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Ramandeep Kaur

#tales कहानी :- विद्या दान 📝 देश भक्ति का अर्थ हथियार लेके बॉडर पर लड़ना ही है क्या? र्कान्ति का मतलब नारेबाज़ी और अनशन है क्या? ये तो जज #Books

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 #Tales 
कहानी :- विद्या दान 📝

देश भक्ति का अर्थ हथियार लेके बॉडर पर लड़ना ही है क्या? र्कान्ति का मतलब नारेबाज़ी और अनशन है क्या? 
ये तो जज

Pooja Singh Rajput 🎓

कुछ तस्वीरों में खाकी वर्दी इन पैदल चल रहे मजदूरों को सजा देती नजर आई। सच है, इन मजदूरों ने कानून तो तोड़ा ही था... सच में... भूखे पेट किसी

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आजादी के सात दशक से ज्यादा समय बीतने के बाद भी मजदूर रेल की पटरियों पर बेमौत मारे जाने के लिए मजबूर हैं। किसी को जवाब मिले तो बताइएगा। तब तक के लिए कबीर की कुछ पंक्तियां...
साधो यह मुरदों का गांव!
पीर मरे, पैगम्बर मरि हैं,
मरि हैं जिंदा जोगी,
राज मरि है, परजा मरि है
मरि हैं बैद और रोगी।
साधो ये मुरदों का गांव!
: आप कोरोना से डर रहे हैं, हमें भूखे पेट का दर्द डरा रहा था। रेल की पटरियों पर 16 मजदूरों की क्षत-विक्षत लाशें, सभ्य समाज से जवाब मांग रही हैं। जवाब उनकी बिरादरी के बच्चों के पांवों में पड़े छालों का, जवाब उनके बुजुर्गों की अकड़ी पीठ का... जवाब उनके भूखे पेट का... जवाब उनके प्यासे कंठ का... और हां जवाब रेल की पटरियों पर बिखरे उनके शरीर का।

जवाब... जो जहां है वहीं रुका रहे लॉकडाउन है।
" जाके पांव न फटी बिवाई वह क्या जाने पीर पराई"

.... 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के बाद 25 मार्च को पूरे देश में लॉकडाउन लगा दिया गया। चलती दुनिया के पहियों को थम जाने के लिए निर्देशित किया गया। यह सुनते ही देश की राजधानी दिल्ली में मजदूर घरों में लॉक होने की जगह बाहर निकल आए। सड़कों पर भीड़ ही भीड़ जमा थी। सभी को कोरोना का नहीं घर पहुंच जाने का डर खाया जा रहा था। सोशल डिस्टेंसिंग के समय सड़क पर सिर्फ सिर ही सिर नजर आ रहे थे। लिखी पंक्तियों को फिर ध्यान से पढ़िए, मजदूर घरों में लॉक हो जाएं। क्या सच में परदेस में उनके पास कोई घर था? वे काम करने परदेस आए थे। किसी तरह ठिकाना ढूंढ रखा था... सिर छिपाने का। अब जब रोज की कमाई नहीं तो सिर छिपाने का यह ठिकाना बचना ही ना था।

अब जब रेल बंद-बसें बंद तब... ये मजदूर हैं। हमेशा भरोसा इन्हें अपने सख्त हो चुके हांड-मांस पर ही था... इसलिए पैदल ही निकल चले अपने घर की ओर। लॉकडाउन के तुरंत बाद से जगह-जगह से खबरें आती गईं... कामगर लोगों अपने पैरों की मदद से सैकड़ों-हजारों किलोमीटर की दूरी नापने निकल चुके हैं। लॉकडाउन के दो-तीन बाद ही मार्मिक खबरें आने लगी। छोटे-छोटे बच्चों के सिर पर भारी बोझ था, पांवों में छाले। अपने बुजुर्गों को किसी टोकनी नहीं खुद के शरीर पर लादे कई श्रवण कुमार दिखे। कई गर्भवती महिलाएं एक पेट में एक गोद में बच्चा लिए चलते दिखीं। बेबसी की तस्वीरें हर ओर से नुमाइंदा होने लगी। अभी दो दिन पहले ही तो तस्वीर आई थी धुले से अलीगढ़ के लिए निकले परिवार के दिव्यांग बुजुर्ग की पीठ पर छाले हो गए थे। परिवार के बच्चे उनकी व्हीलचेयर धकेल रहे थे।

-pooja singh rajput✍ कुछ तस्वीरों में खाकी वर्दी इन पैदल चल रहे मजदूरों को सजा देती नजर आई। सच है, इन मजदूरों ने कानून तो तोड़ा ही था... सच में... भूखे पेट किसी

Anamika Nautiyal

My First long drive on Scooty स्कूटी चलाना काफी पहले सीख एक गई थी मगर मेरे साथ हुई एक दुर्घटना ने मुझे वाहनों से बहुत दूर कर दिया था ।बह

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My first long drive on Scooty  My First long drive on Scooty 


 स्कूटी चलाना काफी पहले सीख एक गई थी मगर मेरे साथ हुई एक दुर्घटना ने मुझे वाहनों से बहुत दूर कर दिया था ।बह
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