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leelanarayan2327
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Leela Narayan

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Leela Narayan

White असंतुष्ट हृदय मेरा कुछ व्यथित सा लगता है 
मैं चिंतित मेरे भूत, भविष्य और वर्तमान से इस अज्ञात में उलझ रहीं हूं .....
ब्राम्हण की किसी जादुई टोपी से बाहर आकर इस अज्ञात मायाजाल में फंस गयी हूं....
अब असहनीय लगता है अपने आस-पास का वातावरण जिसमें श्वास तक लेना असंभव सा लगता है......
मैं ख़फ़ा रहीं हूं खुद को किसी ज्वर अग्नि में...
मैं शेष नहीं हूँ किसी पंचतत्व के कण में 
मैं ठहर गयी हूँ किसी रुके हुए पानी की तरह जो स्वयं में ही नष्ट हो जाता है.....
मैनें देखी है दुनिया की वह नजर, जो क्षण प्रति क्षण निगरानी रखती है मुझे पर......
उलझ गयी हूँ खुद मे, निराशा में और अंधेरी गुफाओं के किसी अदृश्य खंडहर में जहां से सिर्फ मुझे दूसरों की परछाईया ही दिखाई देती है.....
मैं थक रहीं हूँ, खुद में ही बिना परिश्रम के 
असमर्थ हूं मैं कुछ भी समझ पाने में 
मैं समय के काल चक्र में पहेली बनकर रह गयी हूँ 
मेरा आज ही मुझे आहत करता ,प्रतिक्षण मुझ पर प्रहार करता 
मैं रुकी जा रहीं हूँ, मैं असंतुष्ट हूँ अपने वर्तमान से......
मुझे बदलाव चाहिए खुद में......

©Leela Narayan #Sad_Status
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Leela Narayan

Unsplash मैं कह रहीं हूं कि मैं सबसे बुद्धिमान स्त्री हूँ, जिसे कुछ नहीं आता 
प्रकृति पहेलियों से भरी पड़ी है, क्या यही कहा है मैंने, नहीं मैं एसा नहीं कह रहीं हूं, मैं तो आकाश के सितारों की बात कर रहीं हूं....
जिसके बारे मे लाखो करोड़ों कल्पनाऐ मानव कर चुका है......
क्या कह रहीं हूँ मैं, क्या समझ पा रहा है कोई........
हूं भरी मैं रहस्य ही रहस्यो से , तुम चाहकर भी नहीं समझ पाओगे 

इतरा रहा मानुष, कर अनगिनत खोखली कल्पनाएं मन मे अपने 
है भूल चुका वह यह कि वास्तव में तो वह नर वानरों की एक उपप्रजाति मात्र है....
मैं कह रहीं हूं कि मैं इस ब्रह्मांड का एक तुच्छ तिनका तक नहीं हूँ 
मेरा अस्तित्व ही क्यूँ है, ये खोज रहीं हूं मैं और पूछ रहीं हूं तुमसे, कौन
हो तुम ,जो तिनके के बराबर न होकर भी इतरा रहे हों स्वयं पर 
बेशक नहीं करती हस्तक्षेप तुम्हारे किसी तार्किक दृष्टिकोण पर 
मैं तो सिर्फ खुद मे, खुद को समझ रहीं हूं....

तुम भूल गए खुद को, जो तुम कल्पनाओ की मौलिकताऔ में जिए जा रहे हो....
मैं कह रहीं हूं कि इतिहास समझ नहीं पा रहे हो तुम, जहाँ एक पीढ़ी बुढ़ी होती है और दूसरी इतिहास बनाने फिर उत्पन्न हो जाती है उसी बेबुनियाद मस्तिष्क के साथ जो पुरानी पीढ़ी द्वारा तुम्हें प्रदान किया गया है......तुम नहीं जानना चाहते पीछे छूट गया कोई कारण 

क्या समझ पाए हो कुछ, मैं कह रहीं हूं कि अब शेष नहीं हूँ मैं 
मैं ठहर गयी हूँ,...........leela Narayan ✍️

©Leela Narayan #library
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Leela Narayan

New Year 2024-25 कुछ इस तरह निकल गया ये साल, 
थोडा हमने सहन किया, थोडा वक्त पर छोड़ दिया 
कुछ रातें प्रकाशित थी, कुछ दिन अन्धकार से भरे 
कुछ सपने सजे थे, कुछ नींद खुलते ही टूटते गए. 
थोडे हम बुरे थे, तो थोडा समय ने बना दिया
 कुछ चन्द पलों का सफर था 2024,.... कुछ पलक झपकते ही निकल गया.
ना कुछ पाया, ना कुछ खोया, कुछ चाहने के माने थे और कुछ सपने शुरू हुए थे. 
कुछ पराए अपने थे, तो कुछ अपने पराए.....
किसी ने घर छोडा था, तो किसी का घर बसा था
दुख सुखेन जैसे तैसे दिन गुजरते गए...
कुछ उदासियों के बूते, तो कुछ खामोशियों के सहारे
कुछ नहीं, बहुत कुछ था पाने के लिए, फिर कुछ हम काबिल नहीं थे, 
तो कुछ संघर्ष इतना दम नहीं था......
बहुत लिखा साल -ए - सैलाब कभी पेन की स्याही से ,
तो कभी आंखों के आंसुओं से
कुछ हम बहें भावनाओं में, तो कुछ अन्दर ही दफना दी.....
यूं आंसुओं का सैलाब, तूफान में तब्दील ना होने दिया 
कुछ हम सहनशील थे, तो कुछ प्रकृति ने बना दिया 
कुछ प्रयास सफल रहे, तो कुछ सफलता के मायने खो बैठ
 यूं ही गुजरा जा रहा है वक्त ,ना हम होश में है, ना ही बेहोश.....
कुछ सोए हुए है नींद में, तो कुछ जागती आँखो से सपने देख रहे है.
कुछ उम्मीद बाकी है, तो कुछ  निराशा सी छाई हुई है.
दिन जैसे-जैसे गुजरे बहुत लिखा खुद को ,कहानी का किरदार समझ
 अब खुद को एक कहानी लिख देने की काबिलियत जुटाने की तैयारी में लगा रही है...
कुछ समय ने ठान ली है बुरा रहने की, 
कुछ मैंने ठान ली है, इसे बदलने की.....

©Leela Narayan #NewYear2024-25
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Leela Narayan

a-person-standing-on-a-beach-at-sunset क्षणिक पल के हर पल में साथ रहीं हूं मैं खुद के ही 
तिनका तिनका सहेजकर शिला सा कोमल हृदय बनाया है मैंने 
इसलिए जो कुछ है मेरा, मुझे खुद से ज्यादा प्यारा है 
ये गर्वित गरीबी, ये गंभीर अनुभव, यह दृढ़ता और मेरे भीतर की सरिता,सब जाग्रत है, सब मौलिक है 
इन सब में भी अपलक राह देख रहीं हूँ तुम्हारी 
क्यूँकी सब में तुम्हारा ही सम्वेदन है, 
भीतर मैं और ऊपर तुम, ज्यों मुस्काता चांद धरती पर रातभर 
त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा मुझ पर 
मैं दक्षिणी ध्रुव की अन्धकारमयी अमावस्या,
तुम मुझसे परिवेष्टित आच्छादित उजियारा 
इसलिए जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है .....
अक्षम, कमजोर होती आत्मा मेरी, भवितव्यता से छटपटाती है 
उस बीच तुम्हारा बहलाना, सहलाना और तुम्हारी आत्मीयता
तुम्हारा हर प्रयास मुझे बर्दाश्त होता है 
मैं विद्यमान धुएँ के बदलो में, 
अंधेरी पाताली गुहाओ के विवरो में लापता, 
लापता कि वहां भी तो तुम्हारा ही सहारा है, 
जो होता सा लगता है, होता सा सम्भव है, 
सब तुम्हारे ही कार्यो का परिणाम है,अब तक तो मैं जो भी हूँ 
मेरे पास जो कुछ है, सब तुम्हारा ही तो है 
इसलिए कि जो कुछ मेरा है, वह तुम्हें प्यारा है

©Leela Narayan #SunSet #me #alone #स्ट्रगल

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