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dilip khan anpadh
बाबला वतन का ******* मैं दीवाना हूँ, वतन का जां मेरी कुर्वान है। चूम लूँ माटी मैं इसका ये तिरंगा शान है।। ये ही महबूबा है मेरी आहों में बसती सदा ख्वाबों में सजती सदा है सांसों में रचती सदा।। ये मलय और ये चमन बिखरा है जिसके रूप पर होके, मोहित मैं निहारूँ क्यों न खुद को भूलकर। है अचल, हिमतुंग मुकुट सा पांव धोती,जलतरंग पश्चिम में,मरु की है गर्मी पूर्ब में सजता है बंग। रायसीना बिंदी बनकर शोभता है भाल पर सतपुड़ा और विंध्यमाला सज्जित ग्रीवा के नाल पर। गंगा की उर्वर जमीं से है बना ये कटि अंग शेष काया में है बसता भारती का द्रविड़ रंग। उर में है गंगा समेटे उत्सवों का रंग कई जात अनेक और धर्म अलग है फिर भी पोषित सब यंही। क्यों ना चाहूं, मर मिटू मैं क्या वो रंभा,उर्वशी? इसको चाहूं, सजदा कर लूं है ये मेरी प्रेयसी..... इसको चाहूं, सजदा कर लूं है ये मेरी प्रेयसी..... दिलीप कुमार खाँ"""अनपढ़"" #roseday दीवाना वतन का
manjur ahamed
बेशक तड़प इतनी रखते है अपने मादरे वतन से कोई उंगली उठाये तो सही हाथ उखाड़ लेंगे बदन से
mk_lover_writes
वतन वतन वतन ओ मेरे वतन आ हिला दे आज ये गगन बन के शोला आज हम चलेंगे दुश्मन पे गाज बनके हम गिरेंगे ना तो हम रुकेंगे ना झुकेंगे क्या हैं हम जहां से हम कहेंगे रुकावटें है तोड़ देनी सारी आज हम पड़ेंगे सब पे भारी कदम कदम मिशाल सा रखेंगे और तोड़ देंगे तोड़ देंगे तोड़ देंगे..... ..... सारी दुनियां का भरम वतन वतन ......... आ हिला दे आज ये गगन अंश क्या है वंश भी मिटादे ख़ाक में मिलाके तू सुलादे बूंद बूंद लहू का हिसाब ले जवाब उनको गोलियों की आग दे चला चल चला चल तू चला चल हो आसमान या हो धरातल वर्तमान में तू ऐसा करके बदल दे आने वाला कल सीमाओं के बाग पड़े उजड़े खिला दे उनमें आज तू कमल तिरंगे की शान को बढ़ाके बढाके बढ़ाके ........ दुश्मन को आज करदे तू दफन वतन वतन वतन ........ आ हिला दे आज ये गगन सीमा पे तू जलजला वहादे तिरंगा आसमान में फैहरादे सारी तू शियासते भुला दे बुनियाद दुश्मनों की तुम हिला दे मां के सीने का दर्द है कम करना तू इंच इंच का हिसाब करना आंखों को जो उठाके बात करते उनके दिलों में डर है आज भरना ये रात फैसले की आज आयी दम भरके आज निकलो तुम शिपाही अरे आज हमसे आज हमसे आज हमसे ....... दुश्मन भी यहां आके करेगा नमन वतन वतन वतन आ हिला दे आज ये गगन जय हिन्द वतन वतन वतन