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Prakash Vidyarthi
White शीर्षक_- " एहसासों के तरुवर और बूंदों के राग " ।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।। काले कलूटे उमड़ते धूमड़ते मेघों से हैं गगन सज़ा । मौसम की नई अंगड़ाई देख गड़गड़ाते बादल गरजा ।। आषाढ़ श्रावण को झकझोरती बरखा रानी व्याकुल भली। मूर्छित पौधों को सुधा पान कराने जैसे इश्क की गली प्रेयसी चली।। पुरवा पवन की हिलोरती झोके रिमझिम बूंदे बरसने लगी। भूखे प्यासे भूतल को जल से तृप्त लिप्त करने लगी।। कड़कती चमकती देख घनप्रिया को । भौरो के मन में लगन फाग जगा। एकान्त शान्त बैठ कुटिया के छाव में। जैसे दिव्य ज्योति का अनुराग लगा।। वन उपवन सब खिल उठे शीतल प्रीत नीर का पाकर,। आंधी तूफ़ान से कुछ गिरे पौधें भरा नदी तालाब और पोखर।। नए उमंग अंग प्रस्फुटित हुए लताएं शाखाएं लगे झूमने। होने लगे खुद भाव अंकुरित सवाल जवाब भीं पनपने।। शुरू हुआ सरगम का सफ़र अब दिल के आंगन में जैसे अगन सजा। स्नेह धागों सा कतरो को देख एहसासों के तरुवर भींगा।। टिपटिप कलकल टपकते नीर से बुलबुले ध्यान आकर्षित किए। रूखे सूखे आंतरिक उन्मेषो से। उत्पन्न तरंग संग हर्षित हुए।। गले का गुलशन ज्ञान चमन खिला सृजित स्वर- व्यंजन बौछारित। गुनगुनाती गीत भाव अलाप्ति । अभिलाषित नयन हुए अभिसारित ।। भौरों के भेष धारणकर विद्यार्थी कलियों के मुख मुस्कान निहारे । राष्ट्र भक्ति प्रेम को तरसे जीवन भटके मटके घने जंगल को सारे।। बुंदो के राग सुर ताल तराने व्यथित मन को लगे लुभाने। इंद्रधुनुषी नभ बहुरंगी रूपम बारिश के मौसम भाए सुहाने ।। स्वरचित -: प्रकाश विद्यार्थी ©Prakash Vidyarthi #Free #Poetry #कविताएँ #रचना_का_सार #गीतकार #स्टोरी #भक्तिकीशक्ति #प्रेम_रचना
Dilip Singh Harpreet
उळाईं तो घणी ईं छै आपणैं म्हैल माळक्यां मं पण मैं थांकी 💝मांयली💝 सकड़ाई मं रैह्बो च्हाॅंवूं छूॅं 'हरप्रीत' 🌹❤#दिल_की_बातां_दिलीप_सिंह_हरप्रीत ❤🌹 ©Dilip Singh Harpreet दिल की बांता दिलीप सिंह हरप्रीत #मायड़भासा #दिलीप_सिंह_हरप्रीत
Gurudeen Verma
Black शीर्षक - तेरा ही हाथ है कोटा, मेरे जीवन की सफलता के पीछे ------------------------------------------------------------------------- चर्मण्वती के तट पर, तू बसा है जिस तरह, अंकित है तेरा भी नाम, 1857 के गदर में। और राष्ट्र के हर हृदय में, मौजूद है तू भी, एक छोटे कानपुर के नाम से। शैक्षणिक नगरी के नाम से, तू महशूर है हर किसी की जुबां पर, बसा है तू मेरे भी आत्मा में भी, एक असीम सुख की तरह। यह मेरा जो अस्तित्व है आज, और पहुंचा हूँ जिस मुकाम पर आज, जन्मा है मेरे अन्दर जो कवि, उसका जन्मदाता तू ही है, उसका पोषक तू ही है। जब कभी भी आता हूँ मैं, तेरी इस धरती पर, नाचने लगता है मेरा मन, और निकल पड़ते हैं लबों से तरानें। जिस तरह होती है एक स्त्री की छाया, एक सफल पुरुष की सफलता के पीछे, उसी तरह तेरा ही हाथ है कोटा, मेरे जीवन की सफलता के पीछे।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- कोटा(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #कविताएँ
कवि अर्जून सिंह बंजारा
हिंदी साहित्य मंच ©कवि अर्जून सिंह बंजारा कवि अर्जुन सिंह बंजारा कविता आज की पीढ़ी
Shailendra Singh Yadav
बस तुम ही तुम बसे हो इस नाजुक दिल में। फिर भी तुमको ढूंढते हैं गली गली में। शायर -शैलेन्द्र सिंह यादव, कानपुर। ©Shailendra Singh Yadav शैलेन्द्र सिंह यादव की शायरी।