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praveshkhareakas4149
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Pravesh Khare Akash

I m a lawyer and poet,scriptwriter

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Pravesh Khare Akash

A suger coated personality is always harmful...never rely on that.

©Pravesh Khare Akash #dilemma
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Pravesh Khare Akash

#NaseebApna
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Pravesh Khare Akash

पत्थर तमाम फेंको मेरे ऊपर,
मुझे कोई गुरेज़ नहीं मेरे रहबर
फकत याद रहे तुमको ये साहेब,
इस आईने में अक्श तुम्हारा भी है।।
...आकाश

©Pravesh Khare Akash #Stars
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Pravesh Khare Akash

फिराके तक़दीर क्या है देखिये,
बंद मुट्ठी लकीरे तकदीर यहां है देखिये।

अजब सन्नाटा है वक्त की महफिलों में,
मचा क्या शोर भीतर यहां है देखिये।।

फसले शोहरत बिक चुकी मंडी में है देखिये,
बचा क्या मुनाफा खाली जेब यहां है देखिये।।

गुजार दिया रास्तों में सफर जिंदगी का है देखिये,
मंजिल ठहरी कहां है रास्ता अभी बाकी यहां है देखिये।।

दीद सुलग उठी ख्वाबों की राख से है देखिये
नर्म दूब भी चुभ रही दरख़्त को क्या फिज़ा है देखिये।।

ऐब ओ गुनाह शामिल फनकारी में हैं देखिये,
आंसुओं का कोई मोल नहीं बूंद शबनमी यहां है देखिये।।

बह रहा हर सिम्त लहू किरदार का यहां है देखिये,
आईना हर हाथ में "आकाश"महफूज यहां है देखिये।।
....  पी एस खरे "आकाश"

©Pravesh Khare Akash #SunSet
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Pravesh Khare Akash

फिर रात गुफ्तगू करने बैठी सितारों से,
सभी खामोश हो बैठे चांद आ जाने से।।
...आकाश

©Pravesh Khare Akash #Lumi
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Pravesh Khare Akash

धुआं(लघुकथा)
कमरे में पैर रखते ही विनय ठिठक गया।दीवार की तरफ मुंह कर के बैठा हुआ अजय धुएं के छल्ले में न जाने कहां उलझा हुआ गुम था और कमरे में धुआं ही धुआं भरा हुआ था।
 " ये क्या हाल बना रखा है", विनय ने अजय से कहा। तब वह घूमा और सुर्ख आंखों की फीकी हँसी के साथ बोला," आओ देखो ये छल्ले भी तो मेरे ख्यालों से लगते हैं।"
 "नहीं,ये तुम्हारे मन का गुबार है जो अंदर बाहर नाच रहा है।ये धुआं तुम्हें भी ऐसे ही बेवजूद कर देगा।"विनय ने कहा।
 "तू जा यार, मुझे यहीं रहने दे।ये धुआं ही अब मेरी पहचान है"।अजय ने झीकते हुए निराशा के साथ कहा।
  "नहीं दोस्त..." कहते हुए विनय ने उसके मुंह में दबी हुई सिगरेट निकाल कर ऐश ट्रे में मसल दी और बंद खिड़की के दरवाजे भी खोल दिए।कुछ ही देर मे उसने अजय से कहा"अब बता कहां है धुआं....तेरी पहचान तो उड़ गई।"
अचानक अजय उठा और ऐश ट्रे के साथ ही सिगरेट की डिब्बी भी डस्टबिन में डाल कर विनय के गले लग गया और अंदर का धुआं आंसू की शक्ल में बाहर निकलने लगा।
पी एस खरे "आकाश"

©Pravesh Khare Akash #dilemma
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Pravesh Khare Akash

बड़ी महंगी हो गई इस दौर में सांसों की आवाजाही,
 गजब कलेजा है आपका लबों पे हंसी ढूंढते हैं।

©Pravesh Khare Akash #Sea
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Pravesh Khare Akash

गुरुर औ नुमाइश करते रहे वो तस्वीरों में,
गरीब निवाला खोजता रहा जूठी पत्तलों में।।

वो आबरू थी गरीब की जिस्म छुपाती रही चिथड़ों में,
लाडली किसी रईस की हुस्न दिखाती रही तस्वीरों में।।

बेआवाज कलम शोर मचा कर सो गई अखबारों में,
 न पहुंची सूखी आतों की कराहें दर हुक्मरानों के।।

वो जंगे मैदान में जीते मरते रहे अपनी शानो के लिए,
इंसानियत रोती रही मुंह छिपाए कहीं जीने के लिए।।

आग कहां कम थी अना जलाने को किसी सीने में,
घर जला गया ख्वाबों के कोई जिंदगी बिताने में।।

न फन न अदा है मेरे किस्सों के शामियाने में,
मसरूफ हूं मैं  गम गलत करने में जमाने के ।।

पता नही मेरे ख्वाबों के दरीचे का डाकखाने में,
मैं गुम हूं "आकाश"वक्त की तस्वीर सजाने में।।
... पी एस खरे "आकाश"

©Pravesh Khare Akash #Nofear
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Pravesh Khare Akash

बूंद बूंद पी जाऊं,खाली कर दूं नैनों के प्याले को,
हर पथ पे खोजा तुमको,तुम मिले न किसी पग मुझसे।।

स्मृतिवन में पाया मैंने,तुमको ठहरी तरुवर छाया सा,
तुम ही आधार मेरा,किंतु दूर दिखे सदा पहरों सा।।

होता कैसे संभव मिलना,मैं "आकाश" मिला झुलसा सा,
काल के पग बड़े निकले,आशाओं का दीप क्षण भंगुर सा।

माथे लगा लूं यादों को,गले लगा लूं तुम्हारी बातों को,
पल पल झुलसाऊं में स्वयं को,स्मृति दीप ये जलाने  को। 

अब गीत लिखूं उन मौन संवादों के,शब्द शब्द संजोए जो,
चित्र उकेरूं संग तुम्हारे अपना, देखो मैं लहरों के सीने पे।

...  "आकाश"

©Pravesh Khare Akash
  लहरों के सीने पे

लहरों के सीने पे #कविता

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Pravesh Khare Akash

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Akash

©Pravesh Khare Akash #Searching
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