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Priyanka Sharma
#न्यायाधीश# खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। मेरी कमियां गिना,खुद को सर्वश्रेष्ठ आंकते हो, सच कहूं तो,हंसी आती हैं और तरस भी, क्योंकि दोहरी शख्सियत रखते हो तुम। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। अपनी धूर्त्तता और झूठ को,होशियारी समझते हो तुम, पर मुझे हताश करते रहने की कोशिश में, खुद ही उलझते रहते हो तुम। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। मेरी सोच की गहराई का आकलन कर सको, तुम्हारी संकीर्ण मानसिकता की उतनी बिसात नही। दूसरों के विचारों, गुणों के मापदंड के मानक बने बैठे तुम, पहले अपने वक्त को जी लो,क्योंकि दो पल की है ज़िंदगी। समय के पहियों को उल्टा घूमाने कि किसी की औकात नही। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। दूसरों के हुनर और परिपक्वता पर उंगली उठाने वाले, बालों की सफेदी पर अगर बुद्धिमता की परख होती तो, लोगों में प्रतिभा नही बुजुर्गियत ही दिखती। जिसने अपने जीवन का लेखन खुद किया हो, उसे क्या आंक सकोगे तुम। भीतर एक शांत समंदर है, दृष्टि वाले नेत्रहीन ,उसमे क्या झांक सकोगे तुम। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। मुश्किल लहरों के थपेड़ों ने मुझे तैरना सिखाया है। तुम क्या मेरे मार्गदर्शक करोगे? मेरे हौसले ने खुद ही अपने पंखों को फैलाकर, मुझें उड़ना सिखाया है। दिखावटी प्रेम को परिभाषित कर, अपनी खोखली बुद्धि के परिचायक हो तुम। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। सोचते हो तुम्हारी कुटिल मुस्कान से अनभिज्ञ हूं मैं। तुम्हारी बातों में उतना वजन नहीं, सहूलियति झूठी बातों से खेलने वाले,क्यों यकीं करु तुम्हारा?, तुम संत तो हो नहीं,जहां सब बातें सही हो, तुम्हारी वाणी ही तो हैं बस, कोई भजन नही। खुद की लाखों गलतियों के अच्छे वकील हो तुम। कोशिशें बेकार तुम्हारी,इनसे न कोई चुभन महसुस होती, न उठती कोई टीस।।२।। इतनी महत्ता नही तुम्हारी मेरे जीवन में, अपने विचारों, हूनर, उसूलों के लेखन जोखन का, परीक्षक बताकर, तुम्हें बना दूं,अपने जीवन का न्यायाधीश! ©Priyanka Sharma # न्यायाधीश
Rahul Shastri worldcitizens2121
ईश्वर और न्यायाधीश March 13,2020 मैं उस ईश्वर के बारे मैं जानने को अतिउत्सुक हूँ जिसने 100% सन्तोष जनक न्यायाधीशों की स्थापना की हो! जो न्यायाधीश सम्राटों/देवताओं को भी को तुरंत स्थायी मृत्युदंड देता हो। जिसका न्याय समय के पैमाने पर भी सबसे सही प्रमाणित होता हो और समय के परे भी। जो 9 ग्रहो के स्थाई ठेके को भी नष्ट करता हो औऱ देवताओं और भगवान के स्थाई अमरता के अधिकार को भी। राहुल शास्त्री discoverhiddennectar@gmail.com ईश्वर औऱ न्यायाधीश
Jitendra Kumar Som
सियार न्यायधीश किसी नदी के तटवर्ती वन में एक सियार अपनी पत्नी के साथ रहता था। एक दिन उसकी पत्नी ने रोहित (लोहित/रोहू) मछली खाने की इच्छा व्यक्त की। सियार उससे बहुत प्यार करता था। अपनी पत्नी को उसी दिन रोहित मछली खिलाने का वायदा कर, सियार नदी के तीर पर उचित अवसर की तलाश में टहलने लगा। थोड़ी देर में सियार ने अनुतीरचारी और गंभीरचारी नाम के दो ऊदबिलाव मछलियों के घात में नदी के एक किनारे बैठे पाया। तभी एक विशालकाय रोहित मछली नदी के ठीक किनारे दुम हिलाती नज़र आई। बिना समय खोये गंभीरचारी ने नदी में छलांग लगाई और मछली की दुम को कस कर पकड़ लिया। किन्तु मछली का वजन उससे कहीं ज्यादा था। वह उसे ही खींच कर नदी के नीचे ले जाने लगी। तब गंभीरचारी ने अनुतीरचारी को आवाज लगा बुला लिया। फिर दोनों ही मित्रों ने बड़ा जोर लगा कर किसी तरह मछली को तट पर ला पटक दिया और उसे मार डाला। मछली के मारे जाने के बाद दोनों में विवाद खड़ा हो गया कि मछली का कौन सा भाग किसके पास जाएगा। सियार जो अब तक दूर से ही सारी घटना को देख रहा था। तत्काल दोनों ही ऊदबिलावों के समक्ष प्रकट हुआ और उसने न्यायाधीश बनने का प्रस्ताव रखा। ऊदबिलावों ने उसकी सलाह मान ली और उसे अपना न्यायाधीश मान लिया। न्याय करते हुए सियार ने मछली के सिर और पूँछ अलग कर दिये और कहा - "जाये पूँछ अनुतीरचारी को गंभीरचारी पाये सिर शेष मिले न्यायाधीश को जिसे मिलता है शुल्क।" सियार फिर मछली के धड़ को लेकर बड़े आराम से अपनी पत्नी के पास चला गया। दु:ख और पश्चाताप के साथ तब दोनों ऊदबिलावों ने अपनी आँखे नीची कर कहा- "नहीं लड़ते अगर हम, तो पाते पूरी मछली लड़ लिये तो ले गया, सियार हमारी मछली और छोड़ गया हमारे लिए यह छोटा-सा सिर; और सूखी पुच्छी।" घटना-स्थल के समीप ही एक पेड़ था जिसके पक्षी ने तब यह गायन किया - "होती है लड़ाई जब शुरु लोग तलाशते हैं मध्यस्थ जो बनता है उनका नेता लोगों की समपत्ति है लगती तब चुकने किन्तु लगते हैं नेताओं के पेट फूलने और भर जाती हैं उनकी तिज़ोरियाँ।" ©Jitendra Kumar Som #KiaraSid सियार न्यायाधीश
Shiv
मुन्सिफ़ हो अगर तुम तो कब इंसाफ़ करोगे मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते मुंशिफ़-न्यायाधीश #urdupoetry #CityEvening
@aliwriters_
रहज़न है मेरा रहबर मुंसिफ है मेरा क़ातिल|| कह दूँ तो बग़ावत है सह लूँ तो क़यामत है..! رہزن ہے میرا رہبر منصف ہے میرا قاتل|| کہ دوں تو بغاوت ہے صہ لوں تو قیامت ہے..! Rahzan hai mera Rahbar Munsif hai mera qaatil|| Kah dun to Bagawat hai Sah lun to qayamat hai..! ~Foundation_of_Rekhta रहजन = चोर या लुटेरा रहवर = रक्षक मुंसिफ़ = न्यायाधीश Judge
SATENDRA DWIVEDI
Sudha Tripathi
न्यायोचित निर्णय तक पहुंचने के लिए कई बार न तो न्यायालय की जरूरत होती है, न ही न्यायाधीश की। आत्म निरीक्षण की प्रक्रिया अगर ईमानदारी से निभाई जाए तो अपनी अंतरात्मा से बढ़कर कोई न्यायाधीश नहीं न तो किसीको दिखाने की जरूरत है न ही समझाने की..... ©Sudha Tripathi न्यायोचित निर्णय तक पहुंचने के लिए कई बार न तो न्यायालय की जरूरत होती है, न ही न्यायाधीश की। आत्म निरीक्षण की प्रक्रिया अगर इमानदारी स
Appu Keshari
Prerit Modi सफ़र
हमें बताया गया था कि हर हाल न्याय होगा हमें कहाँ पता था कि मुंसिफ़ ही क़ातिल होगा हमें बताया गया था, यही जताया गया था... मुंसिफ़- judge, न्यायाधीश #बतायागयाथा #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuot