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GANESH EDITZ
Shaarang Deepak
PURAN SINGH CHILWAL
🥀सच कड़वा ही होता हैं 🥀 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 🥀धोखा साथ चलने वाले ही🥀 🥀देते हैं ये कल भी सच था🥀 🥀और आज भी सच है🥀 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 🥀बात बुरी लगे तो🥀 🥀 दो तरह से सोचो🥀 🥀🥀🥀🥀🥀🥀🥀 ©PURAN SINGH CHILWAL #१४ यदि कोई इंसान बहुत जरूरी है 🌷 तो उसे बात को भूल जाओ और अगर बात बहुत जरूरी है 🌷 तो उस इंसान को भूल जाओ
Dk Patil
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Village Life सन्ध्या छन्द 221 111 22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा ।। साधू कब तक बोले । लोभी मन मत डोले ।। इच्छा जब बढ़ती है । वो तो फिर डसती है ।। हो जीवन फिर बाधा । बोले गिरधर राधा ।। मीठी सुनकर वाणी । दौड़े सब अब प्राणी ।। सोचा नहिँ कुछ आगे । जोड़े मन-मन धागे ।। १४/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR सन्ध्या छन्द 221 111 22 माया जब भरमाती । पीड़ा तन बढ़ जाती ।। देखो पढ़कर गीता । ये जीवन अब बीता ।। क्या तू अब सँभलेगा । या तू नित भटकेगा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- जीवन के हर रंग से , कर ले तू पहचान । इच्छा यहाँ अनंत है , करती नित व्वयधान ।।१ जीवन के इस रंग से , होते क्यों हैरान । त्याग नहीं जीवन कभी , संग चले भगवान ।।२ संकट सम्मुख देखकर , हो जाता हैरान । छोड़ चले जीवन यहाँ , पल भर में इंसान ।।३ मुश्किल से मुश्किल घड़ी , हो जाती है दूर । थोड़ा बस संयम रखो , होते क्यों मजबूर ।।४ मत कर जीवन से कभी , तू अब ऐसी चाह । जो फिर कल दीवार बन , रोके तेरी राह ।।५ धर्य-रहित जीवन जियो , संकट जाओ भूल । दें गिरधर आशीष तो , सब बन जाएं फूल ।।६ सत्य सनातन धर्म के , होते मीठे बोल । बतलाते जीवन यहाँ , सुन लो है अनमोल ।।७ जीव-जन्तु मानव यहां , सब में भरा कलेश । मृत्युलोक का है यही , सबको ये संदेश ।।८ जाना सबको है उधर , रख ले धीरज आज । अभी तुम्हारे बिन वहाँ , रुका न कोई काज ।।९ जीवन के हर रंग में , कर्म रखोगे याद । ये ही जीवन से तुम्हें , कर देंगे आजाद ।।१० ये जीवन संग्राम है , विजयी होते धीर । मीठी बोली प्रेम की , भरे घाव गंभीर ।। ११ १४/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- जीवन के हर रंग से , कर ले तू पहचान । इच्छा यहाँ अनंत है , करती नित व्वयधान ।।१ जीवन के इस रंग से , होते क्यों हैरान । त्याग नहीं जी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Jai Shri Ram मनहरण घनाक्षरी:- भूल जाओ सारी व्यथा , याद रखो हरि कथा , पार उस घाट देखो , खड़े दीनानाथ हैं । छोड़ो यह मोह माया , मिट्टी की है यह काया , भज ले तू प्रभु नाम , थामे तेरा हाथ हैं । पग-पग देख तेरे , चलते है नाथ मेरे , कहीं भी अकेला नहीं, वही तेरे साथ हैं । वही कण-कण में हैं , वही तेरे प्रण में हैं, जान ले तू आज उन्हें , वही प्राण नाथ हैं ।।-१ वही राधा कृष्ण अब , वही सिया राम अब , वही सबके कष्टों का , करते उतार हैं । कहीं नहीं आप जाओ , मन में उन्हें बिठाओ, मन के ही मंदिर से , करते उद्धार हैं । भजो आप आठों याम , राम-सिया राधेश्याम, सुनकर पुकार वो , आते नित द्वार हैं, असुवन की धार वे , है रोये बार-बार वे , देख-देख भक्त पीर , आये वे संसार हैं ।।२ १४/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी:- भूल जाओ सारी व्यथा , याद रखो हरि कथा , पार उस घाट देखो , खड़े दीनानाथ हैं । छोड़ो यह मोह माया , मिट्टी की है यह काया , भज ले
Bharat Bhushan pathak
छंद- विजात छंद विधान-यह १४ मात्रिक मानव जाति का छंद है। इसकी १,८ वीं मात्रा का लघु होना अनिवार्य है। इसके अंत में २२२ वाचिक भार होता है।यह चार चरणों वाला छंद है।क्रमागत दो-दो चरण या चारों चरण समतुकान्त होता है। मापनी- लगागागा लगागागा १२२२ १२२२ चमकती जब,यहाँ चपला। करे हे यह,बहुत घपला। सदा यह प्राण लेती है। कभी ना त्राण देती है।।१ रहम भी खूब ये करती। इसी से है, हरी धरती।। चमकना शान्त हो ऐसे। चमकता चाँद हो जैसे।।२ ©Bharat Bhushan pathak #Reindeer छंद- विजात छंद विधान-यह १४ मात्रिक मानव जाति का छंद है। इसकी १,८ वीं मात्रा का लघु होना अनिवार्य है। इसके अंत में २२२ वाचिक भार