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""SUNIL""
मैं उम्र भर जवाब नहीं दे सका 'अदम' वो इक नज़र में इतने सवालात कर गए :-अब्दुल हमीद अदम अदम
Poonam Aggarwal'मीता'
अदम(शून्य)से शुरू अदम(शून्य)पर खत्म सांस लेती जिंदगी का फ़लसफ़ा ही निराला है। #अदम(शून्य)
rahul Kumar Chaudhary
।।कभी - कभी ये सोचकर सेहम उठता है।। ।।की तेरे प्यार के अदम मे।। ।।कहीं मेरा दम ना निकल जाये।। अदम=अभाव
दीपक शुक्ला
जिस्म क्या है रूह तक सब कुछ ख़ुलासा देखिये। आप भी इस भीड़ में घुस कर तमाशा देखिये जो बदल सकती है इस पुलिया के मौसम का मिजाज़ उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिये जल रहा है देश यह बहला रही है क़ौम को किस तरह अश्लील है कविता की भाषा देखिये मतस्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिये। अदम गोंडवी ✍️✍️✍️ #अदम गोंडवी साब
Ek Tha Ravan
#PulwamaAttack घर के ठंडे चूल्हे पर खाली पतीली है बताओ कैसे लिख दूं धूप फागुन की नशीली है अदम गोंडवी जी के कविता के कुछ शब्द अदम गोंडवी (Gonda)
विवेक पाण्डेय
जिस्म क्या है, रुह तक सब कुछ खुलासा देखिए । आप भी इस भीड़ में घुसकर तमाशा देखिए । जो बदल सकती है इस दुनिया के मौसम का मिज़ाज, उस युवा पीढ़ी के चेहरे की हताशा देखिए । जल रहा है देश, यह बहला रही है क़ौम को, किस तरह अश्लील है संसद की भाषा देखिए । मत्स्यगंधा फिर कोई होगी किसी ऋषि का शिकार, दूर तक फैला हुआ गहरा कुहासा देखिए । #Dreams अदम गोंडवी
manju Ahirwar
रात जो आया न अब तूफ़ान वह पुरज़ोर था भोर होते ही वहाँ का दृश्य बिलकुल और था सिर पे टोपी बेंत की लाठी सँभाले हाथ में एक दर्जन थे सिपाही ठाकुरों के साथ में घेर कर बस्ती कहा हलके के थानेदार ने – ‘जिसका मंगल नाम हो वह व्यक्ति आए सामने’ निकला मंगल झोपड़ी का पल्ला थोड़ा खोल कर इक सिपाही ने तभी लाठी चलाई दौड़ कर गिर पड़ा मंगल तो माथा बूट से टकरा गया सुन पड़ा फिर, ‘माल वो चोरी का तूने क्या किया?’ ‘कैसी चोरी माल कैसा?’ उसने जैसे ही कहा एक लाठी फिर पड़ी बस, होश फिर जाता रहा होश खो कर वह पड़ा था झोपड़ी के द्वार पर ठाकुरों से फिर दरोगा ने कहा ललकार कर – “मेरा मुँह क्या देखते हो! इसके मुँह में थूक दो आग लाओ और इसकी झोपड़ी भी फूँक दो” और फिर प्रतिशोध की आँधी वहाँ चलने लगी बेसहारा निर्बलों की झोपड़ी जलने लगी दुधमुँहा बच्चा व बुड्ढा जो वहाँ खेड़े में था वह अभागा दीन हिंसक भीड़ के घेरे में था घर को जलते देख कर वे होश को खोने लगे कुछ तो मन ही मन मगर कुछ ज़ोर से रोने लगे ‘कह दो इन कुत्तों के पिल्लों से कि इतराएँ नहीं हुक्म जब तक मैं न दूँ कोई कहीं जाए नहीं’ यह दरोगा जी थे मुँह से शब्द झरते फूल-से आ रहे थे ठेलते लोगों को अपने रूल से फिर दहाड़े, ‘इनको डंडों से सुधारा जाएगा ठाकुरों से जो भी टकराया वो मारा जाएगा’ इक सिपाही ने कहा, ‘साइकिल किधर को मोड़ दें होश में आया नहीं मंगल कहो तो छोड़ दें’ बोला थानेदार, ‘मुर्गे की तरह मत बाँग दो होश में आया नहीं तो लाठियों पर टाँग लो ये समझते हैं कि ठाकुर से उलझना खेल है ऐसे पाजी का ठिकाना घर नहीं है जेल है’ पूछते रहते हैं मुझसे लोग अकसर यह सवाल ‘कैसा है कहिए न सरजू पार की कृष्ना का हाल’ उनकी उत्सुकता को शहरी नग्नता के ज्वार को सड़ रहे जनतंत्र के मक्कार पैरोकार को धर्म, संस्कृति और नैतिकता के ठेकेदार को प्रांत के मंत्रीगणों को केंद्र की सरकार को मैं निमंत्रण दे रहा हूँ आएँ मेरे गाँव में तट पे नदियों के घनी अमराइयों की छाँव में गाँव जिसमें आज पांचाली उघाड़ी जा रही या अहिंसा की जहाँ पर नथ उतारी जा रही हैं तरसते कितने ही मंगल लँगोटी के लिए बेचती हैं जिस्म कितनी कृष्ना रोटी के लिए ©manju Ahirwar #अदम गोंडवी #कविता