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Shivkumar
देवी सिद्धिदात्री सिद्धिदात्री हैं नवम, माँ दुर्गा अवतार I अभिलाषा पूरी करें, देवी बारम्बार II . कल्याण हेतु ही रखा, सिद्धिदात्री नाम I विधि विधान से सब करें, पूजन के हर काम II . शिव के आशीर्वाद से, अष्ट-सिद्धि कीं प्राप्त I धन-बल-यश से युक्त माँ, चहुँदिश में हैं व्याप्त II . माँ का आसन है कमल, रहती सिंह सवार I चक्र, गदा कर दाहिने, करे दुष्ट संहार II . शंख, कमल धारण किए, अपने बाएँ हाथ I शांति, धर्म, सत्कर्म का, देवी देती साथ II . दान नारियल का करें, काला चना प्रसाद I देवी को प्रिय बैंगनी, इसमें नहीं विवाद II . सिद्धिदात्री साधना, जो भी करता संत I कुछ रहता अगम्य नहीं, करे अवरोध अंत II . शिव के अर्द्ध शरीर में, शामिल देवी मान I जागृत बोध असारता, जो भी करता ध्यान II . देवी मंगल दायिनी, शिव का यह वरदान I सभी कार्य में सफलता, भक्तों करे प्रदान II . पूजन में अर्पित करें, मधु, फल-पुष्प सुगन्ध I देवी भक्तो प्रति रखे, प्रेमपूर्ण सम्बन्ध II ©Shivkumar #navratri #navaratri2024 #navratri2025 #नवरात्रि #Nojoto देवी सिद्धिदात्री सिद्धिदात्री हैं नवम, #माँ दुर्गा अवतार I अभिलाषा पूरी करे
Mahadev Son
White जीवन की परिभाषा चार लक्ष्यों को प्राप्त करना धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष धर्म - सदाचार, उचित, नैतिक जीवन काम - चारों लक्ष्यों को पूर्ण करना है अर्थ - भौतिक समृद्धि, आय सुरक्षा, जीवन के साधन इन तीनों के लिये सभी निरंतर प्रयास करते... मोक्ष के लिये सोचते भी नहीं क्योंकि मुश्किल या मालूम ही नहीं.... मोक्ष - मुक्ति, आत्म-साक्षात्कार। जीवन की अंतिम परिणति है। मोक्ष आत्मा को भौतिक संसार के संघर्षों और पीड़ा से मुक्त करता है! आत्मा को जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के अंतहीन चक्र से मुक्त करता है! ©Mahadev Son जीवन की परिभाषा चार लक्ष्यों को प्राप्त करना धर्म, काम, अर्थ और मोक्ष धर्म - सदाचार, उचित, नैतिक जीवन काम - चारों लक्ष्यों को पूर्ण करना ह
Shaarang Deepak
Mahadev Son
आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी जन्म मन का, मरण तन का हुआ यही जीवन चक्र सृजन हुआ जिसका नष्ट भी होना तय उसका सफर यही तक ये तेरी ही भूल थी त्याग देगा, भर जायेगा, मन इस तन से मन तो अज़र है बस कर्मों पे निर्भर है कर्म अच्छे होंगें जितने तन पायेगा वैसा जैसे जेब में पैसे होते वैसे वस्त्र खरीदता तू गणित यहाँ माया का वहाँ कर्मों का हिसाब किताब जैसा वैसा तन पायेगा भोगेगा क्या फिर से मन को भी न मालूम वर्ना छोड़ता न कभी इस तन को ©Mahadev Son आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी जन्म मन का, मरण तन का हुआ यही जीवन चक्र सृजन हुआ जिसका नष्ट भी होना तय उसका सफर यही तक ये तेरी ही भूल थी त्याग द