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Jashvant
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं 'फ़राज़' अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं जुदाइयाँ तो मुक़द्दर हैं फिर भी जान-ए-सफ़र कुछ और दूर ज़रा साथ चल के देखते हैं रह-ए-वफ़ा में हरीफ़-ए-ख़िराम कोई तो हो सो अपने आप से आगे निकल के देखते हैं तू सामने है तो फिर क्यूँ यक़ीं नहीं आता ये बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफ़िल में जो लालचों से तुझे मुझ को जल के देखते हैं ये क़ुर्ब क्या है कि यक-जाँ हुए न दूर रहे हज़ार एक ही क़ालिब में ढल के देखते हैं न तुझ को मात हुई है न मुझ को मात हुई सो अब के दोनों ही चालें बदल के देखते हैं ये कौन है सर-ए-साहिल कि डूबने वाले समुंदरों की तहों से उछल के देखते हैं अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं बहुत दिनों से नहीं है कुछ उस की ख़ैर-ख़बर चलो 'फ़राज़' को ऐ यार चल के देखते हैं ©Jashvant Gazal by Ahmad Faraz Ek Alfaaz Shayri ADV.काव्या मझधार Mukesh Poonia Puneet Arora Sunny Parul (kiran)Yadav PФФJД ЦDΞSHI vineetapanchal Dr.M
Gazal by Ahmad Faraz Ek Alfaaz Shayri ADV.काव्या मझधार Mukesh Poonia Puneet Arora Sunny Parul (kiran)Yadav PФФJД ЦDΞSHI vineetapanchal Dr.M #Life
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शराफ़त छीन लेती है सदाक़त छीन लेती है क़लमकारों से ख़ुद्दारी ज़रूरत छीन लेती है रिया-कारी से बचिए ये बहुत ज़हरीली नागिन है ये नागिन ज़िंदगी भर की 'इबादत छीन लेती है ज़माने में ज़रूरी है बहुत ता'लीम का होना जहालत आदमी से आदमियत छीन लेती है भरी हो जेब तो इंसाँ नशे में चूर रहता है ज़रा सी तंग-दस्ती सब नज़ाकत छीन लेती है अगर जन्नत की चाहत है तो ख़िदमत शर्त है माँ की अगर माँ रूठ जाती है तो जन्नत छीन लेती है जहाँ तक हो सके 'आलम किसी से क़र्ज़ मत लेना मियाँ ये क़र्ज़-दारी ख़ैर-ओ-बरकत छीन लेती है ©Jashvant शराफत क्षीण लेती है Arbeen Sahani Writer Anil Jahrila 7654727348 Raj Guru Rukhsana Khatoon Madhu Kashyap
शराफत क्षीण लेती है Arbeen Sahani Writer Anil Jahrila 7654727348 Raj Guru Rukhsana Khatoon Madhu Kashyap #Life
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White अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया जिस को गले लगा लिया वो दूर हो गया काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना! आईना बात करने पे मजबूर हो गया दादी से कहना उस की कहानी सुनाइए जो बादशाह इश्क़ में मज़दूर हो गया सुब्ह-ए-विसाल पूछ रही है अजब सवाल वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया कुछ फल ज़रूर आएँगे रोटी के पेड़ में जिस दिन मिरा मुतालबा मंज़ूर हो गया ©Jashvant हो गया Ek Alfaaz Shayri Nîkîtã Guptā Rukhsana Khatoon Dr.Mahira khan Chanda
हो गया Ek Alfaaz Shayri Nîkîtã Guptā Rukhsana Khatoon Dr.Mahira khan Chanda #Life
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कुछ शौक़ था यार फ़क़ीरी का कुछ इश्क़ ने दर-दर भटकाया कुछ यार ने कसर न छोड़ी थी कुछ ज़हर रक़ीब ने घोल दिया कुछ हिज्र फ़िराक़ का रंग चढ़ा कुछ यार ने ग़म अनमोल दिया कुछ क़िस्मत थी बद-क़िस्मत की कुछ हिज्र विसाल में घोल दिया कुछ यूँ भी राहें मुश्किल थीं कुछ ग़म का गले में तौक़ भी था कुछ शहर के लोग भी ज़ालिम थे कुछ मरने का हमें शौक़ भी था ©Jashvant यार फकीरी का Geet Sangeet Rukhsana Khatoon Rakesh Srivastava Parul rawat Raj Guru
यार फकीरी का Geet Sangeet Rukhsana Khatoon Rakesh Srivastava Parul rawat Raj Guru #Life
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