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संभागीय अध्यक्ष ग्वालियर
Neelam Modanwal
bench हिमालय के आँगन में उसे, प्रथम किरणों का दे उपहार । उषा ने हँस अभिनंदन किया, और पहनाया हीरक-हार ।। जगे हम, लगे जगाने विश्व, लोक में फैला फिर आलोक । व्योम-तुम पुँज हुआ तब नाश, अखिल संसृति हो उठी अशोक ।। विमल वाणी ने वीणा ली, कमल कोमल कर में सप्रीत । सप्तस्वर सप्तसिंधु में उठे, छिड़ा तब मधुर साम-संगीत ।। बचाकर बीच रूप से सृष्टि, नाव पर झेल प्रलय का शीत । अरुण-केतन लेकर निज हाथ, वरुण-पथ में हम बढ़े अभीत ।। सुना है वह दधीचि का त्याग, हमारी जातीयता का विकास । पुरंदर ने पवि से है लिखा, अस्थि-युग का मेरा इतिहास ।। सिंधु-सा विस्तृत और अथाह, एक निर्वासित का उत्साह । दे रही अभी दिखाई भग्न, मग्न रत्नाकर में वह राह ।। धर्म का ले लेकर जो नाम, हुआ करती बलि कर दी बंद । हमीं ने दिया शांति-संदेश, सुखी होते देकर आनंद ।। विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम । भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम । यवन को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि । मिला था स्वर्ण-भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि ।। किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं । हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं ।। जातियों का उत्थान-पतन, आँधियाँ, झड़ी, प्रचंड समीर । खड़े देखा, झेला हँसते, प्रलय में पले हुए हम वीर ।। चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न । हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न ।। हमारे संचय में था दान, अतिथि थे सदा हमारे देव । वचन में सत्य, हृदय में तेज, प्रतिज्ञा मे रहती थी टेव ।। वही है रक्त, वही है देश, वही साहस है, वैसा ज्ञान । वही है शांति, वही है शक्ति, वही हम दिव्य आर्य-संतान ।। जियें तो सदा इसी के लिए, यही अभिमान रहे यह हर्ष । निछावर कर दें हम सर्वस्व, हमारा प्यारा भारतवर्ष ।। ©Neelam Modanwal #Bench Mahi वंदना .... Sethi Ji Shamim डॉ.वाय.एस.राठौड़ (.मीत.) ग्वालियर