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Poet Shivam Singh Sisodiya
जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ || {SrimadBhagwadgeeta 4.9} भावार्थ हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | SrimadBhagwadgeeta 4.9 जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोSर्जुन || ९ || जन्म – जन्म;
Divyanshu Pathak
इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः! सर्गेअपिनोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च !! :कृष्ण बोले-😊 ज्ञान का आश्रय पाकर ही मेरे स्वरूप को जाना जाता है। ज्ञान के सहारे से ही स्वयं को समझा जाता है । ज्ञान प्राप्त करने से ही मेरे स्वरूप को पाया जाता है । ज्ञान से ही उत्तपत्ति और विनाश से दूर रहा जाता है । गी. अ.-14/02 : 1.ज्ञानार्जन कर स्वयं को जान और मेरे स्वरूप को प्राप्त कर । या 2.मुझ पर पूरी तरह आश्रित हो समर्पण भाव(मन कर्म वचन)से मुझे प्राप्त कर ! जिस रहस्य के बारे में तुमने पूछा वह ये दोनों मार्ग ही तो हैं । : इस रहस्य को मेरे अलावा और कौन जानता है तू जानना चाहता है ना तो सुन -----😊☺ आदिकाल से सूर्य,सूर्य से वैवश्वत मनु मनु से इच्छवाकु,इच्छवाकु से राजऋषियों ने इस ज्ञान को जाना ऋषि ,महर्षि,मनीषियों ने समझा इसी तरह यह ज्ञान परम्परागत तरीके से वितरित होकर अनन्य प्रेम भक्ति से कर्मयोग से पूण्यशील ब्राह्मण,और मुझे समझने की लालसा रखने वाले सभी प्रबुद्धजन के पास स्थित है । उनके सानिध् में शिष्य बनकर प्राप्त किया जाता है । 💕🐇☕🐦☕ 💕🐇#ज्ञान🐇🐦#भक्ति☕☕🍫#संस्कार🍵#वैराग्य🍵#अध्यात्म🍵☕🐦#योग💕🐿🐇🐦☕🍫🍵☕🐦 कृष्ण बोले अर्जुन तेरे प्रश्नों का उत्तर मैंने दे दिया है । ज्ञान, ध्यान और क