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Sumit Upadhyay
स्वनिर्मित आलू के पराठे चाय और कढ़ाई पनीर आज के रात्रिभोज में
Mohan Sardarshahari
ये गोरे- गोरे आलू के पराठे नोनी घी और आम का अचार शनिवार की दोपहरी,धूप चढ़ी दीवार एक कटोरी दही भी हुआ लंच सुमार चार किमी जोगिंग का काम है तैयार।। ©Mohan Sardarshahari आलू के पराठे
JALAJ KUMAR RATHOUR
सुनो प्रिय कॉमरेड, आज भी जब किसी के द्वारा बनारस का नाम सुनता हूँ तो पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं।अस्सी घाट पर पानी की टंकी के किनारे तुम्हारे साथ लिट्टी-चोखा खाता मैं, अक्सर तुमसे यही पूछता था। "क्या हम चोखा से आलू के पराठे बना सकते हैं ? "और तुम कहती थी "मेरे दिमाग का दही इसी लिए बना रहे हो का। " और मैं खिलखिलाकर हँस देता था।अब जब भी खिलखिला कर हँसता हूँ तो आँखों में नमीं और जीवन में तुम्हारी कमीं महसूस होती है। सच बताऊँ यार जीवन लोंगलत्ता जितना लंबा हो गया है।कबख्त कहीं चासनी जैसी खुशी है तो कहीं बिन चासनी वाली उदासी लेकिन बीच में मिलने वाले खोवा के सुकूँ जैसी, हमेशा रही तुम्हारे साथ बीती जिंदगी। ... #जलज कुमार सुनो प्रिय कॉमरेड, आज भी जब किसी के द्वारा बनारस का नाम सुनता हूँ तो पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं।अस्सी घाट पर पानी की टंकी के किनारे तुम्
अशेष_शून्य
(शेष अनुशीर्षक में) ~Anjali Rai इतराता इतवार व्यस्त सोमवार तपता मंगलवार ऊंघता बुधवार भागता गुरुवार सूखता शुक्रवार और ढलता शनिवार
JALAJ KUMAR RATHOUR
सुनो कॉमरेड, जब भी मैं यादों के किसी कोने में बैठा होता हूँ तो तुमसे जुड़ी कोई याद मेरे पास आकर, मेरा हाथ थाम मुझे ले जाती है। उस जगह जहाँ हम कभी एक दूसरे के साथ वक्त बिताया करते थे। वैसे हमें भी तो नही पता था कि एक दिन सिर्फ ये वक्त ही रह जायेगा हमारी यादों में पर फिर भी हम जमाने से बेफिक्र हो एक दूसरे की फ़िक्र करते थे। फ़िक्र ही तो हमें जिम्मेदारियों का एहसास कराती है। वो जिम्मेदारियां जिन्हें हम सिर्फ खुद के हिस्से में लेना चाहते है। यह जिम्मेदारियां ही हैं जो हमें बचपन और बचपने से दूर ले जाती है उस दौर में, जहाँ हम लोगो की उम्मीद बन जाते है। एक बात जहन में सदैव भ्रमण करती है। कि आखिर क्यूँ हम किसी से उम्मीद लगाते हैं। क्या जिससे हम उम्मीद लगाते है? उसे खुद के गमो में टूटने का हक नहीं।कुछ ऐसी ही उम्मीदें मैं लगा बैठा था तुमसे, मैं तुमको अपना खुदा मानता था और जानता था कि मंदिर, मस्जिदो में सब पत्थर के होते है। इनकी दीवारे भी पत्थर की ही तो होती है।क्युकी पत्थर जल्दी नही टूटते इसी लिए हम खुदा से उम्मीद लगा लेते है।बस मेरे मन मैं इस समय यही तर्क है खुद के पक्ष में पर इन तर्को से परे एक ख्वाहिश भी है कि तुम कुछ वक्त के लिए ही सही, हकीकत में आओ और ले चलो मुझे अपने साथ उसी जगह जहाँ तुम और मैं, हम हो जाते थे। उम्मीद है,तुम वक़्त से थोड़ा वक़्त लेकर आओगी जरूर, वैसे मैंने तुम्हारे लिए आम का अचार भी रखवाया है मम्मी से और सुनो तुम इस बार दो आलू के पराठे ज्यादा लाना..... #जलज कुमार राठौर #dilbechara सुनो कॉमरेड, जब भी मैं यादों के किसी कोने में बैठा होता हूँ तो तुमसे जुड़ी कोई याद मेरे पास आकर, मेरा हाथ थाम मुझे ले जाती है
Sachin Ken
बस नम्बर 708 आज भी रोज की तरह वैसे ही आयी थी,भीड़ से पूरी तरह भरी हुई वैसे अब तो आदत भी हो चली थी भीड़ से भरी बस में सफर करने की हालाकिं सफर त
Sweety Mamta
घुँघरु कई सालों पहले अलमारी में रखे घुंघरू आज फिर अलमारी से झांकने लगे थे। इसलिए तो मौका पाते ही ,दोनों पैरों में पहनने वाले घुंघरू बाहर नि
Mohan Sardarshahari
पनीर के परांठे दही और अचार खाकर करूं यदि ना इसका प्रचार हो सकता है दु:खे पेट इसलिए ना हुआ लेट चलो दोस्तों देखो प्लेट आपके पेट को भी मिले इससे अच्छी भेंट।। ©Mohan Sardarshahari पनीर के पराठे