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Poetic kumar

✍️कलम का सिपाही Instagram:- poetic_kumar

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Poetic kumar

एक शख्स क्या गया पूरा काफिला गया 
तूफ़ां था तेज पेड़ को जड़ से हिला गया
जब सल्तनत से दिल की रानी चली गयी
फिर क्या मलाल तख्त गया या किला गया

               ✍️ स्वयं श्रीवास्तव

©Poetic kumar #together

15 Love

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Poetic kumar

धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध
धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध
जानकी! हाय उद्धार प्रिया का हो न सका
वह एक और मन रहा राम का जो न थका
 
✍️ सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'

©Poetic kumar #Likho

16 Love

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Poetic kumar

तुमको मिल जायेगा हमसे बेहतर
हमको मिल जायेगा तुमसे बेहतर 
अगर दोनों हम मिल जायें तो 
कुछ नहीं हो सकता इससे बेहतर

✍️ रोहित शर्मा

©Poetic kumar #couplefight

13 Love

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Poetic kumar

कभी देखा  सुंदर लड़की को??
मृग से नयन, सुराही सी गर्दन 
कसा हुआ शरीर,थिरकते नितंब 
गुलाब से अधर,हिरणी सी चाल 
झील से गहरी जिसकी हो आंखें
चन्द्रमा सा चेहरा,कोयल से काले केश
प्रदत्त की जाती हैं अनेकों उपमाएं
जोड़ा जाता है अनेक उदाहरणों से 
परन्तु क्या से पैमाना पर्याप्त है??
मैंने देखी भौर में दौडती सुंदर लड़की
जिसके चेहरे पर थी दिनकर से ज्यादा चमक
जो अर्जित की उसने दौड़ कर मैदान पर
शबनम की बूंदें कर रही थी ईर्ष्या 
 उसके माथे के पसीने से ,पाया उसने जो 
कर संचित तमाम उर्जा जो थी विद्यमान
उसके शरीर के प्रत्येक कण में
उसके मुख की लालिमा ने कर दी फीकी 
आ रही थी किरणें जो सूरज से  
लक्ष्य को पाने की भूख के भाव 
पछाड़ रहे थे सभी भाव-भंगिमाओं को 
जिनसे मापते है हम सुंदरता को

©Poetic kumar
   #Beautiful #BeautifulEyes
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Poetic kumar

ये दुनिया बड़ी रंगीन है,यदा कदा सबके जीवन में
व्याप्त होता निराशाओं, दुःख,बिछचड़न का घना तिमिर
जब स्वच्छंद हो कर रहा था विचरण रंगीन दुनिया में 
दी दस्तक उसी घने पीड़ादायक, कश्मकश वाले तिमिर ने 
उस पथ पर वर्जित था घबराना , हिम्मत हारना 
चाहत थी कि कोई थाम ले मजबूती से हाथ मेरा 
तुम्हारे मौन स्पर्श ने दी सहमति मुझे
एक हामी ने सौंप दिए आसमां के तमाम चंदा-तारे 
उन्हीं चंदा तारों से रोशन हुआ वो पथ 
विचर रहा जिसपर निर्भीक,निडर व उन्मुक्त होकर, 
तुम्हें पाना बड़ा है बजाय सबकुछ खोकर
तुम्हारे नेह के नीड़ में मिला आश्रय मुझे
कश्मकश की गुत्थी पलों में सुलझ गयी 
जैसे सुलझते है उलझे हुए तुम्हारे केश
तुम्हारे खुले केशों में खोकर तुम्हें पाना चाहता हूं
तुम्हे पाने की प्रक्रिया को बार-बार दोहराना चाहता हूं
दोहराई जाती हैं जैसे रामायण की चौपाई,गीता के श्लोक
मन होता है कि  स्वयं को कर दूं अर्पित 
किया जाता जैसे अर्पित 'पंकज' ईश्वर की पूजा में

©Poetic kumar

7 Love

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Poetic kumar

धीरे-धीरे अब सबसे दूर होता जा रहा हूं 
 खुद की जिंदगी को  खुद खोता जा रहा हूं
जिस रास्ते पर चलाया तूने हाथ पकड़कर
उसी पर बिन तेरे  अकेला रोता जा रहा हूं 

आकर देख तेरे बिन कितना कुछ सहा हूं
भीड़ में होकर भी तेरे बिना अकेला रहा हूं
बड़े दिन से ना देखा,तुझे समझ हालत मेरी
याद करके तुझे,दामन आंसुओं से धो रहा हूं

©Poetic kumar #Language_of_tears
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Poetic kumar

मां भारती की आजादी  हेतु जो सरफ़रोश थे 
फिरंगियों के ठिकाने लगाए जिन्होंने होश थे 
'तुम खून दो मैं आजादी दूंगा',दिया नारा जिसने
वो परमवीर नेताजी सुभाष चन्द्र जी बोस थे

©Poetic kumar #subhashchandrabose  Bijendra Shukla Pardeep Kumar kanta kumawat  MR VIVEK KUMAR PANDEY  Pankaj Ojha

#subhashchandrabose Bijendra Shukla Pardeep Kumar kanta kumawat MR VIVEK KUMAR PANDEY Pankaj Ojha #कविता

11 Love

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Poetic kumar

बड़े दिनों से चल रही खत्म अब यह रात करें
एक दूजे के समक्ष प्रस्तुत अपने जज्बात करें
दर्द,आंसू,रुसवाई,बिछड़न सब मेरे हिस्से प्रिये
भूल इन सब को चलो फिर से हम बात करें

©Poetic kumar #SongOfLove
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Poetic kumar

जिंदगी से लड़ा हूं तुम्हारे बिना
हाशिए पर पड़ा हूं तुम्हारे बिना
तुम गई छोड़कर जिस जगह मोड़ पर
मैं वहीं पर खड़ा हूं तुम्हारे बिना

कितनी शोहरत में खेला तुम्हारे बिना
कितने तूफान झेला तुम्हारे बिना
भीड़ में तो घिरा हूं मगर सच कहूं
हूं मैं बिल्कुल अकेला तुम्हारे बिना

हर गजल में लिखा हूं तुम्हारे बिना
गीत में भी दिखा हूं तुम्हारे बिना
लोग कहते हैं महंगा हूं सबसे मगर
कितना सस्ता बिका हूं तुम्हारे बिना

मैंने जीवन गंवाया तुम्हारे बिना
तुमने कैसे बिताया तुम्हारे बिना
मैं मुकम्मल किसी को मिला ही नहीं
मुझको दुनिया ने पाया तुम्हारे बिना

विष पीऊंगा भी कैसे तुम्हारे बिना
दिल सीऊंगा भी कैसे तुम्हारे बिना
डोली चढ़ते हुए यह भी सोचा नहीं
मैं जीऊंगा कैसे तुम्हारे बिना

✍️Dr. kumar Vishwas

©Poetic kumar #fog

9 Love

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Poetic kumar

तेरे  हुक्म पर एक रात अदालत  सजाई‌ गयी 
जो गुनाह किए नहीं मैंने,उनकी सजा सुनाई गयी
सब सबूत,सब गवाह सिर्फ अपने ही बुलाए तूनें
किस लिए दी फांसी मुझे, वजह बताई ना गयी

ये फांसी फंदे वाली नहीं , खुली आजादी वाली‌ है 
भीड़ में भी बिन तेरे लगता सब खाली-खाली है
जानां सजाओ ना वही अदालत इक बार फिर से 
पूर्णिमा की रात भी अब तो लगती मुझे काली है

इस घनी काली रात में आकर  तुम रोशनी करदो ना 
  उगा न्याय का दिनकर जीवन में उजियारा करदो ना 
ये रूठना ,रोना,बिछड़ना सब मेरे हिस्से की गलती हैं
मान रहा सब गुनाह मैंने किए,अब तो माफ करदो ना

©Poetic kumar #alone

11 Love

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