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#OpenPoetry 🚩ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् 🚩 यथा जातबलो वह्निर्दहत्यार्द्रानपि द्रुमान् । तथा दहति वेदज्ञ: कर्मजं दोषमात्मन: ।। प्रबल रूप से जलती हुई अग्नि जिस प्रकार गीले पेड़ों को भी भस्म कर डालती है , उसी प्रकार वेदों का ज्ञाता व्यक्ति कर्मों से पैदा होने वाली त्रुटियों व पापों को भी जला देता है । 🚩ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् 🚩 🚩जय वैदिक सनातन धर्म संस्कृति🚩 🚩ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् 🚩 यथा जातबलो वह्निर्दहत्यार्द्रानपि द्रुमान् । तथा दहति वेदज्ञ: कर्मजं दोषमात्मन: ।। प्रबल रूप से जलती हुई
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🚩ॐ सुप्रभात🚩 🚩आर्याव्रता विसृजन्तो अधिक्षमि ।🚩 धर्म कर्त्तव्यों का पालन करने वाले ही देव है । वे प्रत्यक्ष देवता है जो कर्त्तव्य - पालन के लिए मर मिटते हैं । ।। 🚩 ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् सुप्रभात वैदिक सनातनियों 🌷👰💓💝 🚩ॐ सुप्रभात🚩 🚩आर्याव्रता विसृजन्तो अधिक्षमि ।🚩 धर्म कर्त्तव्यों का पालन करने वाले ही देव है । वे प्रत्यक्ष देवता है जो कर्त्तव्य - पालन
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#OpenPoetry 🚩 ॐ 🚩 ब्राह्मणत्व अग्निॠर्षि: पवमान: पाञ्चजन्य पुरोहित: । -- ऋगवेद । तेजस्वी , ज्ञानी , पवित्र तथा संयमी ही पुरोहित हों । पुरोहित की पवित्र जिम्मेदारी केवल वे लोग उठावें जिनमें आवश्यक गुण हों । ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् 🚩 जय वैदिक सनातन धर्म संस्कृति 🚩 🚩 कृण्वन्तो विश्वमार्यम् 🚩 ०९/०८/२०१९ 🌷👰💓💝 ... ✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 🚩 ॐ 🚩 ब्राह्मणत्व अग्निॠर्षि: पवमान: पाञ्चजन्य पुरोहित: । -- ऋगवेद । तेजस्वी , ज्ञानी , पवित्र तथा संयमी ही पुरोहित हों ।
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#OpenPoetry 🚩🇮🇳🚩 धर्म- धारणा और आत्मिक प्रगति का मूल्यांकन इसी आधार पर किया जाता है कि अपने जीवन क्रम में कितनी उदारता अपनायी और परमार्थ परायणता दर्शायी । स्वर्ग और मुक्ति का पुण्य - प्रतिफल इसी परमार्थ परायणता के वृक्ष पर लगता है । 🚩ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् 🚩 ०५/०८/२०१९ 🌷👰💓💝 ...✍ कमल शर्मा'बेधड़क' 🚩🇮🇳🚩 धर्म- धारणा और आत्मिक प्रगति का मूल्यांकन इसी आधार पर किया जाता है कि अपने जीवन क्रम में कितनी उदारता अपनायी और परमार्थ परायणता द
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#OpenPoetry ॐ सुप्रभात 💐 पिताचार्य: सुह्रन्माता भार्यापुत्र: पुरोहित: । नाSदण्डअ्योनाम राज्ञोSस्ति य: स्वधर्मे न तिष्ठति ।। वह पिता ,आचार्य , मित्र ,माता, पत्नि ,पुत्र व पुरोहित आदि जो अपने धर्म पर स्थिर नहीं रह पाते , वे सभी दंड पाने योग्य है । ।। 🚩ॐ वन्दे वेद प्रकाशम्🚩 🚩जय वैदिक सनातन धर्म संस्कृति 🚩 🚩जय श्री राम 🚩 ॐ सुप्रभात 💐 पिताचार्य: सुह्रन्माता भार्यापुत्र: पुरोहित: । नाSदण्डअ्योनाम राज्ञोSस्ति य: स्वधर्मे न तिष्ठति ।। वह पिता ,आचार्य , मित्र
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#OpenPoetry 🚩ॐ सुप्रभात 💐🙏🚩 यो यस्य प्रतिभूस्तिष्ठेद्देर्शनायेह मानव: । अदर्शयन् सतं तस्य प्रयच्छेत्स्वधानादृणम् ।। .. जो व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व लेता है , पर उसे प्रस्तुत नहीं कर पाता , उसे उस दूसरे व्यक्ति का ऋण स्वंय चुकाना चाहिए । ।। 🚩ॐ वन्दे वेद प्रकाशम्🚩 🚩जय वैदिक सनातन धर्म संस्कृति🚩 🚩जय श्री राम🚩 🚩ॐ सुप्रभात 💐🙏🚩 यो यस्य प्रतिभूस्तिष्ठेद्देर्शनायेह मानव: । अदर्शयन् सतं तस्य प्रयच्छेत्स्वधानादृणम् ।। .. जो व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को
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Religion ॐ सुप्रभात 💐🕉 यत्कर्म कृत्वा कुर्वंश्च करिष्यंश्च लज्जति । तज्ज्ञेयं विदुषा सर्वं तामसं गुणलक्षम् ।। जो कार्य करते हुए एवं करने के पश्चात् तथा भविष्य मे उसे करने के विचार से ही मनुष्य में लज्जा का भाव उत्पन्न हो , विद्वज्जनों द्वारा उसे तमोगुणी माना जाता है । ।। ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् 🚩 जय वैदिक सनातन धर्म संस्कृति🚩 जय हिन्द 🇮🇳 वंदे मातरम् 🇮🇳 🌷👰💓💝 ॐ सुप्रभात 💐🕉 यत्कर्म कृत्वा कुर्वंश्च करिष्यंश्च लज्जति । तज्ज्ञेयं विदुषा सर्वं तामसं गुणलक्षम् ।। जो कार्य करते हुए एवं करने के प
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राधे राधे ॐ मनुस्मृति .... चतुर्थ अध्याय न लोकवृत्तं वर्तेत वृत्तिहेतो: कथञ्चन । अजिह्मामशठां शुद्धां जीवेद्ब्राह्मणजीविकाम् ।। १२ ।। संतोष और संयम से ही स्थायी सुख की प्राप्ति होती है। अत: ब्राह्मण को सदैव संतोष एवं संयम धारण करना चाहिए । उसे स्मरण रहना चाहिए कि संतोष ही सुखों का मूल है और असंतोष दु:खों का कारण । ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् जय वैदिक सनातन धर्म जय श्री राम 🚩🇮🇳🚩 ©Pnkj Dixit ॐ मनुस्मृति .... चतुर्थ अध्याय न लोकवृत्तं वर्तेत वृत्तिहेतो: कथञ्चन । अजिह्मामशठां शुद्धां जीवेद्ब्राह्मणजीविकाम् ।। १२ ।। संतोष
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🙏 ॐ ओउम् नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ।। जो सुखस्वरुप,संसार के उत्पन्न सुखों को देने वाला, कल्याण का कर्ता,मोक्ष स्वरुप,धर्मयुक्त कामों को ही करने वाला, अत्यंत मंगलस्वरुप और धार्मिक मनुष्यों को सुख देने वाला है, उसको हमारा बार-बार नमस्कार हो।🙏 हरि ॐ 🙏 🙏वन्दे वेद प्रकाशम्🙏 ©Pnkj Dixit 🙏 ॐ ओउम् नम: शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शंकराय च मयस्कराय च नम: शिवाय च शिवतराय च ।। जो सुखस्वरुप,संसार के उत्पन्न सुखों
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🚩🕉🚩 सर्वे तस्यादृता: धर्मा यस्यैते त्रय आदृता: । अनादृतास्तु यस्यैते सर्वास्तस्याSफला: क्रिया: ।। जिसने माता, पिता एवं गुरू इन तीनों की सेवा की और इनका आदर - सत्कार किया, उसने सही मायने में धर्म किया है और इसके लिए वह पुण्य फल का अधिकारी है । वहीं , जो इन तीनों का अनादर करता है, उसे किसी भी धार्मिक अनुष्ठान का फल नहीं मिलता । ।। 🚩ॐ वन्दे वेद प्रकाशम् 🚩कृण्वन्तो विश्वमार्यम् 🚩 🚩जय श्री राम🚩 🚩🕉🚩 सर्वे तस्यादृता: धर्मा यस्यैते त्रय आदृता: । अनादृतास्तु यस्यैते सर्वास्तस्याSफला: क्रिया: ।। जिसने माता, पिता एवं गुरू इन तीनों