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Anant Nag Chandan

पाँव में पाज़ेब है या ज़ंजीर उसकी, वो मुझसे मिलने क्यूँ नहीं आती। राह तकता हूँ मैं हर शब बेचैनी से, कमबख़्त ख़्वाबों में भी नहीं आती।

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पाँव में पाज़ेब है या ज़ंजीर उसकी,
वो मुझसे मिलने क्यूँ नहीं आती।

राह तकता हूँ मैं हर शब बेचैनी से,
कमबख़्त ख़्वाबों में भी नहीं आती।

अनंत

©Anant Nag Chandan पाँव में पाज़ेब है या ज़ंजीर उसकी,
वो मुझसे मिलने क्यूँ नहीं आती।

राह तकता हूँ मैं हर शब बेचैनी से,
कमबख़्त ख़्वाबों में भी नहीं आती।

theABHAYSINGH_BIPIN

#बंदिशेंऔरख्वाब बंदिशें और ख्वाब दिन कट जाते हैं हंसते-गाते, कटती नहीं हैं ये लंबी रातें। उसके ख्वाबों में जागता रहता हूं, पर साथ देती नहीं

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बंदिशें और ख्वाब

दिन कट जाते हैं हंसते-गाते,
कटती नहीं हैं ये लंबी रातें।
उसके ख्वाबों में जागता रहता हूं,
पर साथ देती नहीं हैं सांसें।

याद आती हैं उसकी बातें,
पर अब धीमी हैं ज़ज़्बातें।
मैं बुलाने की कोशिश करता हूं,
पर सुनती नहीं वो मेरी बातें।

कितना लंबा वक्त गुज़र गया,
देखे बिना सूनी हैं ये आंखें।
किसी बहाने से ही आ जाओ,
तुमसे करनी, तुम सी बातें।

कितने दूर चली गई हो तुम,
और कब से सुनी मेरी ये बाहें।
प्यार न सही, लड़ने ही आओ,
तेरे बिना भारी रहती हैं आंखें।

नहीं जानता कितना कसूर था,
सुकून न सही, देने आओ तकलीफें।
सज़ा मुकर्रर करने ही आ जाओ,
लेकर आना तुम  वक्त सी ज़ंजीरें।

क्या पता आज़ाद हो जाऊं,
और खत्म हो जाए मेरी बंदिशें।
छुपा कर रखूंगा जख्म सारे,
तुम लेकर आना अपनी शमशीरें।

©theABHAYSINGH_BIPIN #बंदिशेंऔरख्वाब
बंदिशें और ख्वाब

दिन कट जाते हैं हंसते-गाते,
कटती नहीं हैं ये लंबी रातें।
उसके ख्वाबों में जागता रहता हूं,
पर साथ देती नहीं

theABHAYSINGH_BIPIN

दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे, जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे। खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा, पड़ी ज़ंजीरों से ख़

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दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे,
जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे।
खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा,
पड़ी ज़ंजीरों से ख़ुद को कब तक बाँधोगे।

वक़्त के साथ बेहिसाब ग़लतियाँ की हैं तुमने,
सलाखों के पीछे ख़ुद को कब तक छुपाओगे?
जो कभी साथ छांव सा था, वह अब छूट गया,
आख़िर खुद से ये जंग कब तक लड़ोगे।

लोग माफ़ी देते हैं एक-दूसरे को अक्सर,
आख़िर तुम खुद को कब तक सताओगे।
रिहाई जुर्म से नहीं मिलती, यह तो मालूम है,
आख़िर ग़लतियों पर कब तक पछताओगे।

प्रकृति में सूखी डालें भी बहार में पनपती हैं,
खुद को सहलाने का वक़्त कब तक टालोगे।
वक्त हर नासूर बने ज़ख्मों को भी भरता है,
आख़िर ज़ख्मों को भरने से कब तक डरोगे।

©theABHAYSINGH_BIPIN दुखों का घड़ा सिर पर रख कब तक घूमोगे,
जज़्बातों से भरा है दिल तेरा, कब बोलोगे।
खुद की बंदिशों में दम अब घुट रहा है मेरा,
पड़ी ज़ंजीरों से ख़
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