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Pushpendra Pankaj
जाग जरा ------------- जीवित रहते, माँ बाप का उपेक्षा, समय बीतने पर,भूलों की समीक्षा, धनी,ऊँचा ओहदा,रिश्वत की भिक्षा विद्यार्थी जीवन किंतु,अधूरी शिक्षा निष्क्रिय जीवन,अच्छे की अपेक्षा साधु संत बनना ,बिना लिए दीक्षा सफलता पाना,बिना दिए परीक्षा, कल्पना लोक में बनाना उत्प्रेक्षा, झूठ,ठगी,पापाचार,सुफल की प्रतीक्षा मिलनी तय है-घट-घट उपेक्षा ।। पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj जाग जरा
जाग जरा #कविता
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होंसले से सामना कर,डर के ना भाग रे! कल्पना लोक छोङ दे,नींद से तो जाग रे! अच्छा अच्छा सोच-भूल बीते बैराग रे ! क्रोध को संभाल,ऊर्जा है अंत:आग रे! बात करो जोङने की,बढ़े प्रीति-अनुराग रे! परिश्रम से बन सकेंगे,तेरे बिगङे भाग्य रे ! एक बार गाकर सुना,प्रेरक कोई राग रे ! झूठ,फरेब ,दारू,जूआ,कर परित्याग रे ! अपना देशी खाना,सादा रोटी-गुङ-साग रे! पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj #Raftaar जाग रे