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अशेष_शून्य
खत १ (०३/११/२०२२) ~©Anjali Rai Dear Me , देखो , सुनो समझो कहो वो जो देखा सुना और कहा नहीं जा सकता।। क्योंकि कितने खाली हैं मन और जीवन एकदम कोरे कागज की तरह जिस पर हम जो चाहे जैसे चाहें उकेर सकते हैं । इस आसमान की तरह जिसका कोई रंग नहीं फिर भी हम अपने मन मुताबिक रंग सकते हैं और रंगते ही हैं।
Dear Me , देखो , सुनो समझो कहो वो जो देखा सुना और कहा नहीं जा सकता।। क्योंकि कितने खाली हैं मन और जीवन एकदम कोरे कागज की तरह जिस पर हम जो चाहे जैसे चाहें उकेर सकते हैं । इस आसमान की तरह जिसका कोई रंग नहीं फिर भी हम अपने मन मुताबिक रंग सकते हैं और रंगते ही हैं।
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~©Anjali Rai प्रेम ने हमेशा मुझे प्राथमिकता के क्रम में पहले रखा पर मैंने उसको आखिर में मैं नकारती रही उस पात्र की मिट्टी के अस्तित्व को जिसमें रखकर प्रेम मुझ तक लाया गया
प्रेम ने हमेशा मुझे प्राथमिकता के क्रम में पहले रखा पर मैंने उसको आखिर में मैं नकारती रही उस पात्र की मिट्टी के अस्तित्व को जिसमें रखकर प्रेम मुझ तक लाया गया
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~©Anjali Rai ये मशीनी दुनिया है जिसमें हर क्षण मशीन बने रहने की होड़ लगी है सब भाग रहें हैं मैं फिर दोहराऊंगी बिना ये जाने की भागना जरूरी भी है या नहीं
ये मशीनी दुनिया है जिसमें हर क्षण मशीन बने रहने की होड़ लगी है सब भाग रहें हैं मैं फिर दोहराऊंगी बिना ये जाने की भागना जरूरी भी है या नहीं
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आदमी ने उतार फेंका अपनी देह से आत्मा को । अब वह पूरी तरह से आदमखोर जानवर है ।। ~©अंजली राय हमने जब भी आकाश की तरफ देखा ; नभचर परिंदे बन गए कभी हम हांफते रहे थकते रहे पर उड़ने की चाह न छोड़ पाए हम गिरे फिर उठे फिर गिरे और दौड़ते रहे दौड़ते रहे घोड़ों की तरह।
हमने जब भी आकाश की तरफ देखा ; नभचर परिंदे बन गए कभी हम हांफते रहे थकते रहे पर उड़ने की चाह न छोड़ पाए हम गिरे फिर उठे फिर गिरे और दौड़ते रहे दौड़ते रहे घोड़ों की तरह।
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कृष्ण समझते हैं शांति का अर्थ इसलिए वो कृष्ण नहीं हैं बल्कि इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने कर्म के अर्थ को समझा और अपनाया है। या तो कृष्ण स्वयं ही शांति का पर्याय बन गए, या कर्म ने उन्हें अपना पर्याय बना लिया। ~©Anjali Rai राम समझते हैं प्रेम का अर्थ इसलिए वो राम नहीं हैं बल्कि इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने त्याग के अर्थ को समझा और अपनाया है या तो राम स्वयं ही प्रेम का पर्याय
राम समझते हैं प्रेम का अर्थ इसलिए वो राम नहीं हैं बल्कि इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने त्याग के अर्थ को समझा और अपनाया है या तो राम स्वयं ही प्रेम का पर्याय
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...... तुम्हारे मुस्कुराते होठों के प्रतिबिंब को मेरी पुतलियों से टकराकर जब तुम्हारी आंखों में झलकता देखती हूं तो मेरे इस यकीन पर मेरा यकीन और गहरा जाता है कि "ये दुनिया वाकई बेहद खूबसूरत है" एक प्रेमी हृदय इस संसार में
तुम्हारे मुस्कुराते होठों के प्रतिबिंब को मेरी पुतलियों से टकराकर जब तुम्हारी आंखों में झलकता देखती हूं तो मेरे इस यकीन पर मेरा यकीन और गहरा जाता है कि "ये दुनिया वाकई बेहद खूबसूरत है" एक प्रेमी हृदय इस संसार में
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जब प्रकृति ने अपना पवित्र प्रतिबिंब उकेरने को एक आईना मांगा होगा तब ईश्वर ने पुरुष की पुतलियों में एक भाई गढ़ा होगा ।। ~© अंजली राय जब प्रकृति ने अपनी निश्छलता, कोमलता मातृत्व सहेजने को एक पात्र मांगा होगा तब ईश्वर ने स्त्री के हृदय में एक बहन को गढ़ा होगा। जब प्रकृति ने अपना पवित्र
जब प्रकृति ने अपनी निश्छलता, कोमलता मातृत्व सहेजने को एक पात्र मांगा होगा तब ईश्वर ने स्त्री के हृदय में एक बहन को गढ़ा होगा। जब प्रकृति ने अपना पवित्र
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"प्रेयसी होती होगी गुलाबी गुलाब ! पर पत्नी सिंदूरी गुलमोहर होती है।" ~© अंजली राय प्रेयसी होती होगी रूमानी गुलाबी गुलाब ! जो खुले केशों में बिखरी बिखरी पंखुड़ियों सी खींचना, खीझना रिझना, रिझाना तितलियों सी इठलाना रूठना, मनाना जानती होगी ।
प्रेयसी होती होगी रूमानी गुलाबी गुलाब ! जो खुले केशों में बिखरी बिखरी पंखुड़ियों सी खींचना, खीझना रिझना, रिझाना तितलियों सी इठलाना रूठना, मनाना जानती होगी ।
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~© अंजली राय गंगा हमेशा निर्मल निर्झर रही जिसकी अन्तिम छोर से उठी भाव लहरों ने पवित्रता की परिसिमा के उस असीम सागर को एक क्षण में बांध दिया । जब भी मन के ज्वार भाटे
गंगा हमेशा निर्मल निर्झर रही जिसकी अन्तिम छोर से उठी भाव लहरों ने पवित्रता की परिसिमा के उस असीम सागर को एक क्षण में बांध दिया । जब भी मन के ज्वार भाटे
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~Anjali Rai "पिता जीवन की वो कड़कती "धूप" है; जिसके हिस्से में कभी कोई शीतल छांव नहीं आई ।।" "वो स्वयं तपकर हमें रौशन करता रहा ; ताकि हमें कभी कोई
"पिता जीवन की वो कड़कती "धूप" है; जिसके हिस्से में कभी कोई शीतल छांव नहीं आई ।।" "वो स्वयं तपकर हमें रौशन करता रहा ; ताकि हमें कभी कोई
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