश्य जीव ने हमारे सगे-संबंधी, दोस्त-यार सभी को खा गया है। वाकई आज हम निपट अकेले रह गए है। आज मुझे सड़क से अपनापन हों गया है । जीवन क्या है? इसी सड़क के भाँति। लोग आयेंगे खेलेंगे-कुदेगें, खुद के खुशी के लिए हमे रौंद देंगे, हमारी काया उसके मिट्टी की धूल सा उड़ता रहेगा और हम उड़ते गुबार के आगोश में खुद को जीवंत रख पाएंगे। 
             आज सड़को को उसके अपनो ने ही भूला दिया है, उनपर घास उग आए है, कुछ दिनों में ये अकेलापन उसके अस्तित्व को समाप्त कर देगी। सडक की तरह ही रिश्ते-नाते भी हमारे जीवन मे हमे बनाये रखते है । हम उनसे दूरी बनाते रहे तो हमारे ऊपर भी वही घास उग आएगा। शुरू में ये हरियाली की तरह अच्छा लगेगा पर धीरे धीरे यही हरयाली हमारे जीवन को एक गुप् अन्धकार में ढकेल देगी।
                                                                              ✍मिथिलेश कुमार ‘मिठु’

©Mithilesh kumar #stay_home_stay_safe


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